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हम किसी की ‘मौत की प्रतीक्षा’ कर रहे हैं... ये ‘कल्‍चर है या वल्‍चर’ है

हम किसी की ‘मौत की प्रतीक्षा’ कर रहे हैं...  ये ‘कल्‍चर है या वल्‍चर’ है
, शनिवार, 29 अगस्त 2020 (12:45 IST)
अभिनेता सुशांत सिंह की मौत के मामले में मुख्‍य आरोपी रिया चक्रवर्ती का हाल ही में एक निजी न्‍यूज चैनल ने इंटरव्‍यू किया। इस दौरान एक-दो जगहों पर आक्रोश में आकर उन्‍होंने यह कहा,

‘रोज़-रोज़ की प्रताड़ना की जगह बंदूक़ लेकर हम सब को लाइन से खड़ा कर एक बार में मार ही क्यों नहीं देते’

उन्‍होंने यह भी कहा कि‍ वे मीडि‍या ट्रायल से परेशान है और जिस तरह से उन्‍हें दोषी ठहरा दिया गया है मन करता है आत्‍महत्‍या ही कर ली जाए।

दरअसल, यह सब उन्‍होंने इसलिए कहा था, क्‍योंकि सुशांत की मौत का सच जानने के लिए लगातार ट्रेंड और कैंपेनिंग चल रही है, ऐसे में ज्‍यादातर पब्‍लि‍क सेंटि‍मेंट सुशांत और उनके परिवार के साथ है। ऐसे में रिया लोगों के निशाने पर आ गई है, हालांकि मामले की अभी जांच चल रही है।

लेकिन इंटरव्‍यू में जैसे ही रिया ने परिवार को गोली मारने और आत्‍महत्‍या करने की बात कही, तो सोशल मीडि‍या पर कई तर‍ह की अमान‍वीय प्रति‍क्रि‍याएं आने लगीं। किसी ने कहा, हम प्रतीक्षा कर रहे हैं आप कब आत्‍महत्‍या करेंगी, तो किसी ने कहा कि- सुसाइड नोट लिखना मत भूलना।

वहीं कुछ लोगों ने कहा कि तुम्‍हे कौन रोक रहा है?
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किसी भी सभ्‍य समाज में किसी के मरने की दुआ करना एक बेहद ही अमानवीय कृत्‍य है, फि‍र चाहे वो कोई आरोपी ही क्‍यों न हो। दरअसल, पिछले कुछ वक्‍त से देश में यही हो रहा है। चाहे हैदराबाद में बलात्‍कार के आरोपियों का पुलिस एनकाउंटर हो या फि‍र पिछले दिनों उत्‍तर प्रदेश के गैंगस्‍टर विकास दुबे का एनकाउंटर हो। हर बार इस तरह की मौत पर सोशल मीडि‍या में खुशी जताई गई है।

यह एक नई और घृणि‍त तरह की मानसि‍कता समाज में देखी जा रही है जो किसी की मौत पर जश्न और खुशी जाहिर करना चाहती है। रिया के मामले में भी यही हो रहा है, उनके आत्‍महत्‍या वाले बयान के बाद इसी तरह की अमानवीयता से भरी टि‍प्‍पणि‍यां नजर आईं।

यह इसलिए जरुरी हो जाता है क्‍योंकि फि‍लहाल सुशांत मामले की जांच चल रही है और रिया उसमें आरोपी है दोषी नहीं। हालांकि किसी सभ्‍य समाज में किसी दोषी के लिए भी इस तरह मौत की कामना नहीं की जाना चाहिए।

ऐसे में सवाल यह है कि हमारा सभ्‍य समाज किस ओर जा रहा है। दरअसल, सोशल मीडि‍या में अपनी टि‍प्‍पणी को लेकर कोई जवाबदेही तय नहीं है। बस, मोबाइल उठाया और लिख दिया। लेकिन जब बड़ी संख्‍या में ऐसा किया जा रहा हो तो एक ओपि‍नियन बन रहा है जो पूरे समाज की मानसिकता को भी कठघरे में खड़ा कर रहा है।

इतनी घृणा कहां से आ रही है, ये किस तरह के थिंक टैंक तैयार हो रहे हैं, जिनकी वजह से बाकी वर्ग के ऊपर भी सवालिया निशान लग रहे हैं।

इसे क्‍या कहा जाए, क्‍या ये किसी समाज का ‘कल्‍चर’ है या उस समाज में रहने वाले लोगों की ‘वल्‍चर’ मानसिकता है?

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

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