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एक राष्ट्र, एक चुनाव पर 9284 करोड़ का होगा खर्च

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शनिवार, 2 सितम्बर 2023 (01:02 IST)
One Nation One Election News: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर बहस के बीच निर्वाचन आयोग ने पूर्व में यह सुझाव दिया था कि अगर भारत यह मॉडल अपनाता है तो केंद्र या राज्य में सरकार गिरने से हुई रिक्ति को 5 साल के बाकी कार्यकाल के लिए वैकल्पिक सरकार द्वारा भरा जाएगा। इसके साथ ही इस पर 9284 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। 
 
आयोग ने पूर्व में कहा था कि ऐसा या तो विपक्ष द्वारा विश्वास मत के माध्यम से अपना बहुमत साबित करने से हो सकता है, या बाकी अवधि के वास्ते सरकार चुनने के लिए मध्यावधि चुनाव के माध्यम से हो सकता है। संविधान में संशोधन का सुझाव देते हुए आयोग ने कहा था कि लोकसभा का कार्यकाल आम तौर पर एक विशेष तारीख को शुरू और समाप्त होगा (न कि उस तारीख को जब संसद अपनी पहली बैठक की तारीख से 5 साल का कार्यकाल पूरा करती है)।
 
इसने कहा था कि नए सदन के गठन के लिए आम चुनाव की अवधि इस प्रकार निर्धारित की जानी चाहिए कि लोकसभा अपना कार्यकाल पूर्व-निर्धारित तिथि पर शुरू कर सके।
 
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के मुद्दे पर अपने सुझाव साझा करते हुए निर्वाचन आयोग ने कहा था कि लोकसभा को समय से पहले भंग होने से बचाने के लिए, सरकार के खिलाफ किसी भी अविश्वास प्रस्ताव में भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में नामित व्यक्ति के नेतृत्व वाली सरकार के पक्ष में एक और ‘विश्वास प्रस्ताव’ शामिल होना ही चाहिए और दोनों प्रस्तावों पर एक साथ मतदान कराया जाना चाहिए।
 
आयोग ने यह भी सुझाव दिया था कि यदि सदन को भंग करने को टाला नहीं जा सकता है, तो सदन का शेष कार्यकाल लंबा होने पर नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं और ऐसे में सदन का कार्यकाल मूल कार्यकाल के बराबर होना चाहिए।
 
आयोग ने अपने सुझाव में कहा था कि यदि लोकसभा का शेष कार्यकाल लंबा नहीं है, तो यह प्रावधान किया जा सकता है कि राष्ट्रपति उनके द्वारा नियुक्त मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर देश का प्रशासन तब तक चलाएंगे, जब तक कि अगले सदन का गठन निर्धारित समय पर नहीं हो जाता। इसने राज्य विधानसभाओं के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था का सुझाव दिया था।
 
इसमें कहा गया था कि ‘लंबी अवधि’ और ‘लंबी अवधि नहीं’ शब्दों को परिभाषित किया जाना चाहिए। कानून और कार्मिक विभाग से संबंधित स्थायी समिति दिसंबर 2015 में ‘लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता’ पर एक रिपोर्ट लेकर आई थी। उसने इस मुद्दे पर निर्वाचन आयोग द्वारा दिए गए सुझावों का हवाला दिया था।
 
संसदीय समिति ने निर्वाचन आयोग के सुझावों का हवाला देते हुए कहा था कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल भी आम तौर पर उसी तारीख को समाप्त होना चाहिए, जिस दिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। समिति ने कहा था कि शुरुआत में इसका मतलब यह भी हो सकता है कि एक बार के उपाय के रूप में, मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल या तो पांच साल से अधिक बढ़ाना होगा या कम करना होगा, ताकि लोकसभा चुनाव के साथ-साथ नए चुनाव कराए जा सकें।
 
निर्वाचन आयोग ने सुझाव दिया था कि यदि चुनाव के बाद कोई भी पार्टी सरकार बनाने में सक्षम नहीं होती है, और एक और चुनाव आवश्यक हो जाता है, तो ऐसी स्थिति में सदन का कार्यकाल नए सिरे से चुनाव के बाद केवल मूल कार्यकाल के शेष भाग के लिए होना चाहिए।
 
इसी प्रकार, निर्वाचन आयोग ने सुझाव दिया था कि यदि किसी सरकार को किसी कारण से इस्तीफा देना पड़ता है और कोई विकल्प संभव नहीं है, तो नए सिरे से चुनाव कराने के प्रावधान पर विचार किया जा सकता है, यदि शेष कार्यकाल तुलनात्मक रूप से लंबा हो और अन्य मामलों में, राज्यपाल या राष्ट्रपति शासन द्वारा शासन किया जा सकता है। (भाषा) 

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