Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

क्या एक बार फिर तबाही की कगार पर केदारनाथ? निर्माण कार्यों के बाद एक्सपर्ट्‍स की चेतावनी

क्या एक बार फिर तबाही की कगार पर केदारनाथ? निर्माण कार्यों के बाद एक्सपर्ट्‍स की चेतावनी

एन. पांडेय

, रविवार, 30 अक्टूबर 2022 (19:52 IST)
देहरादून। केदारनाथ में सितंबर अक्टूबर में दिखे एवलांच के अध्ययन के लिए गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट में इस कमेटी ने केदार क्षेत्र में निर्माण कार्य पर रोक लगाने के साथ ही किसी तरह की आपदा से निपटने के उपाय भी सुझाए हैं। एक्सपर्ट कमेटी ने सरकार को आगाह किया है कि केदारनाथ मंदिर के उत्तरी क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण करना घातक साबित हो सकता है।

टीम ने यहां सभी तरह के निर्माण पर तत्काल रोक लगाने की भी सिफारिश की है। केदारनाथ धाम में सितंबर और अक्टूबर महीने में एवलांच देखने को मिले थे। केदारनाथ वर्ष 2013 में भारी तबाही झेल चुका है। कमेटी ने 2013 जैसे किसी हादसे की स्थिति से बचाव के जो सुझाव दिए हैं इसमें बताया है कि केदारनाथ मंदिर के उत्तरी ढलान के साथ ही अलग-अलग ऊंचाई पर बेंचिंग की जानी चाहिए। इससे ढलान की तीव्रता कम हो जाएगी।इसी के साथ ढलानों पर कांक्रीट के अवरोधक लगाने की भी बात कमेटी ने कही है।

वैज्ञानिकों की इस टीम ने अक्टूबर के पहले सप्ताह में केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्रों में हवाई सर्वे किया था।इसके बाद स्थलीय सर्वेक्षण कर पूरे क्षेत्र की स्थिति और परिस्थिति का अध्ययन किया गया।वैज्ञानिकों ने केदारनाथ मंदिर से करीब पांच से छह किलोमीटर ऊपर चौराबाड़ी ग्लेशियर के सहयोगी ग्लेशियर में हिमस्खलन हुआ पाया है।

उत्तराखंड आपदा प्राधिकरण के जॉइंट सीईओ मोहम्मद ओबेदुल्ला अंसारी के अनुसार एवलांच से किसी भी तरह के खतरे की फिलहाल कोई बात नहीं है।केदारधाम में ज्यादा कंस्ट्रक्शन भी भविष्य में दिक्कत पैदा कर सकता है ये चेतावनी भी एक्सपर्ट ने दी है।

एक्सपर्ट्स के अनुसार, केदारनाथ धाम में वर्ष 2013 की आपदा के बाद केदार के पुनर्निर्माण के तहत जो बड़े स्तर पर कंस्ट्रक्शन हुआ उसमें स्टोन क्रेशर से उड़ने वाले डस्ट पार्टिकल से ग्लेशियर को काफी नुकसान हुआ है।

वाडिया इंस्टीट्यूट के रिटायर वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल के अनुसार, कंस्ट्रक्शन कार्य में ट्रैक्टर और बड़े ट्रक चलने से न सिर्फ धूल, डीजल के धुएं से भी ब्लैक पार्टिकल्स ग्लेशियर पर जम गए, बल्कि लगातार पत्थरों को तोड़ने से भी वाइब्रेशन जनरेट होने का प्रभाव ग्लेशियर पर पड़ा।

लगातार हेलीकॉप्टर की मूवमेंट से साउंड वाइब्रेशन जनरेट होने का भी प्रभाव हैंगिंग ग्लेशियर और दूसरे ग्लेशियरों पर पड़ा। ग्लेशियर पर डस्ट जमने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसी कारण पूरे इलाके का एनवायरनमेंट खतरे में आ गया है।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

गुजरात के मोरबी में बड़ा हादसा, झूला पुल टूटा, कई लोगों के गिरने की आशंका