Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

मोदी के जन्मदिन पर फिर गुर्राएंगे चीते, क्या है इस फुर्तीले जानवर के भारत में विलुप्त होने की वजह?

मोदी के जन्मदिन पर फिर गुर्राएंगे चीते, क्या है इस फुर्तीले जानवर के भारत में विलुप्त होने की वजह?
, मंगलवार, 13 सितम्बर 2022 (12:20 IST)
नई दिल्ली। नामीबिया से लाए जा रहे 8 चीतों को 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा। सबसे फुर्तीला जानवर माना जाने वाला चीता भारत में पूरी तरह विलुप्त हो चुका है। इसकी मुख्य वजह शिकार और रहने का ठिकाना नहीं होने को माना जाता है।
 
माना जाता है कि मध्य प्रदेश के कोरिया के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 1947 में देश में अंतिम 3 चीतों का शिकार कर उन्हें मार गिराया था। साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से देश से चीतों के विलुप्त होने की घोषणा की थी। एक समय ऊंचे पर्वतीय इलाकों, तटीय क्षेत्रों और पूर्वोत्तर को छोड़कर पूरे देश में चीतों के गुर्राने की गूंज सुनाई दिया करती थी।
जानकारों का कहना है कि चीता शब्द संस्कृत के चित्रक शब्द से आया है, जिसका अर्थ चित्तीदार होता है। भोपाल और गांधीनगर में नवपाषाण युग के गुफा चित्रों में भी चीते नजर आते हैं।
 
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के पूर्व उपाध्यक्ष दिव्य भानु सिंह की लिखी एक पुस्तक 'द एंड ऑफ ए ट्रेल-द चीता इन इंडिया' के अनुसार, '1556 से 1605 तक शासन करने वाले मुगल बादशाह अकबर के पास 1,000 चीते थे। इनका इस्तेमाल काले हिरण और चिकारे के शिकार के लिए किया जाता था।'
 
इस पुस्तक के मुताबिक, कहा जाता है कि अकबर के बेटे जहांगीर ने पाला के परगना में चीते के जरिये 400 से अधिक हिरण पकड़े थे। शिकार के लिए चीतों को पकड़ने और कैद में रखने के कारण प्रजनन में आने वाली दिक्कतों के चलते इनकी आबादी में गिरावट आई। चीतों को पकड़ने में अंग्रेजों की बहुत कम दिलचस्पी थी, हालांकि वे कभी-कभी ऐसा किया करते थे।
20वीं शताब्दी की शुरुआत तक भारतीय चीतों की आबादी गिरकर सैंकड़ों में रह गई। कई रियासतों के राजकुमारों ने अफ्रीकी चीतों को आयात किया। 1918 से 1945 के बीच लगभग 200 चीते आयात किए गए थे।
 
अंग्रेजों के भारत से जाने और रियासतों के एकीकरण के बाद भारतीय चीतों की संख्या कम हो गई। साथ ही इनसे किए जाने वाले शिकार का चलन भी खत्म हो गया।
 
साल 1952 में स्वतंत्र भारत में वन्यजीव बोर्ड की पहली बैठक में सरकार ने मध्य भारत में चीतों की सुरक्षा को विशेष प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए इनके संरक्षण के लिए साहसिक प्रयोगों का सुझाव दिया था।
 
1970 के दशक में एशियाई शेरों के बदले में एशियाई चीतों को भारत लाने के लिए ईरान के शाह के साथ बातचीत शुरू हुई। ईरान में एशियाई चीतों की कम आबादी और अफ्रीकी चीतों के साथ इनकी अनुवांशिक समानता को देखते हुए भारत में अफ्रीकी चीते लाने का फैसला किया गया।
 
चीतों को देश में लाने की कोशिशें साल 2009 में फिर से जिंदा हुईं। साल 2010 और 2012 के बीच 10 स्थलों का सर्वेक्षण किया गया था। मध्य प्रदेश में कुनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) को चीतों को लाने के लिए तैयार माना जाता है। इस संरक्षित क्षेत्र में लुप्तप्राय एशियाई शेरों को लाने के लिए भी काफी काम किया गया था।
 
भारत ने चीतों को लाने के लिए जुलाई में नामीबिया के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 16 सितंबर को 8 चीते नामीबिया की राजधानी विंडहोक से भारत लाए जाएंगे और 17 सितंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर ये जयपुर हवाई अड्डे पर पहुंचेंगे। इसके बाद इन्हें हेलीकॉप्टरों के जरिये इनके नए ठिकाने कुनो पहुंचाया जाएगा। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

कार में लगी आग, सीएम शिंदे बने मददगार, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल