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विधि आयोग की सरकार को सलाह, SEX के लिए सहमति की उम्र में न हो बदलाव

विधि आयोग की सरकार को सलाह, SEX के लिए सहमति की उम्र में न हो बदलाव
नई दिल्ली , शुक्रवार, 29 सितम्बर 2023 (17:32 IST)
Consensual sex: विधि आयोग (Law Commission) ने सरकार को सलाह दी है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत यौन संबंधों (sexual relations) के लिए सहमति की मौजूदा उम्र (adolescents aged) में बदलाव नहीं किया जाए और 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों की मौन स्वीकृति से संबंधित पॉक्सो मामलों में सजा के विषय में निर्देशित न्यायिक विवेक लागू करने का सुझाव दिया।
 
विधि आयोग ने पॉक्सो कानून के तहत यौन संबंधों के लिए सहमति की उम्र पर अपनी रिपोर्ट कानून मंत्रालय को सौंपी है जिसमें इसने सुझाव दिया है कि 16 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों की ओर से मौन स्वीकृति से जुड़े मामलों में स्थिति को सुधारने के लिए संशोधनों की आवश्यकता है। देश में सहमति की उम्र अभी 18 वर्ष है।

आयोग ने कानून मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि संशोधन आवश्यक हैं, क्योंकि ऐसे मामलों में उतनी गंभीरता से नहीं निपटा जाना चाहिए, जितना कि पॉक्सो कानून के तहत आने वाले मामलों के लिए उम्मीद की गई थी। पॉक्सो कानून बच्चों को यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य (पोर्नोग्राफी) से बचाने का प्रयास करता है। बीते कई वर्षों में, इस कानून का अक्सर किशोरों के बीच संबंधों की प्रकृति को निर्धारित करने में परस्पर सहमति की भूमिका के साथ टकराव हुआ है। यह कानून 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को एक बच्चे के रूप में परिभाषित करता है।
 
पॉक्सो कानून की धारा 6 के अनुसार, ‘जो कोई गुरुतर प्रवेशन लैंगिक हमला करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन कारावास, जिसका अभिप्राय उस व्यक्ति के शेष जीवनकाल के लिए कारावास होगा, तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने का भी दायी होगा या मृत्युदंड से दंडित किया जाएगा। 
 
हालांकि, विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि उन मामलों में स्थिति का समाधान करने के लिए पॉक्सो कानून में कुछ संशोधन करने की आवश्यकता है, जिनमें 16 से 18 वर्ष की आयु के बीच के किशारों की ओर से मौन स्वीकृति होती है, लेकिन कानूनन इसकी अनुमति नहीं है।
 
आयोग ने कहा कि सहमति की उम्र घटाने का सीधा और नकारात्मक असर बाल विवाह एवं बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई पर पड़ेगा। आयोग ने अदालतों को उन मामलों में सतर्कता बरतने की सलाह दी, जहां यह पाया जाए कि किशोरावस्था के प्रेम को नियंत्रित नहीं किया जा सकता और इसका आपराधिक इरादा नहीं रहा होगा।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta

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