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900 की साड़ी पर सेवा नि:शुल्क...

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- अनिल शर्मा 
 
मूल बात पर आने से पहले भूमिका बांध ली जाए कि सामूहिक परिचय सम्मेलन या सामूहिक विवाह का चलन  अब पारंपरिक हो गया है। आजकल हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि समाजों में भी सामूहिक विवाह या परिचय सम्मेलन चलन में हैं। सरकार और सरकारों की तरफ से भी सामूहिक विवाह के आयोजन किए जा रहे हैं। ये चलन प्रत्येक जाति, वर्ग, समुदाय, धर्म में आयोजित किया जा रहा है। सबसे बढ़िया काम है। हर साल औसतन देशभर में लगभग 2500 से 4500 आयोजन सामूहिक शादी-ब्याह के और लगभग 5000-7000 आयोजन सामूहिक परिचय सम्मेलन के विभिन्न समुदायों (समाजों) द्वारा किए जाते हैं।


सामाजिक एकता (वास्तव में जातीय एकता) के मद्देनजर इस तरह के आयोजन में हितग्राही को कम दाम पर अनेक सुविधाएं मिल जाती हैं। सामूहिक विवाह में वर-वधू की तरफ से आयोजकों या आयोजन के पदाधिकारियों द्वारा मुफ्त में भी सामग्री दी जाती है। ये पदाधिकारी उच्च आय वर्ग के होते हैं, क्योंकि समाज या जाति के किसी गरीब की ऐसी औकात नहीं होती कि वह समाज के किसी पद पर काबिज हो। गरीब सपने में भी कल्पना नहीं कर सकता। अब ये उच्च आय वर्ग के लोग इस तरह के कार्यक्रम में पदाधिकारी होने पर खर्च क्यों करते हैं इनसे इन्हें क्या मिलता है? यह एक तरह की समाजसेवा ही है।

यदि उच्च आय वर्ग के लोग इस तरह के कार्यक्रम में अपनी आर्थिक सेवा देते हैं तो आपको इससे क्या लेना-देना। (हां आपको मालूम है कि इस तरह के कामों से व्हाइटनेस आ जाती है।) जिस वॉशिंग मशीन की कोई गरीब कल्पना भी नहीं कर सकता, वो अगर सामूहिक विवाह में दूल्हा-दुल्हन को आयोजकों द्वारा भेंट कर दी जाती है तो इससे बड़ी और क्या बात है। अब ये छानबीन करने की क्या जरूरत कि जिसने भेंट दी है उसका धंधा-व्यापार क्या। आज कोई अपने सगे की मदद नहीं करता तो ऐसे में इस तरह दिल खोलकर कैसे इस तरह के आयोजनों में भेंट दे दी जाती है।

बहरहाल जो भी हो, सामूहिक परिचय सम्मेलन और विवाह के आयोजन वाकई सराहनीय हैं। इन सराहनीय आयोजनों में आंखें तो इन आयोजनों के आयोजकों और पदाधिकारियों पर लगी रहती हैं। इन आयोजनों में जमीन पर रहने वाले यानी आने वाले आगंतुकों की सेवा करने वालों पर नजर नहीं टिकती और इससे बड़ी मजेदार बात यह कि कार्यक्रम की शुरुआत से पेशतर उद्घाटन, स्वागत, भाषण का दौर।

संबोधन में दो-चार लाइनें ये भी होती हैं कि इस तरह के कार्यक्रम से समाज (जाति) के गरीब तबके के लोगों को राहत मिलती है, सहायता मिलती है और कार्यक्रम के दौरान की दृश्यावली देखी जाए तो अलग ही नजारा दिखेगा। समाज बनाम जाति के गरीब या मध्यम आय वर्गीय लोग अपने सजातीय उच्चवर्गीय लोगों के आगे-पीछे मंडराते नजर आएंगे। यहां तक कि कोई गरीब या मध्यम आय वर्गीय अपने जैसे को बाद में मजबूरी से देखता है वरना हर किसी की हसरत रहती है कि वह अपने से ऊंचे वाले (हैसियत में) देखे।

900 की साड़ी और सेवा फ्री : सेवादारों (महिला-पुरुष दोनों) के बिना इस तरह के कार्यक्रमों की कल्पना नहीं की जा सकती। ये सेवादार बनाम वॉलिंटियर्स जो कि समाज-जाति के ही होते हैं, सारी व्यवस्थाएं सम्हालते हैं। भोजन-पानी, चिकित्सा, वर-वधू पक्ष को मिलाना आदि। इन सेवादारों बनाम वॉलिंटियर्स की पहचान के लिए उनकी एक अलग ही पोषाख होती है। पुरुषों की अलग और महिलाओं की साड़ी अलग रंग और किस्म की। अभी कुछ दिनों बाद एक समाज का सामूहिक विवाह सम्मेलन होने वाला है।

उसमें जो सेवादार अपनी सेवा प्रदान करेंगे वो पूरी तरह नि:शुल्क होगी। लेकिन इन सेवादारों (वॉलिंटियर्स) को जो ड्रेसकोड मिला है उसके भी इन्होंने पैसे खर्च किए हैं। महिला कार्यकर्ता जो इस कार्यक्रम में अपनी सेवा देंगी उन्हें ड्रेसकोड के रूप में जो साड़ी दी गई है उसकी उनसे 900 रुपए कीमत वसूली गई है। साड़ी की मूल कीमत कितनी होगी, ये तो कार्यक्रम की वरिष्ठ ही जानें (कुछ तो होगा?)

यानी इन महिला कार्यकर्ताओं को मुफ्त में समाज सेवा भी करनी है और साथ ही इस समाज सेवा के लिए साड़ी भी खरीदकर पहननी है। प्रत्येक समाज में इस तरह के आयोजन सराहनीय कदम कहे जाते हैं, मगर ऐसे कार्यक्रमों में नि:शुल्क सेवा देने वाले सेवादारों को सशुल्क ड्रेसकोड की बात समझ से परे है।

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