नई दिल्ली। नई दिल्ली के लुटियंस इलाके में औरंगजेब रोड पर स्थित इजराइली दूतावास के बाहर शुक्रवार की शाम मामूली आईईडी विस्फोट हुआ है। हालांकि धमाके में कोई हताहत नहीं हुआ। विस्फोट स्थल से एक लिफाफा बरामद हुआ है जिस पर इजराइली दूतावास का पता लिखा है। इसराइल ने भी इस घटना को आतंकी माना है। दूतावास के बाहर धमाके के बाद इसराइली खुफिया एजेंसी 'मोसाद' एक्शन में आ गई है। कहा जा रहा है कि इसराइली जांच एजेंसी भी जल्द ही भारत आएगी और मामले की जांच करेगी।
धमाके के बाद इसराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बयान जारी कर कहा कि उन्हें भारत सरकार पर पूरा भरोसा है कि वे भारत में रहने वाले इजरायलियों की सुरक्षा करेंगे। NIA की टीम इजरायली दूतावास के पास हुए धमाके के बाद अपनी टीम के साथ मौजूद है। NIA की टीम मौके का मुआयना कर रही है। कई सीनियर अधिकारी भी मौजूद हैं।
जानिए अरब देश क्यों खौफ खाते हैं इसराइल से : इसराइल एक बहुत छोटा देश है जिसकी आबादी करीब 80 लाख यहूदियों की है, लेकिन इस छोटे से देश से कई इस्लामी देशों में बसे 150 करोड़ मुस्लिम क्यों खौफ खाते हैं? आतंकवादी संगठन आईएसआईएस का पूरे अरब देशों में आतंक है, वह बेरहमी से लोगों का कत्लेआम करता है, लेकिन अब तक उसने इसराइल की तरफ एक गोली भी नहीं चलाई है, जबकि इसराइल, सीरिया का पड़ोसी देश है, एक भी इजराइल के नागरिक को छुआ भी नहीं गया, क्योंकि उनको पता है जहां उन्होंने इसराइल को थोड़ा भी छेड़ा, अगले ही पल या तो इसराइल की ओर से मिसाइल दाग दिया जाएगा या इसराइली सेना चढ़ाई कर देगी। हालाँकि इसराइल की इस आक्रामकता और कार्रवाई के कारण मानवाधिकार के सवाल भी उठते रहे हैं। इसराइल ने इसकी परवाह कम ही की है।
इसराइल का यह रुतबा ऐसे ही नहीं बना है। बात है इसराइल के बनने की, जब हिटलर से जान बचाकर यहूदी लोग इसराइल पहुंचे थे और इसराइल बनाया था, तब अरब के मुस्लिमों ने पहली बार इसराइल पर 1948 में हमला किया था। उस समय इसराइल बना ही था, उनके पास कोई बड़ी सेना या धन, गोला-बारूद नहीं था, परंतु फिर भी इसराइल ने अरब को 1948 में बड़ी आसानी से हरा दिया। तब से लेकर अब तक अरब देशों ने 6 बार इसराइल से युद्ध लड़ा है और इसराइल ने हर बार मुस्लिम देशों को हराया है।
इसी बात को अगर आंकड़ों की नजर से देखें तो 1948 से अब तक अरब-इसराइल युद्धों में इसराइल के 22000 सैनिक शहीद हुए हैं वहीं मुस्लिम देशों के 91000 से अधिक मारे गए हैं। इसराइल ऐसा देश है जो चारों ओर से मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है फिर भी किसी मुस्लिम देश या आईएसआईएस या मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की मजाल नहीं कि इसराइल को छेड़ सकें।
अगर यूं कहा जाए कि इसराइल, मुस्लिम देशों का काल है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। साथ ही इसराइल खुद पहले हमला नहीं करता, बस उसको कोई छेड़े तो इसराइल उसे छोड़ता नहीं है। इस तुलना मेंं एक ये दिक्कत ज़रूर है कि इसराइली हमलों में कई बार आम नागरिक भी मारे गए हैं जिसमें बच्चे और महिलाएँ भी शामिल हैं। इसको लेकर इसराइल को अपनी ही सेना के ख़िलाफ़ जाँच तक बिठानी पड़ी है। बच्चों और महिलाओं के मारे जाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल की आलोचना भी हुई है। > दूसरी ओर भारत के हालिया चर्चित लक्ष्य्यभेदी हमले केवल आतंकी ठिकानों पर किए गए थे। यहाँ तक की पाकिस्तानी सैनिक भी तब मारे गए जब वो आतंकियों के बचाव में आगे आए। इसीलिए भारत की कार्रवाई तो दरअसल ज़्यादा सधी हुई और बेहतर मानी जाएगी।
मोसाद और सेना का खौफ : इसराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद, सेना का तो ऐसा खौफ है कि मोसाद के डर से किसी आतंकी संगठन के मुखिया, किसी मुस्लिम देश के नेता की औकात नहीं कि इसराइल की तरफ टेढ़ी आंख करके देखे। जर्मनी के म्यूनिख ओलिंपिक में जिहादी तत्वों ने इसराइल के 11 खिलाड़ियों की हत्या कर दी थी और वे जिहादी तत्व किसी मुस्लिम देश में जा छुपे थे, जिनकी संख्या सैकड़ों में थी, लेकिन इसराइल की मोसाद के 30 जवान उस मुस्लिम देश में घुसकर उन जिहादियों को मार आए थे और मोसाद का सिर्फ एक जवान शहीद हुआ था।
एक बार एक मुस्लिम संगठन के लोगों ने कुछ इसराइली लोगों की हत्या कर दी, फिर सब फरार हो गए। सबसे अपना देश और नाम हुलिया बदल दिया। पर इसराइल की मोसाद इतनी खौफनाक है, उसके जासूसों ने 25 साल बाद उन कातिलों को दक्षिण अमेरिका के एक होटल में जाकर खत्म कर दिया।
भारत को इसराइल से यह सीखने की जरूरत है, अगर इसराइल की सी आक्रामकता 10 प्रतिशत भी भारत में आ जाए तो पाकिस्तान, चीन क्या हर जिहादी देश दुनिया के नक्शे से मिट जाए।
इसराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद दुनिया की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी मानी जाती है और कहा जाता है कि ओसामा को पकड़ने के लिए अमेरिका ने भी मोसाद की मदद मांगी थी। इसराइल अपने ऊपर हमला करने वाले आतंकियों को चुन-चुनकर मारने के लिए मशहूर है फिर चाहे वो दुनिया के किसी भी देश में छिप जाएं।
रैथ ऑफ गॉड' ऑपरेशन :1972 के म्यूनिख ओलिंपिक खेलों के दौरान फिलीस्तीन और लेबनान के आतंकवादियों ने 11 इसराइली खिलाड़ियों की निर्मम हत्या कर दी थी। पूरी दुनिया इस हमले से सकते में आ गई थी।
इस हमले के बाद जर्मनी सेना ने कार्रवाई करते हुए 5 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया था, लेकिन 3 आतंकी भागने में कामयाब हो गए थे जिनमें से एक इस हमले का मास्टरमाइंड भी था।
इसराइल अपने खिलाड़ियों की हत्या का बदला लेने के लिए तत्पर था और इस काम के लिए उसने अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को तैनात किया। मोसाद ने ' रैथ ऑफ गॉड' नाम से एक खुफिया ऑपरेशन चलाया और उन तीनों आतंकियों को ढूंढकर मार दिया।
वहीं दूसरी और भारत अपने ऊपर होने वाले आतंकी हमलों की केवल निंदा ही करता आया है। आतंकियों नें मुंबई में घुस के हमला किया मगर भारत ने सिर्फ कड़ी निंदा की। उस समय की कांग्रेस सरकार ने वोटबैंक की तुष्टिकरण के लिए आतंकी ठिकानों पर कोई कार्रवाई नहीं की और सेना को हमला न करने के आदेश दिए गए।
इसके बाद हाल ही में पाकिस्तानी आतंकियों नें पठानकोट एयरबेस पर भी हमला किए और कई जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा मगर भारत सिर्फ पकिस्तान से बात ही करता नजर आया। और कुछ समय पहले उड़ी में सेना के कैंप पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें सेना के 20 जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने सरकार को इसराइल की तर्ज पर काम करने को कहा।
इसी सोच का नतीजा है सर्जिकल स्ट्राइक, जिसकी एक बार की कार्रवाई से ही पाकिस्तान को सांप सूंघ गया। इसी सोच के बल पर भारत, पाकिस्तान और चीन का मुकाबला कर सकता है अन्यथा उसे इन दोनों देशों के आक्रामक विस्तारवाद का सामना करना पड़ेगा।
हमें इजराइल के ऑपरेशन ऐंटेबे को अपना आदर्श बना लेना चाहिए ताकि चीन और पाकिस्तान जैसे देश कुछ करने से पहले सौ बार सोचें। इसराइल एक ऐसे मजबूत इरादों वाला छोटा-सा देश है जो शायद दुनिया में किसी भी बड़ी से बड़ी ताकत से नहीं डरता, उसकी मारक क्षमता कमाल की है, उनके निर्णय तेज हैं और केवल देश हित के लिए हैं और उसने झुकना तो सीखा ही नहीं है।