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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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हर नारी में नवदुर्गा : नवरात्रि में महसूस कीजिए स्त्री के स्वरूप को...

हर नारी में नवदुर्गा : नवरात्रि में महसूस कीजिए स्त्री के स्वरूप को...
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स्मृति आदित्य

नवरात्रि में भारतीय नारी एक अलग ही सजधज और रंग रूप में दिखाई देती है। भारतीय स्त्री का हर रूप अनूठा है, अनुपम है, अवर्णनीय है। एक पहचान, एक परिभाषा, एक श्लोक, एक मंत्र या एक सूत्र में भला कैसे अभिव्यक्त हो सकती है? साहस, संयम और सौंदर्य जैसे दिव्य-दिव्य गुणों को समयानुरूप इतनी दक्षता से प्रकट करती है कि सारा परिवेश चौंक उठता है।
 
यही कारण है कि त्योहारों का आगमन उसके रोम-रोम से प्रस्फुटित होता है। उसकी मन-धरा से सुगंधित लहरियां उठने लगती हैं। उसके श्रृंगार में, रास-उल्लास में, आचार-विचार और व्यवहार में, रूचियों, प्रकृतियों और प्रवृत्तियों से त्योहार के सजीले रंग सहज ही झलकने लगते हैं।
 
गति, लय, ताल तरंग सब पायल के नन्हे घुंघरुओं से खनक उठते हैं। बाह्य श्रृंगार से आंतरिक कलात्मकता मुखरित होने लगती है। पर्वों की रौनक से उसके चेहरे का नमक चमक उठता है। शील, शक्ति और शौर्य का विलक्षण संगम है भारतीय नारी।
 
नौ पवित्र दिनों की नौ शक्तियां नवरात्रि में थिरक उठती हैं। ये शक्तियां अलौकिक हैं। परंतु दृष्टि हो तो इसी संसार की लौकिक सत्ता हैं। अदृश्य नहीं है, वे यही हैं। त्योहारों पर व्यंजन परोसती अन्नपूर्णा के रूप में, श्रृंगारित स्वरूप में वैभवलक्ष्मी बनकर, बौद्धिक प्रतिभागिता दर्ज कराती सरस्वती और मधुर संगीत की स्वरलहरी उच्चारती वीणापाणि के रूप में।
 
शौर्य दर्शाती दुर्गा भी वही, उल्लासमयी थिरकने रचती, रोम-रोम से पुलकित अम्बा भी वही है। एक नन्ही सी कुंकुम बिंदिया उसकी आभा में तेजोमय अभिवृद्धि कर देती है। कंगन की कलाकारी जिसकी कोमल कलाई में सजकर कृतार्थ हो जाती है। जो स्वर्ण शोरूम में सहेजा होता है वह उस पर सजकर ही धन्य होता है।
 
मेहंदी की आकृतियाँ ही सुंदर होती तो पन्नों पर पर क्यों नहीं खिल उठती? यह उसकी गुलाबी नर्म हथेलियां होती हैं जो मेहंदी को भव्यता प्रदान करती है। उसके श्रृंगार में मन के समूचे सुंदर भाव सुव्यक्त हो उठते हैं। गरबों की थिरकन से लेकर पूजा की पुलक तक में संपूर्ण संस्कृति उसके सौम्य स्वरूप में झरती है।
 
मधुर मुस्कान और मोहक व्यक्तित्व से संपन्न सृष्टि की इतनी सुंदर रचना हमारे बीच है, पर हमारी दृष्टि क्यों बाधित हो जाती है? क्यों नहीं पहचान पाते हम?
 
बांहों भर आकाश नहीं दे सकते हम। नहीं जानते कि आकाश जितनी लंबी बांहें हैं उसकी। अनंत, अपार, असीम। उसने विस्तारित नहीं की है। शून्य से शिखर तक पहुंचने की अशेष शक्ति निहित है उसमें। इस नवरात्रि पर प्रार्थना करें, हर देवी में स्फुरित हो ऐसे सुंदर भाव कि समा सके वह समूचा आसमान और नाप सके सारी धरती अपने सुदृढ़ कदमों से।
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