उत्तरप्रदेश के हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में सैकड़ों लोगों की मौत पर अब सियासत भी गर्मा गई है। सत्संग करने वाले भोले बाबा उर्फ सूरज पाल उर्फ बाबा साकार हरि का सियासी कनेक्शन भी सामने आया है। दलित वर्ग में अपनी गहरी पैठ रखने वाले भोले बाबा के दरबार में सियासी दलों के दिग्गज भी हाजिरी लगाते थे। क्या यहीं कारण है कि करीब सवा सौ मौत के गुनहगार भोले बाबा को पुलिस ने आरोपी तक नहीं बनाया है और न कोई केस दर्ज किया है। वहीं भोले बाबा का मध्यप्रदेश कनेक्शन भी सामने आया है। प्रदेश के ग्वालियर जिले में भी बाबा ने अपना आश्रम बना रखा और वहां पर अपना दरबार लगाता रहा है।
वहीं दूसरी ओर हाथरस हादसे पर सियासत भी गर्मा गई है और भाजपा और समाजवादी पार्टी आमने सामने आ गई है। हादसे पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के सवाल उठाने और योगी सरकार को घेरने के बाद अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पलटवार किया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस भगदड़ पर कहा, "कुछ लोगों की प्रवृति होती है कि इस प्रकार की दुखद घटनाओं पर वे राजनीति ढूंढते हैं। ऐसे लोगों की फितरत है, चोरी भी और सीना जोरी भी। यह हर व्यक्ति जानता है कि उन सज्जन की फोटो किसके साथ है और उनके राजनीतिक संबंध किनके साथ जुड़े हुए हैं। आपने देखा होगा कि पिछले दिनों रैलियों के दौरान इस प्रकार की भगदड़ कहां मचती थी और कौन इसके पीछे था..."
गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भोले बाबा के सत्संग में शामिल होते रहे हैं। सोशल मीडिया पर अखिलेश यादव के बाबा के सत्संग में शामिल होने की कई पोस्ट वायरल हो रही है। खुद अखिलेश यादव के ऑफिशियल अकाउंट पर पिछले साल जनवरी महीने में भोले बाबा के सत्संग में शामिल होने की पोस्ट हुई थी।
दरअसल उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के उत्तर भारत के राज्यों में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश में भी बाबाओ और राजनीति का गठजोड़ खूब परवान चढ़ रहा है। आज जब धर्म और राजनीति दोनों में गिरावट का संक्रमण काल चल रहा है, तब जहां राजनीतिक दल के नेता धर्मगुरु के दर पर मात्था ठेकने पुहंच रहे है वहीं बाबा और कथावचक भी खुले मंच से नेताओं का गुणगान कर रहे है। इसकी बानगी मध्यप्रदेश के बागेश्वर धाम के पीठाधश्वेर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पंडित प्रदीप मिश्रा के दरबार में राजनीतिक दलों के नेताओं की हाजिरी से समझा जा सकता है।
आज बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जन्मदिन है और खुद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को जन्मदिन की बधाई दी है। मुख्यमंत्री ने अपने ऑफिशियल सोशल मीडिया के जरिए धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को जन्मदिन की बधाई देते हुए लिखा “बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर, श्रद्धेय पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी, आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। श्री बालाजी महाराज से प्रार्थना है कि आपको दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य के साथ लोक कल्याण और मानवता की अप्रतिम सेवा की अनंत ऊर्जा प्रदान करें।“
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दरबार में समय-समय पर सियासत के बड़े चेहरे अपनी हाजिरी लगाते आए है। इसमें मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ सियासत के कई दिग्गज चेहरे शामिल है। चुनाव के समय में बाबाओं की वैल्यू और बढ़ जाती है। मध्यप्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव के समय बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने जिस तरह से अपने मंच से मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार की योजना का बखान करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने अंदाज में थैंक्यू बोला, वह इसकी एक बानगी है।
वहीं अपने बयानों के कारण अक्सर सुर्खियों में रहने वाले कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के दरबार में भी सियासत दिग्गज अपनी हाजिरी लगाते रहते है। अगर देखा जाए तो धर्म में राजनीति की गुंजाइश नहीं होती है लेकिन आज के दौर में जिस तरह से धार्मिक मंचों का उपयोग राजनीतिक दल के नेता अपनी सियासत चमकाने के लिए कर रहे है वह किसी से छिपा नहीं है। दरअसल धर्मिक मंचों से राजनीति कर नेता सीधे तौर पर वोटरों को प्रभावित कर रहे है और धर्म के सहारे सत्ता को हासिल करने के साथ सत्ता अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखना चाह रहे है। वहीं कथावाचक राजनीति का आभा मंडल के सहारे अपने दरबार को चमकाते है।
भारत के सियासी इतिहास में 90 के दशक से राजनीतिक सत्ता पर धर्मिक सत्ता के हावी होने का जो प्रभाव देखा गया था वह आज अपने चरम काल पर है। चुनाव में धर्म के सहारे राजनीतिक दल वोटरों के ध्रुवीकरण कर सत्ता पर काबिज होने की पूरी कोशिश करते आए है। भारत के इतिहास में धर्म और राजनीति दोनों सदियों से व्यक्ति और समाज पर गहरा प्रभाव डालते आए है। आजादी के बाद के अगर इतिहास के पन्नों को पलटे तो साफ पता चलता है कि धार्मिक केंद्र राजनीतिक सत्ता के केंद्रों के तौर पर कार्य करते आए है। वहीं आज जहां एक ओर देश में एक ओर दक्षिण से लेकर उत्तर के कई राज्यों में मठ-मंदिर सत्ता के शक्तिशाली केंद्र के रूप में नजर आते है तो दूसरी ओर इनके पीठाधीश्वर को राजनीति में खूब पंसद आ रही है।