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अभिषेक ऐसे तीरंदाज हैं, जो हाथों से नहीं बल्कि दांतों से तीर चलाते हैं

अभिषेक ऐसे तीरंदाज हैं, जो हाथों से नहीं बल्कि दांतों से तीर चलाते हैं
, शनिवार, 3 मार्च 2018 (16:15 IST)
नागपुर। अपनी मेहनत और लगन से सफलता पाने वाले 25 वर्षीय अभिषेक थावरे, देश के पहले ऐसे तीरंदाज हैं, जो हाथों से नहीं बल्कि दांतों से तीर चलाते हैं। शरीर से दिव्यांग अभिषेक को सफलता बड़ी मुश्किलों के बाद मिली है और इसके पाने के लिए उन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।
 
अभिषेक ने जब होश संभाला तो उन्हें परिवार से पता चला कि वे पोलियोग्रस्त हैं। पर उन्होंने पोलियो से हार नहीं मानी और 8वीं क्लास में पढ़ते हुए एथलेटिक्स में हिस्सा लेने लगे। मेहनत रंग लाई और वह इंटर स्कूल नेशनल लेवल के एथलीट बन गए।
 
अभिषेक स्कूल में 5 किलोमीटर, 10 किलोमीटर की रेस में कई मेडल अपने नाम कर चुके थे। जीवन में अच्छा कर रहे अभिषेक की किस्मत ने 26 अक्टूबर 2010 में उन्हें फिर धोखा दिया और घुटने की एक गंभीर चोट ने अभिषेक के जीवन में फिर ठहराव पैदा कर दिया। दौड़ सकने में अक्षम हो चुके अभिषेक की समझ में नहीं आया कि वे अब और कौन से खेल में अपना हाथ आजमाएं।
 
लगातार 2 साल तक परेशान रहे और लगभग निराश हो चुके अभिषेक को उनके रिश्त के एक भाई संदीप गवई ने उन्हें नई शुरुआत की प्रेरणा दी। वे खुद तीरंदाजी करते हैं लेकिन पोलियो के कारण अभिषेक के दाएं हाथ और कंधे में इतनी ताकत नहीं थी कि वे उससे तीर खींच पाएं। इस समस्या से उबरने के लिए संदीप ने उन्हें अपने दांतों से तीर खींचने की सलाह दी। काफी अभ्यास के बाद वे भारत में ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति बन गए।
 
संदीप बताते हैं कि अभिषेक की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत है और तीरंदाजी के लिए सबसे ज्यादा इसी की जरूरत होती है।
 
धनुष से तीर खींचे में लगने वाली ताकत को ''पुल वेट'' या ''पाउन्डेज'' कहते हैं और एक बार तीर खींचने पर लगभग 50 किलो तक का पाउन्डेज लगता है जोकि बड़े-बड़े ताकतवर आदमी के लिए भी काफी मुश्किल भरा काम होता है। पर अभिषेक ने इस काम को बड़ी आसानी से कर दिखाया।
 
अब अभिषेक के जीवन का लक्ष्य है कि वे वर्ष 2020 के टोक्यो पैरालंपिक खेलों में न सिर्फ भारत का प्रतिनिधित्व करें  बल्कि देश के लिए गोल्ड मेडल भी जीतें।

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