श्रीनगर। कश्मीर में हिंसा ने फिर से तेजी पकड़ ली है। अप्रैल में भी हिंसा से मुक्ति नहीं मिल पाई है बल्कि अप्रैल की हिंसा ने नया रिकॉर्ड कायम किया है। पिछले 8 सालों में यह पहला मौका है जब किसी माह में कश्मीर ने 51 मौतें देखी हों। इन चार माह में 120 से अधिक लोगों की मौत भी हुई है। नतीजा सामने है। कश्मीर के हिंसा की ओर बढ़ते कदमों का परिणाम यह है कि इसने टूरिस्टों के कदमों को रोकना शुरू कर दिया है।
यह सच है कि गोलियों की गूंज के साथ शुरू हुआ अप्रैल महीना गोलियों की गूंज के साथ बीत गया। आतंकी हिंसा और हिंसक प्रदर्शनों में 20 आतंकियों और 13 सुरक्षाकर्मियों समेत 51 लोग मारे गए। इस दौरान 18 नागरिक भी मारे गए। आठ साल में यह पहला मौका है जब आतंकी हिंसा में किसी एक माह में इतने लोग मारे गए हों।
अप्रैल में कचडूरा मुठभेड़ के दौरान अलगाववादियों की ओर से आयोजित बंद से कश्मीर घाटी में पांच दिन जनजीवन लगभग ठप रहा। शोपियां में 13 दिन तक बंद रहा। वादी के अन्य जिला मुख्यालयों और कस्बों में बंद के सिलसिले को गिना जाए तो 30 दिन में से 27 दिन बंद में ही निकल गए।
अप्रैल 2018 की पहली सुबह जब सूरज उगा था तो दक्षिण कश्मीर के शोपियां और अनंतनाग में गोलियां गूंज रही थीं। तीन भीषण मुठभेड़ों में 13 आतंकी मारे गए थे। एक अनंतनाग में मरा था, जबकि 12 शोपियां में हुई दो मुठभेड़ों में। इन मुठभेड़ों तीन सैन्यकर्मी भी शहीद हुए। इस दौरान भड़की हिंसा में चार नागरिक भी मारे गए और 150 से ज्यादा लोग जख्मी हुए।
अप्रैल के अंतिम दिन दो आतंकियों के अलावा चार नागरिकों समेत छह लोग मारे गए। सुरक्षाबलों ने पिछले महीने दक्षिण कश्मीर के शोपियां, त्राल, पुलवामा, अनंतनाग व कुलगाम में ही सबसे ज्यादा बार कासो (कार्डन एंड सर्च ऑपरेशन) चलाया। करीब एक दर्जन कासो स्थानीय लोगों के प्रतिरोध और पथराव के चलते स्थगित भी हुए।
अधिकारियों की मानें तो पुलवामा के त्राल, द्रगड़ अनंतनाग, कचडूरा व दुरगाम शोपियां, खुडवनी-कुलगाम, कंगन-पुलवामा, लाम-त्राल या फिर इससे सटे इलाकों में ही सबसे ज्यादा मुठभेड़ें हुई हैं। पिछले माह मारे गए 20 आतंकियों में कई आतंकी कमांडर भी शामिल थे। नतीजतन कश्मीर में होने वाली मौतों के आंकड़ों ने कश्मीर की अलग ही तस्वीर पेश करनी आरंभ की है।
कश्मीर वादी में पिछले चार महीनों में हुई मौतों ने कश्मीर को मौत की वादी बना दिया है जहां प्रतिदिन एक मौत हो रही है। अर्थात 120 दिनों में 120 लोगों की मौत हुई है। इस चिंता में कठुआ बलात्कार और हत्याकांड के विरोध में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों का तड़का भी लगा है तो गृह मंत्रालय द्वारा जारी हिंसा के ताजा आंकड़े भी भयावह तस्वीर पेश करते हुए लोगों को कश्मीर से दूर रहने को मजबूर करने लगे हैं।