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संतुष्ट‍ि क्या है ?

तरसेम कौर
'संतुष्ट‍ि' एक बड़ा ही प्यारा और आनंदित कर जाने वाला शब्द है। संतुष्टि मस्तिष्क की उस अवस्था को दर्शाता है, जब भीतर से खुशी होती है और लगने लगता है - ऑल इज वेल। वर्तमान और निकट भविष्य सुखद प्रतीत होने लगता है। 
 
परंतु एक प्रश्न लगातार हमारे जीवन से जुड़ा रहता है कि जीवन के सफर में क्या कभी संतुष्टि मिलती है? क्या यह एक अस्थाई अवस्था है? क्या जीवनपर्यन्त संतुष्ट रहा जा सकता है?
 
बड़े-बड़े योगमुनि, महापुरुष यही प्रवचन देते हैं कि जो भी पास है उसी में ही संतुष्टि मान लेने का नाम जीवन है। पर फिर भी मनुष्य का मन विचलित रहता है। क्या जीवन का नाम एक जगह पर रुक जाना है? 
 
नहीं, जीवन तो एक निरंतर चलते रहने वाला सफर है, जिसमें आप कभी थोड़ी देर रुक कर थोड़ा सुस्ता तो सकते हैं पर कहीं भी मंज़िलों का नाम देकर अंतिम सांस तक ठहर नहीं सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो समझिए कि जीवन के कोई मायने नहीं। 
 
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को प्रगतिशील ही रहना है। और साथ ही मुश्किलों में भी मुस्कुराना है। जो पाया है उसमें संतोष करना है, पर फिर साथ ही जीवन को सार्थक बनाने हेतु भी प्रयासरत रहना है।
 
अमेरिकन लेखक होली ब्लैक का लिखा एक विचार ....
 
" If curiosity killed the cat, it was satisfaction that brought it back-"
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