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नाटक ‘हैलो शेक्सपियर’: रंगकर्मियों के लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं

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शनिवार, 10 दिसंबर 2022 (16:06 IST)
(लोकमित्र गौतम)
आमतौर पर मुहावरे किसी बात को कहने के लिए प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। बहुत कम ऐसे मौके होते हैं, जब मुहावरे प्रतीक नहीं, बल्कि हक़ीक़त को व्यक्त करने का ज़रिया बन जाते हैं। वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और सृजनशील रंगकर्मी शकील अख़्तर व नाट्य निर्देशक हफीज खान द्वारा मिलकर लिखा गया प्रयोगधर्मी नाटक ‘हैलो शेक्सपियर’ को ‘गागर में सागर’ कहना कोई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति नहीं बल्कि हक़ीक़त को बयां करना है।
वाकई लगभग डेढ़ से दो घंटे की मंचन अवधि के लिए तैयार किया गया नाटक ‘हैलो शेक्सपियर’ सागर को गागर में समेटने की न सिर्फ बेहद सजग बल्कि बहुत ही संवेदनशील कोशिश है। बाल एवं शैक्षिक रंगमंच से सरोकार रखने वाले रंगकर्मियों के लिए तो यह किसी खजाने से कम नहीं है। ‘हैलो शेक्सपियर’ एक अद्भुत नाट्य कृति है। इसमें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नाटकार विलियम शेक्सपियर के छह प्रमुख नाटकों के महत्वपूर्ण दृश्य और खुद शेक्सपियर के जीवन की प्रमुख गतिविधियों को बहुत सलीके से प्रवाहमयी सूत्र में पिरोया गया है।
बड़ी बात यह भी है कि इस अनूठे एक्सपेरिमंटल नाटक को महंगे तामझाम और हैवी कॉस्टम्यूम ड्रामा से बचाने की कोशिश की गई है। जीन्स और टी शर्ट पहनकर और प्रतीकात्मक तरीके से भी इस नाटक को अभिनीत किया जा सकता है। इस तरह से यह नाटक स्कूल,कॉलेज के साथ ही कोई भी कलाकार मंडली आराम से खेल सकती है।
विलियम शेक्सपियर रंगमंच का अप्रतिम नाम : दुनिया के किसी भी कोने में नाटकों और नाटककारों की जब भी कोई बात होती है, विलियम शेक्सपियर उसमें अप्रतिम नाम होता है। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा रंगकर्मी हो जिसने अपने रंग जीवन का एक बड़ा हिस्सा शेक्सपियर के नाटकों के साथ न गुजारा हो। दुनिया के किसी न किसी कोने में हर दिन शेक्सपियर का कोई न कोई नाटक मंचित होता रहता है। उनके लिखे नाटक दुनिया की 40 से ज्यादा भाषाओं में अनुवादित हैं और इससे भी ज्यादा भाषाओं में उनका भावपूर्ण रूपातंरण हुआ है। रंगकर्मियों के बीच सदियों से महान नाटकों के रूप में हैमलेट, ऑथेलो, रोमियो जूलियट, किंगलियर, मैकबैथ और जूलियस सीजर जैसे विश्वविख्यात नाटक चर्चा का विषय रहे हैं। दुनिया के महान से महान नाटककारों ने इन नाटकों की प्रस्तुतियां की हैं और इनमें से एक-एक नाटक ऐसा है, जिस पर आप महीनों लिख और बोल सकते हैं।
एक जिल्द में छह नाटकों को समेटने का चमत्कार : आमतौर पर नाटककार जितनी आसानी से अपनी प्रस्तुतियों के लिए विलियम शेक्सपियर के नाटकों का चुनाव करते हैं, वैसे ही शायद ही कोई ऐसा महान निर्देशक हो जो पूरे दावे से यह कह सके कि उसने शेक्सपियर के किसी एक नाटक को सभी संभावित आयामों से मंचित कर चुका है और अब और नये तरीके से उसके मंचन की कोई भी कल्पनाशीलता शेष नहीं रही। कहने का मतलब यह है कि ये सभी नाटक अपने आपमें एक महान काव्य दर्शन हैं। एक समूचे युग बोध और युग दर्शन को अपने में समेटे हैं। ऐसे में जरा सोचिए शेक्सपियर के छह विश्वविख्यात नाटकों को एक जिल्द में समेटना या एक सीमित अवधि के मंचन के लिए डिजाइन करना कितनी गहरी और चमत्कारिक कल्पनाशीलता की मांग करता है। ‘हैलो शेक्सपियर’ में यह चमत्कार हुआ है। इस नाटक के लेखक द्वय शकील अख्तर और हफीज खान ने सचमुच में यह चमत्कार कर दिखाया है।
मौलिक, सरस और प्रभावशाली नाटक : यह शॉर्ट प्ले पढ़ने में इतना मौलिक, इतना सरस और इतना प्रभावशाली लगता है कि पता ही नहीं चलता कि यह अपने आपमें कोई अलग नाटक नहीं बल्कि महान नाटककार की छह विश्व प्रसिद्ध नाट्य कृतियों का संक्षिप्त रूप है। इसके लेखकों ने अपनी इस प्रस्तुति को इतना मुकम्मिल ढांचा दिया है कि यह अपने आपमें एक मौलिक रचना महसूस होता है। सिर्फ इतना ही नहीं लेखकों ने महान नाटककार विलियम शेक्सपियर को भी उनकी इस विश्व प्रसिद्ध कृतियों का एक किरदार बना दिया है। वाकई यह कल्पनाशीलता की जबरदस्त उड़ान है। मैं कोई नियमित नाट्य समालोचक नहीं हूं, इसलिए मुझे नाट्य समालोचना की नियमित शब्दावली नहीं मालूम, लेकिन मैंने इस नाटक को जब पढ़ना शुरु किया, तो इसके आकर्षण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे नाटक को प्राक्कथन से लेकर उपसंहार तक एक सांस में पढ़ गया। यह इतना ‘स्मूथ’ और ‘सेप्ड’ नाटक है कि एक लरजती हुई कविता सा महसूस होता है, वह भी अद्भुत मनोरंजन और दर्शन से भरपूर।
प्रस्तुति में वही विराटता और आवेग : सबसे बड़ी बात यह है कि दुनिया के महानतम नाटककार की छह महानकृतियों को एक कड़ी में पिरोने के बावजूद यह कृति कहीं से भी सरलीकृत नहीं हुई। ऑथेलो, मैकबेथ, हैमलेट जैसे नाटकों को एकल प्रस्तुतियों में देखने के दौरान जो भावनात्मक आवेग पैदा होते हैं, दिल और दिमाग जिस ग्रीकन ट्रेजडी के हाहाकार में डूबता उतर आता है, उन सभी मनोभावों और मनोवेगों का एहसास इस साझी प्रस्तुति में पूरी विराटता और पूरे आवेग के साथ मौजूद है। आश्चर्यजनक बात यह है कि एक ही नाटक में कई बार कोई एक दृश्य विधान या एक घटना बाकी सब पर इतनी हावी हो जाती है कि पूरा नाटक उसी के इर्दगिर्द घूमने लगता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसमें छह कालजयी नाटकों को एक साथ पिरोया गया है, मगर कोई भी नाटक किसी दूसरे नाटक की छाया में न तो अपने प्रभाव को खोता है और न ही अपनी प्रभावी रंग दृश्यता से ओझल हुआ है। यह अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर मैं कहूं कि ‘हैलो शेक्सपियर’ पढ़ते हुए एक ही समय, एक ही मनःस्थिति में छह महान कालजयी कृतियों का एहसास होता है।
(लोकमित्र गौतम नई दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
Edited: By Navin Rangiyal

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