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शिवराज के सपनों के शहर की ये है जमीनी हकीकत...

राजेश ज्वेल
स्मार्ट और मेट्रो सिटी बनाने वालों को इंदौर हाईकोर्ट की यह टिप्पणी नागवार गुजर सकती है, जिसमें इंदौर में कचरा प्रबंधन को शून्य बताया गया है। मुख्यमंत्री के सपनों का शहर आईटी, इलेक्ट्रानिक, एजुकेशन और हेल्थ से लेकर अन्य तरह के हबों में भले ही परिवर्तित न हो पाया हो, मगर कम से कम कचरा हब तो बन ही गया है, क्योंकि 90 दिन में ही 70 हजार टन से ज्यादा कचरा शहर भर में पड़ा सड़ता रहा। अब संभव है कि अगली ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट कबाड़ियों के साथ पशु-सूअर पालकों के लिए ही आयोजित की जाए।
 
इंदौर में वैसे तो कई मूलभूत सुविधाएं जनता को आज तक नहीं मिली है। आवारा पशुओं का सड़कों पर कब्जा है तो सूअरों से लेकर कुत्तों तक की समस्या के लिए जनहित याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर करना पड़ती है, वहीं पिछले कई दिनों से हाईकोर्ट नगर निगम के कचरा प्रबंधन को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई भी कर रहा है और कई मर्तबा नगर निगम के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगा चुका है और यहां तक कि कचरा उठाने की जिम्मेदारी कलेक्टर को सौंपी गई और अब कलेक्टर की रिपोर्ट पर भी आपत्ति ली गई है।
 
अभी तो नगर निगम और उसका स्वास्थ्य विभाग रोजाना शहर को कचरा मुक्त करने के एक से बढ़कर एक धांसू प्लान मीडिया के जरिए जनता के सामने परोसता रहा है। जबकि मैदानी हकीकत यह है कि शहर के गली-मोहल्ले और कालोनियों की अगर बात न भी की जाए तो प्रमुख मार्ग और बाजारों में ही सुबह से रात तक कचरे के ढेर पड़े नजर आते हैं। अभी इंदौर हाईकोर्ट ने नगर निगम को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि उसका कचरा प्रबंधन यानी सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पूरी तरह से जीरो यानी शून्य है और यह भी पूछा गया कि तीन महीने में ही 70 हजार टन कचरा सड़कों पर फेंका गया, जिसका निपटान निगम नहीं कर सका।
 
निगम ने हाईकोर्ट में यह जानकारी दी कि रोजाना इंदौर शहर में 800 टन कचरा निकलता है, जिसमें से 500 टन कचरा उठाकर ट्रेचिंग ग्राउंड फिंकवाया जाता रहा। तब कोर्ट ने पूछा कि इसका मतलब यह है कि 300 टन कचरा तो बिना उठाए ही सड़कों पर पड़ा सड़ता रहता है, जिससे गंदगी के अलावा तमाम तरह की बीमारियां अलग फैलती है। अब इंदौर को स्मार्ट और मेट्रो सिटी बनाने वालों से यह पूछा जाना चाहिए कि पहले वह शहर का कचरा तो उठा ले, उसके बाद इस तरह के शेखचिल्ली ख्वाब देखें और दिखाएं। 
 
यह बात भी सोचने लायक है कि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के सपनों का शहर इंदौर है और बीते 10 सालों में वे 10 हजार बार इस बात को दोहरा भी चुके हैं, लेकिन वे एक अपने सपनों के शहर को ही आज तक साफ-सुथरा नहीं करवा पाए और हर भाषण में इंदौर को आईटी, इलेक्ट्रानिक, फार्मा, एजुकेशन, हैल्थ से लेकर तमाम तरह के हब बनाने का दावा अलग करते हैं और दुनिया के टॉप-10 शहरों में शुमार होने की बात भी कही जाती रही है। इंदौर में ही ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के आयोजन मुख्यमंत्री इसलिए करवाते हैं, क्योंकि यह प्रदेश की औद्योगिक राजधानी भी है। यह बात अलग है कि समिट में किए गए दावे भी हवाई निकले और अडानी, अंबानी से लेकर टाटा, गोदरेज कोई भी पलटकर नहीं आया।
 
अब हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के मद्देनजर इंदौर में कचरे के निपटान को लेकर अवश्य तगड़ी संभावनाएं हैं, क्योंकि फिलहाल तो इंदौर कचरा हब जरूर बन गया है, जहां हजारों टन कचरा खुले में, सड़कों, प्लाटों, बगीचों, नालों से लेकर तमाम जगह बिखरा पड़ा है। अब अगली समिट कबाड़ियों की हो सकती है। देशभर के कबाड़ी इंदौर में एकत्रित होंगे, जो कचरे से बिजली, खाद बनाने से लेकर कई तरह के प्रोजेक्टों के एमओयू साइन कर सकते हैं और इसके साथ ही आवारा पशुओं और कुत्तों, सूअरों की समस्या के मद्देनजर पशु पालन से संबंधित उद्योग-धंधे और सूअर पालन के क्षेत्र में भी जबरदस्त स्कोप है। तो अगली बार की समिट कबाड़ियों के नाम..!
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