नई दिल्ली। राफेल युद्धक विमानों के सौदे को लेकर कांग्रेस द्वारा सरकार पर लगातार हमलों पर पलटवार करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने विपक्षी दल पर 15 सवाल दागे और पूछा कि यूपीए के शासनकाल में इस सौदे में विलंब के कारण क्या राष्ट्रीय सुरक्षा गंभीर रूप से प्रभावित नहीं हुई थी।
जेटली ने फेसबुक पर लिखे एक लेख में कहा कि कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने ऊंची कीमत पर सौदा किया है, लेकिन उसी वक्त कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एवं अन्य लोग कीमत का आंकड़ा अलग-अलग बता रहे हैं।
उन्होंने पूछा कि गांधी ने दिल्ली में और कर्नाटक में अप्रैल/मई में 700 करोड़ रुपए प्रति विमान कीमत बताई थी। संसद में उन्होंने 520 करोड़ रुपए प्रति विमान कर दी। रायपुर में उन्होंने 540 करोड़ रुपए बताई, जबकि जयपुर में गांधी ने एक ही भाषण में 540 करोड़ रुपए और 520 करोड़ रुपए के दो आंकड़े कहे। हैदराबाद में उन्होंने एक नया आंकड़ा 526 करोड़ रुपए बताया। सच का एक ही आंकड़ा होता है, जबकि झूठ के अनेक।
जेटली ने कहा कि क्या ये आरोप राफेल सौदे के तथ्यों की जानकारी लिए बिना ही लगाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे कांग्रेस की ओर से उत्तर मिलने का इंतजार करेंगे, भले ही उसमें अब तक किए गए दावों से भिन्नता हो। अगर उन्हें उत्तर नहीं भी मिला तो भी वे आने वाले समय में कुछ और खास तथ्यों को सबके विचारार्थ रखेंगे।
वित्तमंत्री ने सवाल किए कि क्या मीडियम मल्टीरोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट खरीदने में विलंब के लिए उससे जुड़े कुछ वैसे ही कारण थे जैसे बोफोर्स तोप खरीदी के समय थे? क्या गांधी इस बात से इनकार कर सकते हैं कि बेसिक एयरक्राफ्ट में भारत के अनुकूल विशिष्टताएं, हथियार आदि फिट करने के बाद संप्रग सरकार द्वारा वर्ष 2007 में तय की गई विमान की कीमत, राजग सरकार द्वारा तय की गई कीमत की तुलना में कम से कम 20 प्रतिशत अधिक थी।
उन्होंने पूछा कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष को इस तथ्य की जानकारी है कि राजग सरकार के समय तय विमान की बेसिक कीमत संप्रग के समय तय कीमत से नौ प्रतिशत कम है। उन्होंने कहा कि मीडियम मल्टीरोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट खरीदने का मूल प्रस्ताव 1 जून 2001 को आया था, लेकिन 27 जून 2012 को संप्रग सरकार ने इस सौदे की पुनर्समीक्षा करने का निर्देश दिया था। इससे पूरे 11 साल की कवायद खत्म हो गई थी और प्रक्रिया को फिर से शुरू किया गया था।
जेटली ने कहा कि भारत की स्क्वाड्रन क्षमता पुराने पड़ते जा रहे विमानों के कारण तेजी से कमजोर होती रही। संप्रग सरकार की धीमी चाल एवं अगंभीर रवैए के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं से बड़े पैमाने पर समझौता किया गया। (वार्ता)