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कलाएं यदि आत्मा की खोज नहीं कर सकतीं तो वे कालजयी नहीं बन सकतीं : डॉ. व्यास

50वें खजुराहो नृत्य समारोह का समापन

कलाएं यदि आत्मा की खोज नहीं कर सकतीं तो वे कालजयी नहीं बन सकतीं : डॉ. व्यास
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सारंग क्षीरसागर

, सोमवार, 26 फ़रवरी 2024 (20:25 IST)
Khajuraho Dance Festival 2024 News: खजुराहो में आयोजित 50वें नृत्य समारोह में 5वें दिन कवि डॉ. राजेश कुमार व्यास और आखिरी दिन प्रख्यात पुरातत्वविद शिवाकांत बाजपेयी ने कलावार्ता में हिस्सा लिया। डॉ. व्यास ने कहा कि कलाएं यदि आत्मा की खोज नहीं कर सकतीं तो वे कालजयी नहीं बन सकती। वहीं, बाजपेयी ने कहा कि नृत्य संगीत भी कोई आज की चीज नहीं है, बल्कि यह हमारी प्राचीनतम धरोहर है।
 
समारोह का 5वां दिवस रविवार की शुरुआत भी प्रतिदिन की तरह कलावार्ता के साथ हुई। इस अवसर पर नई पीढ़ी के साथ संवाद के लिए उपस्थित थे जयपुर के जाने-माने कला समीक्षक डॉ. राजेश कुमार व्यास, जिन्होंने ‘कला की अंतर्दृष्टि’ विषय पर अपनी बात रखी। शुरुआत में उन्होंने कहा कि कलाओं को जानने के लिए उसकी सतह तक नहीं, बल्कि अंदर तक जाना पड़ेगा। ब्रम्हृ का अर्थ है आत्मा से साक्षात्कार और सभी भारतीय कलाकार ब्रम्ह हैं। कलाएं यदि आत्मा की खोज नहीं कर सकतीं तो वे कालजयी नहीं बन सकतीं। कला आत्मा का अन्वेषण है।
उन्होंने नई पीढ़ी के कलाकारों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि आपने यह सोच लिया कि हमें सब आ गया, तो फिर आपका कलात्मक विकास संभव नहीं है, बल्कि 'कुछ भी नहीं' में तमाम संभावनाएं छिपी हुई हैं। जब आप अपनी कला में लीन होकर स्वयं को विलीन कर देंगे तब आपकी सराहना होना प्रारम्भ हो जाएगा। 
 
सर्जन के लिए स्वयं का विसर्जन जरूरी : उन्होंने कहा कि जब कोई कलाकार मंच पर अपनी कला का प्रस्तुतिकरण कर रहा होता है तो वह स्वयं नहीं रह जाता है, बल्कि उसमें समा जाता है, जो वो प्रस्तुत कर रहा होता है। क्योंकि सर्जन के लिए स्वयं का विसर्जन आवश्यक है। मिथक पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जो अद्भुत और अलौकिक है वह मिथक है, हमारी भारतीय कलाएं भी अद्भुत और अलौकिक हैं। केवल कलाकार रहना जरूरी नहीं, बल्कि कलाओं की अंतर्दृष्टि होगी तब हम अलौकिक होंगे।
प्राचीनतम धरोहर है नृत्य और संगीत : कार्यक्रम के आखिरी दिन कलावार्ता में हिस्सा लेते हुए प्रख्यात पुरातत्वविद शिवाकांत बाजपेयी ने कहा कि पुरातत्व जीवन के हर हिस्से से संबंधित है। कोई भी चीज जो हमारे वेद पुराणों में है वह पुरातात्विक पैमानों से पुष्ट और प्रमाणित होती है। नृत्य संगीत भी कोई आज की चीज नहीं है, वल्कि यह हमारी प्राचीनतम धरोहर है, पुरा और प्रागैतिहासिक काल में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। वल्कि यूं कहें कि ये धरोहर तो पौराणिक और वैदिक काल से हमारे पास है। 
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बाजपेयी खजुराहो नृत्य समारोह के अंतर्गत विमर्श और संवाद के कार्यक्रम कलावार्ता में पुरातात्विक साक्ष्यों के संदर्भ में हमारे संगीत और सांस्कृतिक अतीत के कलात्मक पहलुओं पर बात कर रहे थे। उन्होंने पुरातत्व नृत्य और संगीत के परस्पर संबंधों पर भी बात की।
 
बाजपेई ने कहा कि नृत्य संगीत या दूसरी कलाएं हमारी प्राचीनतम परम्पराओं में पहले से विद्यमान रही हैं, खजुराहो सहित तमाम प्राचीन मंदिर और स्मारक इसके प्रमाण हैं। नृत्य संगीत की परंपरा प्रागैतिहासिक काल से चली आ रही है। उन्होंने प्राचीन सिंधु घाटी और हड़प्पा सभ्यता का जिक्र करते हुए बताया कि हमारा संगीत और नृत्य इससे भी प्राचीन हैं।
 
अशोक से लेकर शुंग काल से लेकर मौर्य और गुप्तकालीन पुरातात्विक प्रमाणों से यह बात सामने रखने की कोशिश की कि तब भी कला संस्कृति अपनी उत्कृष्ट अवस्था में थी। उन्होंने बेल्लारी कर्नाटक से खुदाई में मिले एक पाषाणकालीन डांसिंग पैनल को स्लाइड के माध्यम से उद्धृत करते हुए कहा तब भी लोग खेती-बाड़ी करते हुए खाली समय में कुछ तो करते ही थे, ये पैनल उसी का उदाहरण है।
उन्होंने अवनद्ध वाद्यों, घन वाद्यों, सुशिर वाद्यों और तार वाद्यों के बारे में बताया कि ये वाद्य प्रागैतिहासिक काल और उसके बाद भी थे। एक हजार साल पुराने मंदिरों में अंकित इन मूर्तियों में ये वाद्य दृष्टव्य हैं। उन्होंने हड़प्पा सभ्यता की खुदाई में मिली पांच हजार साल पुरानी डांसिंग गर्ल या अर्नेस्ट मैके द्वारा कही गई अंडाकार सीटी और घुंघरुओं की तस्वीरें बताते हुए कहा कि ये वाद्य आज के नहीं है बल्कि सदियों पहले से या मानव सभ्यता के साथ विकसित हुए हैं।
 
तब संगीत नृत्य अपने उत्कृष पर थे : उन्होंने मौर्य काल के संगीत में भी वाद्यों की मौजूदगी का जिक्र किया और कहा कि पुरातत्व हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को पुष्ट करता है। सिंधु घाटी ओर मोहन जोदड़ों जो सर्वाधिक प्राचीन सिविलाइजेशन मानी जाती है, के दौरान भी कला संगीत नृत्य अपने उत्कृष पर थे। 
 
खजुराहो मंदिरों की तमाम स्लाइड्स के माध्यम से उन्होंने बताया कि इन मंदिरों पर उत्कीर्ण नृत्यरत प्रतिमाएं इस बात का सबूत हैं कि नृत्य संगीत की परंपरा बहुत प्राचीन हैं और आज जो नृत्य मुद्राएं हम देखते हैं वे सब इन प्रतिमाओं से अभिप्रेरित होकर गढ़ी गई हैं। शुरू में प्रख्यात कला समीक्षक विनय उपाध्याय ने विषय प्रवर्तन किया।
 
इस अवसर पर उस्ताद अलाउदीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भिसे ने बाजपेई का स्वागत किया और अंत में सभी का आभार जताते हुए कहा कि यह एक सांस्कृतिक अनुष्ठान या यज्ञ है, इसमें आप सभी ने अपने अपने स्तर पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जो आहुति दी उसके लिए आभार और धन्यवाद जैसे शब्द छोटे हैं। वास्तव में सभी का सहयोग स्तुत्य है और उसी की वजह से यह आयोजन सफल हुआ।

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