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काशी का ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामला 1991 के वर्शिप एक्ट के दायरे में नहीं, जानें क्या हैं वर्शिप एक्ट 1991?

काशी का ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी मामला 1991 के वर्शिप एक्ट के दायरे में नहीं, जानें क्या हैं वर्शिप एक्ट 1991?
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विकास सिंह

, सोमवार, 12 सितम्बर 2022 (15:10 IST)
काशी के ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी केस में वाराणसी जिला कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए हिंदू पक्ष की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है। याचिका पर सुनवाई करते हुए जिला जज अजय कृष्णा विश्वेश ने हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई योग्य बताते हुए मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया। इस पूरे मामले में मुस्लिम पक्ष ने साल 1991 के वर्शिप एक्ट के तहत अपनी याचिका में दलील पेश कर परिसर में दर्शन-पूजन की अनुमति पर आपत्ति जताई थी। कोर्ट इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को करेगी। 
 
क्या है 1991 वर्शिप का एक्ट?-1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने देश के पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए एक कानून प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 (THE PLACES OF WORSHIP ACT, 1991) बनाया था, जिसके मुताबिक 15 अगस्त 1947 के बाद देश में किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदला नहीं जाएगा। एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 जैसी स्थिति हर धार्मिक स्थल की रहेगी इसके मुताबिक अगर 15 अगस्त 1947 को कहीं मंदिर है तो वो मंदिर ही रहेगा और कहीं मस्जिद है तो वो मस्जिद ही रहेगी। 
 
क्यों बनाया गया था 1991 का एक्ट?-प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (THE PLACES OF WORSHIP ACT, 1991) बनाने का मूल उद्देश्य अलग-अलग धर्मों के बीच टकराव को टालने का था। जब यह एक्ट बनाया गया था तब देश में रामजन्मभूमि विवाद पूरे चरम पर था और देश के अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद लगातार बढ़ता जा रहा था।  
 
राम मंदिर आंदोलन को कई दशकों तक कवर करने वाले  वरिष्ठ पत्रकार और कानूनविद् रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि 1991 में जब राममंदिर आंदोलन अपने पूरे उफान पर था तब केंद्र सरकार ने एक कानून बनाया था जिसमें कहा गया है 15 अगस्त 1947 को देश में धर्मिक स्थलों की जो स्थिति थी उसको बदला नहीं जाएगा। इस कानून का मुख्य कारण यह था कि उस वक्त ‘अयोध्या तो बस झांकी है,काशी मथुरा बाकी है’ और अयोध्या के बाद मुथरा-काशी की बारी  जैसे नारे जोर-शोर से लग रहे थे। ऐसे में टकराव टालने के लिए केंद्र सरकार ने यह एक्ट बनाया था।  
 
1991 का एक्ट बनने का बाद यह साफ हो गया था कि 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा सभी धर्म के धार्मिक स्थल फिर चाहे वो मंदिर हो, मस्जिद हो या चर्च हो, उसके मूल स्वरूप को आजादी के बाद जैसा है वैसा ही रखा जाएगा। कानून में इस बात की उल्लेख है कि अगर किसी भी विवादित ढांचे के स्वरूप में बदलाव को लेकर कोई मामले कोर्ट में आता है तो उस मामले की सुनवाई जुलाई 1991 के बाद नहीं की जा सकती है, इस तरह के मामले को खारिज कर दिया जाएगा। 1991 में अयोध्या में राम मंदिर विवाद के समय बनाए गए एक्ट में अयोध्या के प्रकरण को इस लिए नहीं शामिल किया गया था क्योंकि अयोध्या का मामला पहले से कोर्ट में चल रहा था। 

ऐसे में आज वाराणसी कोर्ट के फैसले से वर्शिप एक्ट-1991 को लेकर एक नई बहस छिड़ जाएगी। वारणासी जिला कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट जाने की बात कही। ऐसे में अभी यह मामला अभी लंबा खिंचता दिख रहा है।

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