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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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तथाकथित बौद्धिकता की पोल खोलता सोशल नेटवर्क

तथाकथित बौद्धिकता की पोल खोलता सोशल नेटवर्क
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मनोज श्रीवास्तव

सोशल मीडिया का युग आया तो लोगों ने दोनों हाथों से इस युग को लपका। फिर पोस्ट, कमेंट्स का दौर चला और सारे ज्ञान-संस्कार, अक्ल, बौद्धिकता की पोल खुलकर सामने आ गई, अभी तक लगभग जो बंद मुट्ठी थी वो खुल गई। ऐसा लगता है कि बची-खुची कसर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पूरी कर देगा।


 
बेसिरपैर की बातें, जमीर-हीन जिरह, दोहरे मापदंडों का महिमामंडन, झूठ का सत्कार सब कुछ है। कभी-कभी लगता है कि विदेशियों ने ये आधुनिक नेटवर्क सुविधा हमारी इज्जत उतारने के लिए ही हमें गिफ्ट की है और हमेशा की तरह हम नासमझों ने उसे लपक लिया, फिर लपकने के बाद इस पटल पर अपनी कूपमंडूकता, जातिवाद, अंधविश्वास, धर्मांधता, संकीर्णता का परिचय देना प्रारंभ कर दिया।
 
अपने ही हाथों अपनी प्राचीन महान गौरव-गाथा धूमिल करने का रास्ता खोजा और चिरस्थायी पटल पर उसकी छाप प्रस्तुत कर दी। अब तो देखकर यह अहसास होता है कि हमारी महानता का प्राचीन इतिहास शायद वास्तविक कम और काल्पनिक ज्यादा होगा, क्योंकि कोई भी महान कौम इतनी ज्यादा कमतर नहीं हो सकती, जैसी कि सोशल नेटवर्क पर आज दिख रही है।
 
सोशल नेटवर्क पर सक्रिय समस्त भारतीय हमारे देश के क्रीम जनरेशन हैं, आखिर नवीन तकनीक गंवारों के हाथ तो नहीं मानी जा सकती, फिर उनके ये हाल हैं तो शेष भारतीयों का बौद्धिक स्तर क्या होगा, यह जानने के लिए अब शायद ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत भी न पड़े।
 
युवा, उम्रदराज, पेशेवर, राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक सभी क्षेत्र के लोग भी फूहड़ता, संकीर्णता, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या फैलाते नजर आ रहे हैं। यह सब देखकर कल शायद ही कोई यकीन करेगा कि हमारी प्राचीन शिक्षा, ज्ञान, अध्यात्म इसी देश में रचे गए थे। खास बात यह भी है कि हमें इस सोशल नेटवर्क के परिदृश्य ने इस सच्चाई से भी रूबरू करा दिया कि हमें जिस ज्ञान की घुट्टी पढ़ाई जाती रही है, उससे हम निश्चित रूप से भटके हुए हैं, नहीं तो इस तरह की दिमागी गंदगी क्योंकर बची रहती?
 
हो सकता है कि जिन्होंने बौद्धिकता के मुकुट लगाए हुए थे, वे भी शायद हमारा सही मार्गदर्शन नहीं कर पाए या जो बंद कमरों में बौद्धिक मंथन चलते रहे उनकी असलियत अब बौद्धिक कुचक्र के रूप में सामने आ गई है। क्या ये सही वक्त नहीं है कि हम इस हकीकत को स्वीकारें ताकि आने वाले कल को बेहतर बना सकें।
 
सोशल नेटवर्क पर अनर्गल पोस्ट या कमेंट्स लिखना और उन्हें डिलीट कर हटा लेने वाले चाहे खुद को आज बहुत बुद्धिमान समझें, पर वे ये जान लें कि यह सिर्फ मन को समझाना है, क्योंकि इस नेटवर्क से कुछ हटता नहीं है। डिजिटल डाटा भी एक तरह से नष्ट नहीं होता, जैसे शब्द ब्रह्मांड में घूमता रहता है लगभग उसी तरह डाटा का भी अस्तित्व बना रहता है।
 
सोशल नेटवर्क के समस्त सर्वर विदेशों में स्थित हैं। हमारा प्रत्येक क्लिक उनके पास रिकॉर्ड है। विकिलीक्स इसका बहुत बेहतरीन उदाहरण है। फर्जी आईडी बनाने वाले यदि चाहें तो जुकरबर्ग से अपनी जन्मपत्री पूछ सकते हैं। फेसबुक किसी भी फर्जी आईडी को ट्रैक कर उसके परिवार को भी उसकी 'राम-कृष्ण लीला' दिखा सकता है।
 
फेसबुक या ट्यूटर या व्हॉट्सएप नेटवर्क- किसी भी आईडी की संपूर्ण जानकारी मय लोकेशन, डेस्कटॉप, घर, ऑफिस, कमरा, दुकान, गली, मोहल्ला, शहर, कस्बा, गांव, नाम, पता, परिवार तक का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर सकता है। कोई फर्जी आईडी बनाकर चाहे खुद की पहचान छुपाकर गुमनाम समझे, पर सिलिकॉन वैली में वो अदृश्य नहीं रह सकता।
 
आज जो लोग स्वयं की पहचान को छुपी जानकर फर्जी आईडी से अनैतिक और मनमर्जी काम कर रहे हैं, हो सकता है कल को इसी फर्जी आईडी के कारण वे ब्लैकमेलिंग में फंस जाएं। विकिलीक्स की तरह ही यूजर की साइट विजिट, डाउनलोडिंग, मेल, चेट इत्यादि सूचनाएं मिसयूज भी की जा सकती हैं।
 
अनैतिकता खोल देने का डर कुछ भी करा सकता है। भयावह मंजर हो सकता है, जब डिजिटल डाटा का अंदरुनी रहस्य भूत-प्रेत की तरह पीछे पड़ जाएगा। ऑनलाइन होते ही मैसेज अलर्ट आने लगेंगे। नेट ऑफ किए तो फोन पर अनजान नंबर से मिस कॉल आने लगेंगे। फोन ऑफ किया तो फैमेली मेंबर्स को हमारे कुशलक्षेम के मैसेज आने लगेंगे।
 
छोटे-बड़े, भूले-बिसरे, अदना-मशहूर कोई भी शख्सियत हो- सबके सब इसके शिकार हो सकते हैं। आने वाले समय में इस तरह से गोपनीय डाटा बेचने-खरीदने और ब्लैकमेकिंग के धंधे का जोर भी होने वाला है। गोरखधंधा, कालाधन, टैक्स चोरी, डिपॉजिट, चल-अचल संपत्ति की जानकारी किसी भी उपाय से गोपनीय रहने वाली नहीं है।
 
लेकिन तस्वीर का दूसरा पक्ष भी है, जो कहीं अधिक सुनहरा है जिससे दुनिया की सूरत और सीरत बदलने वाली है। डिजिटल दुनिया कई अकल्पित संभावनाओं का द्वार भी खोल देगी, जो पीड़ित मानवता के उद्धार में सहायक होगी।
 
'वन क्लिक' सुविधा से असीमित सुविधाओं का रास्ता बनेगा तो पीड़ा, आपदा में पलक झपकते ही संसाधन जुट जाएंगे। सबसे बढ़कर डिजिटल चमत्कार का प्रभाव समाज की असमानता समाप्त करने में होगा। संसाधन-सुविधा और अवसर की उपलब्धता हर हाथ में होगी। असीमित रोजगार उपन्न होगा, जो दुनिया का परिदृश्य बदल देगा।
 
असाध्य बीमारियां, जन्मना विकृति, विकलांगता इत्यादि दूर होना इतना सरल हो जाएगा कि मानो जादू देख रहे हों। सचमुच हम जादुई दुनिया की दहलीज पर खड़े हैं। डिजिटल दुनिया से जितनी कालिमा पुतने की संभावना है, तो उससे अधिक उजियारा होने की भी है।
 
बस, यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस डिजिटल दुनिया को कैसे उपयोग करते हैं और इस नई डाटा जिंदगी को किस तरह जीते हैं...?

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