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करुणानिधि ने लेखनी से बदली तमिलनाडु की 'तकदीर', दिलों में हमेशा रहेंगे जिंदा

करुणानिधि ने लेखनी से बदली तमिलनाडु की 'तकदीर', दिलों में हमेशा रहेंगे जिंदा
चेन्नई , मंगलवार, 7 अगस्त 2018 (20:53 IST)
चेन्नई। दक्षिण भारत की 70 से ज्यादा फिल्मों की कहानियां तथा संवाद लिखने वाले करुणानिधि की पहचान एक ऐसे राजनीतिज्ञ के तौर पर थी, जिन्होंने अपनी लेखनी से तमिलनाडु की तकदीर लिखी। करुणानिधि का ने भले ही 94 साल की उम्र में आज अपनी देह त्याग दी हो लेकिन वे प्रदेश के लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
 
रुपहले पर्दे पर साथी दिग्गजों को पछाड़ा : तेज तर्रार, बेहद मुखर करुणानिधि ने जब द्रविड़ राज्य की कमान संभाली तो उन्होंने कई दशक तक रुपहले पर्दे पर अपने साथी रहे एम जी रामचंद्रन तथा जे जयललिता को राजनीति में पछाड़ दिया। उनके अंदर कला तथा राजनीति का यह मिश्रण शायद थलैवर (नेता) और कलैग्नार (कलाकार) जैसे उन संबोधनों से आया, जिससे उनके प्रशंसक उन्हें पुकारते थे। 
 
ताकत की धमक राष्ट्रीय राजधानी तक : करुणानिधि का राजनीति प्रभाव केवल उनके राज्य तक ही सीमित नहीं था। उनकी ताकत की धमक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में सत्ता के गलियारों तक थी और इसी के बल पर उन्होंने कभी कांग्रेस के साथ तो कभी भाजपा के साथ गठबंधन करके उसे सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि इसके लिए उन्हें कटु आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। आलोचकों ने उन्हें मौकापरस्त तक कह दिया।
 
14 साल की उम्र में किया हिन्दी विरोधी प्रदर्शन : मुथुवेल करुणानिधि के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1938 में तिरूवरूर में हिन्दी विरोधी प्रदर्शन के साथ शुरू हुई। तब वह केवल 14 साल के थे। इसके बाद सफलता के सोपान चढ़ते हुए उन्होंने पांच बार राज्य की बागडोर बतौर मुख्यमंत्री संभाली। उनके 61 साल के राजनीतिक जीवन का कद कितना ऊंचा था, इसका पता इसी से लगता है कि वे कभी भी चुनाव नहीं हारे। 
 
दलितों के मसीहा बने : ई वी रामसामी ‘पेरियार’ तथा द्रमुक संस्थापक सी एन अन्ना दुरई की समानाधिकारवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन के सबसे भरोसेमंद चेहरा बन गए। इस आंदोलन का मकसद दबे कुचले वर्ग और महिलाओं को समान अधिकार दिलाना था, साथ ही यह आंदोलन ब्राह्मणवाद पर भी चोट करता था।
 
फरवरी 1969 में अन्ना दुरई के निधन के बाद वी आर नेदुनचेझिएन को मात देकर करुणानिधि पहली बार मुख्यमंत्री बने। उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में एम जी रामचंद्रन ने अहम भूमिका निभाई थी। वर्षों बाद हालांकि दोनों अलग हो गए और एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की। 
 
राजनीतिक सफर की शुरुआत : करुणानिधि 1957 से छह दशक तक लगातार विधायक रहे। इस सफर की शुरुआत कुलीतलाई विधानसभा सीट पर जीत के साथ शुरू हुई तथा 2016 में तिरूवरूर सीट से जीतने तक जारी रही। सत्ता संभालने के बाद ही करुणानिधि जुलाई 1969 में द्रमुक के अध्यक्ष बने और अंतिम सांस लेने तक वह इस पद पर बने रहे। 
 
अछूते नहीं रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से : इसके बाद वह 1971, 1989, 1996 तथा 2006 में मुख्यमंत्री बने। उन्हें सबसे बड़ा राजनीतिक झटका उस वक्त लगा, जब 1972 में एमजीआर ने उनके खिलाफ विद्रोह करते हुए उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया तथा उनसे पार्टी फंड का लेखा जोखा मांगा। इसके बाद उस साल एमजीआर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। एमजीआर ने अलग पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझगम (अन्नाद्रमुक) की स्थापना की और आज तक राज्य की राजनीति इन्हीं दो पार्टियों के इर्द गिर्द ही घूम रही है। 
 
1989 में दोबारा सत्ता पर काबिज : एमजीआर की अगुवाई में अन्नाद्रमुक को राज्य विधानसभा चुनावों में 1977, 1980 और 1985 में जीत मिली। एमजीआर का निधन 1987 में हुआ और तब तक वह मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान करुणानिधि को धैर्य के साथ विपक्ष में बैठना पडा़। इसके बाद 1989 में उन्होंने सत्ता में वापसी की।
 
कई बार कांग्रेस का साथ दिया : राजनीति में न तो स्थाई दोस्त होते हैं और न ही दुश्मन, इस कहावत को चरितार्थ करते हुए करुणानिधि ने कई बार कांग्रेस को समर्थन दिया। केंद्र की संप्रग सरकार में द्रमुक के अनेक मंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले राजग को भी समर्थन दिया तथा अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में भी उनके कई मंत्री थे। 
 
राजकुमारी से हुए लोकप्रिय : उन्होंने अपनी पहली फिल्म राजकुमारी से लोकप्रियता हासिल की। उनके द्वारा लिखी गई पटकथाओं में राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलावरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा आदि शामिल हैं।

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