जम्मू। पिछले 27 साल से अनिश्चितता के दोराहे पर खड़े विस्थापित कश्मीरी पंडितों की घाटी में लौटने की उम्मीदें क्षीण पड़ती जा रही हैं, क्योंकि बढ़ती हिंसा के साथ आतंकवाद ने एक बार फिर अपना क्रूर चेहरा उठा लिया है।
साल 1990 की शुरुआत में आतंकवाद का दौर शुरू होने की वजह से घाटी से पलायन करने को मजबूर हुए हजारों पंडित परिवार यहां जम्मू-कश्मीर की शीतकालीन राजधानी में रह रहे हैं। मार्च 2015 में पीडीपी-भाजपा सरकार बनने के बाद कश्मीर लौटने की उनकी उम्मीदें मजबूत हुई थीं, लेकिन अब वह उम्मीदें कमजोर पड़ रही हैं।
अखिल राज्य कश्मीरी पंडित कांफ्रेंस के महासचिव टीके भट्ट ने कहा कि कश्मीर में बढ़ती कट्टरता और हालात से निपटने में सरकारी नीतियां उनके घाटी लौटने की राह में सबसे बड़ी बाधा है।
उन्होंने कहा, 'घाटी में हमारे लौटने के लिए अभी आदर्श स्थिति नहीं है, क्योंकि वहां पुलिसकर्मी भी असुरक्षित हैं। उन्हें मारा जा रहा है और उनके हथियार लूटे जा रहे हैं। मौजूदा केंद्र सरकार कश्मीर पर कांग्रेस की नीति का ही पालन कर रही है। कश्मीरी की एबीसीडी भी नहीं जानने वालों से कश्मीर के बारे में विचार-विमर्श किया जा रहा है जबकि असल हितधारकों की अनदेखी की जा रही है।'
भट्ट ने पीडीपी-भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वह पंडितों का भरोसा बहाल करने में बुरी तरह नाकाम हुई है। (भाषा)