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श्रीलंका के नए वामपंथी राष्ट्रपति की भारत के माओवादियों से है गहरी दुश्मनी

श्रीलंका के नए वामपंथी राष्ट्रपति की भारत के माओवादियों से है गहरी दुश्मनी
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डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

, बुधवार, 25 सितम्बर 2024 (11:05 IST)
माओवाद का एक मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय की स्थापना तथा वर्गीय भेदभाव,जातिवाद और लैंगिक असमानता के खिलाफ संघर्ष करना बताया जाता है। लेकिन वास्तव में माओवादियों के सिद्धांतों और व्यवहार में कितना गहरा अंतर है तथा इसके  बड़े नेताओं में जातीय श्रेष्ठता के भाव किस कदर हावी है,इसका पता श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के राजनीतिक जीवन से चलता है। 
 
दसरसल दिसानायके कई दशकों से श्रीलंका में माओवादी आंदोलन के अगुवा रहे है और उन्होंने अनेक सशस्त्र विद्रोह का सहारा भी लिया है। 1970-80 के दशक से वे जन विमुक्ति पैरमुना नामक राजनीतिक पार्टी से जुड़ गए थे। जन विमुक्ति पैरमुना का उद्देश्य सामाजिक न्याय,आर्थिक समानता और जनतांत्रिक अधिकारों की रक्षा करना बताया जाता है। वहीं दिसानायके ने माओवाद के नेता के रूप में भी तमिलों का विरोध करने से परहेज नहीं किया। श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके का संबंध सिंहली जाति से है और उन्होंने इस जातीय श्रेष्ठता को आजीवन बनाकर रखा। श्रीलंका में तमिलों को दूसरे दर्जे का नागरिक मानकर उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है, दिसानायके की माओवादी पार्टी जन विमुक्ति पैरमुना को इससे कभी कोई एतराज नहीं हुआ।  
 
1980 के दशक में श्रीलंका में तमिल विद्रोह चल रहा था,जिसमें तमिलों ने अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष किया। दिसानायके  की पार्टी ने इस विद्रोह का विरोध किया। 1980 के दशक में जन विमुक्ति पैरमुना के  हिंसक विरोध के कारण कई हजार लोग मारे गए। जन विमुक्ति पैरमुना ने तमिलों के खिलाफ कुछ हिंसक गतिविधियों में भी भाग लिया और देश के सुरक्षाबलों का समर्थन किया। जन विमुक्ति पैरमुना ने तमिलों के खिलाफ खूब हिंसा की,विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां तमिल मजबूती से सुरक्षाबलों के खिलाफ लड़ रहे थे।
 
दिसानायके के नेतृत्व में जन विमुक्ति पैरमुना ने तमिल विरोध को अपना राजनीतिक एजेंडा बनाया। तमिल लोगों ने अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष करना शुरू किया,तब जन विमुक्ति पैरमुना ने इसे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा माना और इसके खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया।1980 के दशक में जन विमुक्ति पैरमुना ने कई प्रदर्शनों का आयोजन किया,जिसमें वे तमिल विद्रोहियों के खिलाफ और सरकार के समर्थन में आवाज उठाते थे। इनमें कई रैलियाँ और मार्च शामिल थे।

जन विमुक्ति पैरमुना श्रीलंकाई पहचान के तहत नारे लगाते हुए तमिल पहचान के खिलाफ एक राजनीतिक और सामाजिक माहौल तैयार किया,जिससे यह धारणा बनी कि तमिल विद्रोह देश के लिए खतरा है। जन विमुक्ति पैरमुना ने सुरक्षा बलों के खिलाफ विद्रोह करने वाले तमिल समूहों का विरोध करने के लिए सरकार का समर्थन किया। इस दौरान वे सैन्य कार्रवाई का समर्थन करते रहे। पैरमुना के आंदोलनों ने धीरे-धीरे श्रीलंका के विभिन्न हिस्सों में फैलकर व्यापक जातीय तनाव उत्पन्न किया। जन विमुक्ति पैरमुना विरोध प्रदर्शनों में कई बार हिंसा हुई,जिसमें कई लोग हताहत हुए। पार्टी ने कई बार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया,जिससे सामूहिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई।
 
यह भी दिलचस्प है कि श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके राजनीतिक दल जन विमुक्ति पैरमुना की स्थापना का एक मुख्य कारण श्रीलंका में बढ़ती सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को बताया जाता है। पार्टी का उद्देश्य गरीबों और श्रमिक वर्ग के अधिकारों की रक्षा करना था। श्रीलंका में तमिल सामाजिक और आर्थिक असमानता से बुरी तरह जूझने का मजबूर है,उनका गहरा उत्पीड़न होता रहा है। लेकिन जन विमुक्ति पैरमुना ने तमिलों के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जैसे देश के अन्य सिंहली प्रभाव वाले दल करते है। 

अनुरा कुमारा दिसानायके का राजनीतिक उभार जिस दौर में हुआ उस समय इलम तालैवीर पार्टी श्रीलंका की एक प्रमुख तमिल राजनीतिक पार्टी हुआ करती थी। यह पार्टी तमिलों के अधिकारों और उनकी राजनीतिक पहचान की रक्षा के लिए अब भी काम करती है। पार्टी का मुख्य उद्देश्य तमिलों की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान की रक्षा करना रहा। इलम तालैवीर पार्टी ने तमिलों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। इस समय जन विमुक्ति पैरमुना ने भारतीय प्रभाव और तमिल मांगों के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियां शुरू कर दी। जन विमुक्ति पैरमुना ने तमिल विद्रोह के खिलाफ कई रैलियाँ और प्रदर्शन आयोजित किए,जिसमें वे तमिलों के खिलाफ नारे लगाते थे। तमिल समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सीमित है और आज भी कई तमिल नेता अपनी आवाज़ को सुनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इलम तालैवीर पार्टी जैसे दल अभी भी महत्वपूर्ण हैं,लेकिन तमिलों की समस्याएं बदस्तूर जारी हैं। तमिल समुदाय में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी है,जिससे सामाजिक असमानता बढ़ी है। कई क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे की कमी भी है। आर्थिक विकास में असमानता बनी हुई है। उत्तरी और पूर्वी क्षेत्रों में,जहां अधिकांश तमिल आबादी निवास करती है,आर्थिक संसाधनों की कमी और पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। 
 
श्रीलंका में तमिलों पर अत्याचारों के खिलाफ भारत के तमिलनाडु राज्य के कई माओवादी नेताओं में गुस्सा रहा है।  लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण का भारतीय माओवादियों के साथ मजबूत संबंध रहे और इन दोनों के बीच विचारों और रणनीतियों का आदान-प्रदान भी हुआ। वहीं श्रीलंका के कथित माओवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके से प्रभाकरण की गहरी दुश्मनी थी। इलम तालैवीर पार्टी और तमिलनाडु के माओवादी समूहों के बीच मजबूत  संबंध रहे। कुट्टाला काली एक प्रमुख तमिल नक्सली नेता थे,जिन्होंने 1960 और 1970 के दशक में तमिलनाडु में नक्सलवादी आंदोलन को मजबूत किया। इसके साथ ही  सत्यनारायणन (सत्य) एन, वी. शंकर और पेरियार जैसे तमिल नक्सलियों में महत्वपूर्ण नेता थे,जिन्होंने नक्सलवादी विचारधारा को फैलाने में गहरा योगदान दिया।
 
दरअसल माओवादी  विचारधारा सामाजिक न्याय की स्थापना का दावा करते हुए गरीब और शोषितों का भरपूर उपयोग करती है लेकिन इसके शीर्ष के नेता पूंजीवादी शक्तियों से ही संचालित होते है और उनमें गहरा सामंतवाद हावी होता है।  श्रीलंका के नए राष्ट्रपति माओवादी दिसानायके की वही सामंतवाद  प्रवृति गरीब और शोषित तमिलों के खिलाफ बार बार सामने आई और आश्चर्य नहीं की उनके कार्यकाल में श्रीलंका जातीय और धार्मिक संघर्ष के दौर में फिर से उलझ जाएं। 

नोट :  आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैंवेबदुनिया का आलेख में व्‍यक्‍त विचारों से सरोकार नहीं है। 
 
 

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