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100 साल पहले 10 रुपए के किराए के घर से शुरू हुई थी गीताप्रेस की शुरुआत

गिरीश पांडेय
Gita Press Gorakhpur: गीताप्रेस की शुरुआत करीब 100 साल पहले मात्र 10 रुपए से हुई थी। मकसद था लोककल्याण, सनातन धर्म,  सदाचार, नैतिकता के प्रचार-प्रसार एवं के लिए गीता के संदशों को देश-दुनिया में पहुंचाना। पहली बार जब कहीं से गीता को छपवाया गया तो उसमें कई अशुद्धियां रह गईं। फिर ये तय हुआ कि इस काम को गीताप्रेस खुद करे। 
 
इसी क्रम में इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए गीताप्रेस ने इस विधा की अन्य धार्मिक, नैतिक, शिक्ष प्रद, बाल उपयोगी साहित्यिक किताबों का प्रकाशन शुरू किया। ये किताबी इतनी सस्ती होती थीं कि प्रकाशन जगत के लिए यह चमत्कार जैसा था। 100 साल पहले जिस गीताप्रेस 10 रुपए किराए के भवन में शुरू हुआ गीताप्रेस, आज दो लाख वर्गफीट में फैल चुका है। 
 
सौ साल में 93 करोड़ किताबों के प्रकाशन की उपलब्धि : पूरी दुनिया में देश के लिए गौरव गीताप्रेस ने 100 साल में करीब 93 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं जिसमें 15 भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता की 18 करोड़ से अधिक प्रतियां भी हैं। बिना किसी विज्ञापन-चंदे के चल रहे गीता प्रेस ने 100 साल में तमाम उतार-चढ़ाव देखे मगर श्रीमद्भगवद्गीता का प्रकाशन कभी भी बंद नहीं किया। निस्सवार्थ भाव से सनातन धर्म को बढ़ाने में लीन गीता प्रेस ने गांधी शांति पुरस्कार मिलने के बाद एक बार फिर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। नेल्सन मंडेला, बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान जैसी शख्सियतों को मिल चुके गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुना जाना गीताप्रेस के सामाजिक सरोकारों की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
 
यूं पड़ी गीता प्रेस की नींव : गीताप्रेस की स्थापना 29 अप्रैल 1923 को कारोबारी व धार्मिक प्रवृत्ति के जयदयाल गोयन्दका ने हिन्दी बाजार (पहले उर्दू बाजार) में किराए के भवन में की थी। भवन का मासिक किराया 10 रुपए महीना था। 1926 में गीता प्रेस के लिए यह भवन छोटा पड़ने लगा तब उसे शेषपुर में ली गई अपनी भूमि पर शिफ्ट करना पड़ा।
 
विश्व विख्यात गृहस्थ संत भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार के गीताप्रेस से जुड़ने और कल्याण पत्रिका का प्रकाशन शुरू होने के साथ ही इसकी ख्याति उत्तरोत्तर वैश्विक होती गई। साहित्य प्रकाशन के माध्यम से सनातन धर्म और संस्कृति को बचाए रखने में इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। गीताप्रेस से 5 भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता की 18 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। 
 
आज गीताप्रेस के पास दो लाख वर्ग फीट जमीन है जिसमें 1.45 लाख वर्ग फीट भूमि में प्रेस, कार्यालय व मशीनें हैं। 55 हजार वर्ग फीट में दुकानें व आवास हैं। अब तक 15 भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता की करीब 18 करोड़ 40 लाख प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिहाज से गीताप्रेस विश्व की सबसे बड़ी प्रकाशन संस्था है। घर-घर में श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवत ग्रंथों एवं अन्य धार्मिक पुस्तकों को पहुंचाने का श्रेय गीताप्रेस को ही जाता है।
 
कल्याण के लिए गांधी जी ने लिखा था पहला लेख : अप्रैल 1926 में मारवाड़ी अग्रवाल सभा के आठवें अधिवेशन में घनश्यामदास बिड़ला ने हनुमान प्रसाद पोद्दार जिन्हें भाईजी के नाम से पुकारा जाता था, को अपने विचारों व सिद्धांतों पर आधारित एक पत्रिका निकालने की सलाह दी। गीताप्रेस के संस्थापक जयदयाल गोयंदका की सहमति से 22 अप्रैल 1926 को पत्रिका का नाम कल्याण तय हुआ। इसी साल भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार के संपादकत्व में कल्याण का प्रथम साधारण अंक मुंबई से प्रकाशित हुआ। हनुमान प्रसाद पोद्दार के महात्मा गांधी से व्यक्तिगत संबंध थे। पोद्दार के आग्रह पर महात्मा गांधी ने कल्याण के लिए पहला लेख लिखा था।
 
बिना विज्ञापन छपीं कल्याण की 18 करोड़ प्रतियां : कल्याण के लिए लेख लिखने का आग्रह करने के दौरान महात्मा गांधी ने हनुमान प्रसाद पोत्दार भाईजी से एक आग्रह किया था कि वह इस पत्रिका में कभी विज्ञापन न छापें। भाई जी ने उस आग्रह को ऐसा माना कि आजतक कल्याण में कोई विज्ञापन नहीं छपा है और उसकी बिना विज्ञापन के करीब 18 करोड़ 10 लाख से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
 
2 लाख नियमित पाठक, 4700 आजीवन सदस्य : कल्याण के करीब पौने दो लाख नियमित पाठक हैं। इस पत्रिका की मांग को ऐसे भी समझा जा सकता है कि अब तक इसके करीब दर्जन भर विशेषांक का 30 से अधिक बार पुनर्मुद्रण हो चुका है। कल्याण के करीब हर विशेषांक के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। कल्याण का वार्षिक मूल्य 300 रुपए है, जिसमें डाक खर्च गीताप्रेस वहन करता है।
 
लंबे समय तक कल्याण, पाठकों को आजीवन सदस्यता देता रहा। करीब 40 वर्ष पूर्व 100 रुपए आजीवन सदस्यता शुल्क था। उसके बाद से गीताप्रेस आजीवन सदस्यता नहीं देता। 40 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी करीब 4700 आजीवन सदस्य हैं।
 
बतौर राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं रामनाथ कोविंद आ चुके हैं गीता प्रेस : विश्व प्रसिद्ध गीताप्रेस का अतीत कई और मायनों में सुनहरा है। यह ऐसी जगह हैं जहां दुनियाभर के जाने कितने राजदूत, देश के कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री व दूसरे महानुभाव आ चुके हैं। देश के दो राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद व रामनाथ कोविंद भी यहां आ चुके हैं और मुक्तकंठ से गीताप्रेस की तारीफ कर चुके हैं। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद 29 अप्रैल 1955 को गीताप्रेस आए थे। उन्होंने गीताप्रेस में स्थापित लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था। देश के पिछले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी 4 जून 2022 को यहां आए थे और उन्होंने यहां करीब एक घंटा बिताया था। वह गीताप्रेस को देखकर मुग्ध हो गए थे।
 
शताब्दी वर्ष के समापन पर आने वाले हैं प्रधानमंत्री : गीता प्रेस का शताब्दी वर्ष इसी साल पूरा हो चुका है। यूं तो गीता प्रेस ने औचारिक रूप से शताब्दी वर्ष का समापन कर दिया है मगर समापन समारोह अभी बाकी है और उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगे। प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम में शिरकत की सैद्धांतिक सहमति दे दी पर अभी तारीख घोषित नहीं हुई है। उम्मीद थी कि जून के प्रथम सप्ताह में उनका कार्यक्रम तय हो जाएगा पर अभी तक कार्यक्रम आया नहीं है। गांधी शांति पुरस्कार मिलने के बाद अब गीता प्रेस के शताब्दी वर्ष समारोह का समापन और भव्य तरीके से होगा। 
 
सम्मान का पूरा सम्मान, पर पुरस्कार राशि को पूरी विनम्रता से ना : गीताप्रेस के प्रबंधक डॉ. लालमणि तिवारी संस्थान को प्रीतिष्ठित गांधी पुरस्कार मिलने से बेहद खुश हैं। वह कहते हैं कि सम्मान का सम्मान है। पर पूरी विनम्रता से पुरस्कार राशि हमें नहीं चाहिए। हमारा मकसद शुरू से ही पैसा कमाना नहीं, लोककल्याण का रहा है। बिना विज्ञापन एवं चंदे के अब तक ईश्वर की कृपा से यह काम होता रहा है। आगे भी उन्हीं की कृपा से होता रहेगा। बोर्ड ऑफ ट्रस्ट पर कोई खर्च नहीं है। सभी ट्रस्टी अपने खर्च पर बैठकों में आते-जाते हैं। सभी सेवा भाव से जुड़े हैं तो ईश्वरीय मदद मिलती रहती है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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