हमारे सनातन धर्म में ईश्वर को समग्ररूपेण देखने की परंपरा है। इसी वजह से हमने समस्त जड़-चेतन में परमात्मा को प्रत्यक्ष मानकर उनकी आराधना की है। यही कारण है कि जब हम ईश्वर के चैतन्यस्वरूप की बात करते हैं तो उसमें केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु समस्त पशु-पक्षियों का भी समावेश हो जाता है।
हमारी धार्मिक परंपरा में विलग-विलग अवसर पर पशु-पक्षियों के दर्शन व पूजा का विधान है। इसी क्रम में 'नाग पंचमी' का पर्व भी मनाया जाता है। नाग को शास्त्रों में काल (मृत्यु) का प्रत्यक्ष स्वरूप माना गया है, वहीं व्यावहारिक रूप में इसे वन्यजीव संरक्षण से जोड़कर देखा जा सकता है। इस वर्ष 'नाग पंचमी' सोमवार, 5 अगस्त को मनाई जाएगी।
आइए, जानते हैं कि 'नाग पंचमी' कैसी मनाई जानी चाहिए?
नाग पंचमी के दिन प्रात:काल स्नान करने के उपरांत शुद्ध होकर यथाशक्ति तांबे की एक नाग प्रतिमा की प्रतिष्ठा कर उनका धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पंचोपचार अथवा षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। तत्पश्चात 'सर्पसूक्त' से प्रतिष्ठित नागों का दुग्धाभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के पश्चात हाथ जोड़कर निम्न प्रार्थना करनी चाहिए।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत:।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
उक्त प्रार्थना करने के बाद पूर्ण श्रद्धाभाव से प्रणाम कर इस नाग प्रतिमा को किसी भी शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र
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