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कश्मीर की हकीकत, 29 सालों में 2600 दिन हड़ताल

सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। कश्मीर में पिछले 29 सालों में हर चौथे दिन हड़ताल रही है। नतीजतन अब वादी-ए-कश्मीर को वादी-ए-हड़ताल भी कहा जाने लगा है। यह आंकड़ा अलगाववादियों के आह्वान पर होने वाली हड़तालों का है। सरकारी कर्फ्यू तथा अन्य मुद्दों पर हुए कश्मीर बंद को इसमें जोड़ा नहीं गया है।
 
कश्मीर में 29 सालों के 10 हजार 585 दिनों में से 2600 दिन हड़तालों की भेंट चढ़ गए। और अगर इन हड़तालों के कारण आर्थिक मोर्चे पर होने वाले नुकसान की बात करें तो अभी तक राज्य की जनता और सरकार को 4.18 लाख करोड़ की क्षति उठानी पड़ी है। यह अनुमान हड़ताल के कारण प्रतिदिन होने वाले 161 करोड़ के नुकसान की दर से है।
इस साल भी अभी तक कश्मीर में करीब 70 दिन बंद तथा 50 दिन कर्फ्यू की भेंट चढ़ चुके हैं। दो दिन पहले भी कश्मीर में हड़ताल रही थी। इन सबके लिए अलगाववादियों तथा आतंकियों को ही दोषी ठहराया जा सकता है। खासकर हड़ताली चाचा उर्फ कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी, जिनके एक भी आह्वान को आज तक कश्मीर में नकारा नहीं गया है।
 
इन 29 सालों में सबसे अधिक हड़तालों का आह्वान आतंकवाद के चरमोत्कर्ष वाले साल 1991 में हुआ था, जब 207 दिन कश्मीर वादी बंद रही थी। हालांकि इससे एक साल पूर्व भी कश्मीर ने वर्ष 1990 में 198 हड़तालों का जो रिकॉर्ड बनाया था वह आज तक नहीं टूट पाया है।
 
इसी प्रकार सबसे कम दिन हड़ताल वर्ष 2007 में हुई थीं, जब सिर्फ 13 दिन ही हड़तालें हुईं। उसके बाद फिर हड़तालों का क्रम जोर पकड़ने लगा है। वर्ष 2008 में अमरनाथ जमीन आंदोलन को लेकर कश्मीर में 33 दिनों तक हड़ताल रही थी तो पिछले साल इसमें दो दिनों का इजाफा हो गया था, जबकि यह साल भी नए रिकॉर्ड की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि अभी तक 40 हड़तालें तथा 8 दिन कर्फ्यू के यह साल अपने नाम कर चुका है।

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