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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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अपने मन के कुशल मैनेजर बनें

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सुनील चौरसिया

मनुष्य के  सारे संकल्प-विकल्प, इच्छाएं-कामनाएं मन की ही उपज हैं और बुद्धि इनकी पूर्ति के लिए सतत क्रियाशील रहती है। शरीर और मन का संबंध बड़ा गहरा होता है। शरीर यंत्र है तो मन यंत्री। शरीर रूपी रथ का सारथी मन ही होता है। अत: शारीरिक और मानसिक संतुलन के लिए स्वस्थ शरीर एवं स्वच्छ मन का होना आवश्यक है। अधिकतर शारीरिक बीमारियां अस्वस्थ मन के चलते ही होती हैं। मन की संकल्प शक्ति से शरीर को निरोग रखा जा सकता है तथा व्यवहार को शालीन एवं विनम्र बनाया जा सकता है और जीवन को नए स्वरूप में गढ़ा जा सकता है।
 
मनोवैज्ञानिकों ने मन को दो भागों में बांटा है। एक होता है चेतन मन तो दूसरा अवचेतन मन। चेतन मन मस्तिष्क का वह भाग है जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है। यह चेतन मन वस्तुनिष्ठ एवं तर्क पर आधारित होता है। अवचेतन मन जाग्रत मस्तिष्क के परे मस्तिष्क का हिस्सा होता है, जिसकी हमें जानकारी नहीं होती तथा अनुभव भी कम ही होता है।
 
उदाहरण के रूप में समझें तो इसकी स्थिति पानी में तैरते हिमखंडों की तरह होती है। हिमखंड का मात्र 10% भाग पानी की सतह से ऊपर दिखाई देता है और शेष 90% भाग सतह से नीचे रहता है। चेतन मस्तिष्क भी संपूर्ण मस्तिष्क का 10% ही होता है। मस्तिष्क का 90% भाग साधारणतया अवचेतन मन होता है।
 
हालांकि मस्तिष्क का विभाजन जैसा कुछ नहीं होता है, जैसा कि उदाहरण दिया गया है। ऐसा केवल आपको समझाने के लिए बताया गया है  अवचेतन मन को प्रयत्नपूर्वक चेतन मन में परिवर्तित किया जा सकता है। सारे निर्णय चेतन मन ही करता है। अवचेतन मन सारी तैयारी, प्रबंध या व्यवस्था करता है। चेतन मन यह तय करता है कि क्या करना है और अवचेतन मन यह तय करता है कि उसे कैसे करना है। यही अवचेतन मन हमारे व्यक्तित्व को भी निर्धारित करता है, क्योंकि इसी के अंदर हमारे व्यक्तित्व की जड़ें विद्यमान रहती हैं।
           
हमारे सारे अनुभव, जानकारी हमारे अवचेतन मन में संचित रहते हैं, परंतु जब कभी हम उनका उपयोग करना चाहते हैं, वे चेतन मन का हिस्सा बन जाते हैं। सिग्मंड फ्रायड के अनुसार हमारी दमित इच्छाएं एवं विचार अवचेतन मन में संचित रहते हैं। ये हमारे व्यक्तित्व को बनाते हैं एवं प्रभावित करते हैं और हमारे व्यवहार एवं आचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
 
शेक्सपीयर ने भी कहा है कि हमारा तन एक बगीचा है और हम इसके बागवान हैं। आप एक बागवान हैं जो विचारों के बीजों को अवचेतन मन में बोते हैं, जो हमारे आदतन विचारों के अनुरूप होते हैं। आप जैसा अपने अवचेतन मन में बोएंगे वैसा ही फल आपको प्राप्त होगा। उसके अनुसार ही आपका शरीर एवं बोध प्रकट होगा। इसलिए प्रत्येक विचार एक कारण है एवं प्रत्येक दशा एक प्रभाव है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने विचारों को ऐसा बनाएं जिससे हमें इच्छित फल प्राप्त हो सकें।
 
यदि सच्ची लगन और दृढ़ निश्चय हो तो मन को बलपूर्वक किसी भी कार्य में लगाया जा सकता है। आलसी मन को कर्मठ बनाने के लिए उसे कड़ी प्रताड़ना की जरूरत होती है। नौसिखिए बछड़े या घोड़े को जोतते समय आरंभिक दिनों में जो कठिनाई होती है, वही मन को किसी रूखे विषय में लगाते हुए भी हुआ करती है। दृढ़ता के आधार पर जिसने अपने मन के आलस को जीत लिया उसके लिए कोई भी कार्य सरल प्रतीत होने लगता है। 
 
मन की मर्जी तो इसमें रहती है कि उसे मनोरंजक गपशप का अवसर मिले, विलासिता और वासना की पूर्ति में वक्त कटता रहे, अपनी प्रशंसा और दूसरों की निंदा सुनने को मिले। परिश्रम करना, कड़ाई होना, अनुशासन की पाबंदी, समय की मुस्तैदी, नियमितता जैसे बंधन भला उसे क्यों पसंद आने लगे। मन ऐसा कहां है कि हर अच्छे काम में अपने आप लग जाया करे। कौनसा बैल बैलगाड़ी में और कौनसा घोड़ा तांगे में खुशी-खुशी जुतने को तैयार होता है। बलपूर्वक ही उसे उसके कार्य में लगाया जाता है। मन की भी ठीक यही स्थिति है। 
 
वश में किया हुआ मन ही सच्चा मित्र सिद्ध होता है और अनियंत्रित मन शत्रु के समान भयंकर परिणाम देता है। जिसने अपने मन को जीत लिया, उसे तीनों लोकों का विजयी कहा जाता है। हमारे मन में अनंत शक्तियां विद्यमान हैं। आवश्यकता है, उन्हें जाग्रत करने की। योग द्वारा हम अपनी सोई हुई शक्तियों को जाग्रत कर अनंत आनंद, अनंत शक्ति और अनंत शांति की प्राप्ति कर सकते हैं।

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