यदि आपकी कुंडली में कालसर्प दोष, अंगारक दोष, चांडाल दोष एवं ग्रहण दोष अथवा पितृ दोष है और उसके कारण आपके जीवन के कई कामों में विघ्न आ रहा है तो नागपंचमी का दिन इन सब दोषों की शांति के लिए बेहद फलदायी होता है। राहू के जन्म नक्षत्र ‘भरणी’ के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ‘अश्लेषा’ के देवता सर्प हैं।
अतः राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर कालसर्प योग कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144+144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं।
15 अगस्त 2018 यानी नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग/दोष, अंगारक दोष, चाण्डाल दोष या ग्रहण दोष अथवा पितृदोष आदि की शांति कराकर विघ्नों को दूर किया जा सकता है।
जानिए कैसे करें शांति विधान पूजन
प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा के स्थान पर कुश का आसन स्थापित करके सर्व प्रथम हाथ में जल लेकर अपने ऊपर व पूजन सामग्री पर छिड़कें, फिर संकल्प लेकर कि मैं कालसर्प दोष शांति हेतु यह पूजा कर रहा हूं।
अतः मेरे सभी कष्टों का निवारण कर मुझे कालसर्प दोष (पितृदोष/अंगारक दोष/चाण्डाल दोष/ग्रहण दोष) से मुक्त करें।
तत्पश्चात् अपने सामने चौकी पर एक कलश स्थापित कर पूजा आरंभ करें।
कलश पर एक पात्र में नाग-नागिन यंत्र एवं कालसर्प यंत्र स्थापित करें, साथ ही कलश पर तीन तांबे के सिक्के एवं तीन कौड़ियां सर्प-सर्पनी के जोड़े के साथ रखें।
उस पर केसर का तिलक लगाएं अक्षत चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाएं तथा काले तिल, चावल व उड़द को पकाकर शक्कर मिश्रित कर उसका भोग लगाएं, फिर घी का दीपक जला कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु।
ये अंतरिक्षे ये दिवितेभ्यः सर्पेभ्यो नमः स्वाहा।।
राहु का मंत्र- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
इसके बाद सर्वप्रथम गणपति जी का पूजन करें, नवग्रह पूजन करें, कलश पर रखी समस्त नाग-नागिन की प्रतिमा का पूजन करें व रूद्राक्ष माला से उपरोक्त कालसर्प शांति मंत्र अथवा राहु के मंत्र का उच्चारण एक माला जाप करें। उसके पश्चात् कलश में रखा जल शिवलिंग पर किसी मंदिर में चढ़ा दें, प्रसाद नंदी (बैल) को खिला दें, दान-दक्षिणा व नये वस्त्र ब्राह्मणों को दान करें। कालसर्प दोष वाले जातक को व्रत अवश्य करना चाहिए।
अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापद्म, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गए हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है।