Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

बढ़ती आबादी समस्या नहीं प्रतिदिन उपलब्ध प्राकृतिक लोक ऊर्जा है

अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)
शनिवार, 5 नवंबर 2022 (15:13 IST)
भारतीय दर्शन में विचार-विमर्श द्वारा समस्या समाधान की लंबी और मजबूत विरासत रही हैं। जिसे आगे बढ़ाकर समाधान खोजने के बजाय समाज के तथाकथित आगेवान चिंतन के बजाय चिंता व्यक्त करते हुए समाधान खोजने की सतही बात करते हैं। भारत देश कोई भीड़भरा रेल का डिब्बा नहीं है जिसमें बैठने की जगह नहीं बची हो। भीड़ और देश की जनता या आबादी में मूलभूत अंतर होता है।
 
भीड़ को लेकर व्यवस्थागत चिंता तो समझ में आती है। देश की आबादी को किसी भी रूप से भीड़ की तरह न तो देखा जा सकता है, न ही भीड़ की तरह नियंत्रित करने की भी बात कही जा सकती है। साथ ही देश की समूची बढ़ती आबादी को किसी भी रूप में देश के संतुलन के लिए खतरा भी नहीं निरूपित किया जा सकता है। किसी भी देश के नागरिक उस देश की मानव शक्ति या नागरिक ऊर्जा का अंतहीन स्रोत होते हैं।
 
देश की आबादी से डरकर या भयभीत होकर या चिंता व्यक्त कर हम हमारे देश की लोकशक्ति या आबादी के प्रति अपनी जिम्मेदारी से भागने की भूमिका खड़ी करके अपनी कालप्रदत्त जिम्मेदारी से पिंड ही छुड़ाना चाहते हैं। कोई भी सत्ताधारी समूह यदि अपने देश की आबादी को खतरा या समस्या मानता है तो उसका सीधा-सीधा एक ही अर्थ है कि सत्ताधारी समूह ही उस कालखंड की सबसे बड़ी समस्या है।
 
किसी भी देश का कोई भी नागरिक किसी के द्वारा भी अपने खुद के ही देश में अवांछित नहीं माना जा सकता है। देश के नागरिक देश की बुनियाद हैं। नागरिक आबादी को समस्या के रूप में देखने की दृष्टि वाली धारा में देश और देश के लोगों को लेकर आज के सत्तारूढ़ समूह में समस्या समाधान की व्यापक बुनियादी समझ का ही अकाल ही माना जाएगा।
 
दुनियाभर के देशों में जलवायु विविधता और आबादी के घनत्व में मूलभूत अंतर होता है। दुनियाभर में लोगों की या आबादी की सधनता में भी अंतर होता ही है। किसी देश में लोगों की संख्या अधिक है तो कई देशों में आबादी बहुत कम हैं। प्रत्येक देश के राज और समाज में देश में उपलब्ध आबादी के मान से देश के राजकाज और समाज का तानाबाना बुना जाता है।
 
किसी देश की आबादी के बुनियादी सवालों का हल नहीं निकाला जा रहा है तो उसका सीधा अर्थ है कि राजकाज करने वाले समूहों में वैचारिक दृष्टिदोष है। आबादी समस्या नहीं होती सम्यक् दृष्टि हो तो आबादी हर समस्या का प्राकृतिक समाधान है। आबादी देश दुनिया का विकेंद्रित समाधान भी है और प्राकृतिक संसाधन भी। हमारी संकुचित सोच में स्वार्थपूर्ण विचारों का विस्तार करने की दिशादृष्टि निरंतर बढ़ती ही जा रही है।
 
लोकतांत्रिक भारत में तथाकथित राजनीति की जितनी भी धाराएं हैं, उनके सोच-विचार में एक अजीबोगरीब साम्य दिखाई देता है। जब कोई राजनीतिक जमात सत्ता समूह में शामिल होती है तो वह तत्कालीन विपक्ष को अप्रासंगिक और वितंडावादी विचार समूह की संज्ञा देने में नहीं हिचकती। इसी तरह की वैचारिक भूमिका विपक्ष की भी प्राय: होती है। सत्ताधारी समूह और विपक्षी दल दोनों के पास अपने मौलिक विचार का अभाव होता जा रहा है। जब जैसी भूमिका हो, तब वैसे परस्पर विरोधी विचार को व्यक्त करते हैं।
 
आज का सत्ताधारी समूह जब विपक्ष में था तो उसे अपने इर्दगिर्द जमा भीड़ से ऊर्जा मिलती थी कि 'देखो देश के कितने अधिक लोग हमारे साथ हैं।' पर जैसे ही यह समूह सत्ताधारी समूह बनता है तो उसे देश की आबादी ही समस्या लगने लगती है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि भारत में राजनीतिक जमातें न तो समस्या को समझ पा रही हैं और न ही अपने देश की आबादी में निहित लोकशक्ति को देख-समझ पा रही हैं।
 
आज का भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है। सत्ताधारी समूह के आगेवान विचारक 50 साल बाद की उस दुनिया की सबसे बड़ी भारत की संभावित बूढ़ी आबादी के सवाल पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। भविष्य की चिंता करना चाहिए, पर वर्तमान के सबसे बड़े सवाल को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
 
आज के हमारे सत्ताधारी समूह के पास आज युवा आबादी के बुनियादी सवालों को हल करने की शायद कोई दृष्टि ही नहीं है। आज हमारे देश में युवा आबादी का देश-दुनिया के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन में कैसे निरंतर उपयोग किया जा सकता है, यह विचार और व्यवहार ही भविष्य के भारत की आधारशिला होगी और आज के भारत की आबादी के सवालों का समाधान।
 
आज भारत के गांव और शहर में जीवन-यापन के साधनों का अभाव सबसे बड़ा सवाल है। हर गांव और शहर में जीवन-यापन के साधनों का अभाव होता जा रहा है। आबादी की ऊर्जा का उपयोग नहीं और उधार की यांत्रिक ऊर्जा के गैरजरूरी इस्तेमाल को ही विकास का आदर्श बनाया जा रहा है। मानवीय ऊर्जाजन्य देश, समाज और नागरिक को बीते ज़माने की बात कहकर हम देश की आबादी की ही जीवन के हर क्षेत्र में खुली अवमानना कर देश चलाने का स्वांग रच रहे हैं।
 
देश का प्रत्येक नागरिक जहां भी सपरिवार रहता हो, उसे भारतभर में जीवन-यापन करने के तरीके उपलब्ध करवाना ही देश के राजकाज का मूल है। देशभर में लोगों को अपने-अपने स्थानों पर रहते हुए जीवन-यापन का कोई साधन या अवसर खड़ा करने की चुनौती को स्वीकार कर समाधान खड़े करते रहना ही सर्वकालिक इंतजाम वाली लोक आधारित राजनीति और सामाजिक संरचना का लोक ऊर्जाजन्य तानाबाना है।
 
Edited by: Ravindra Gupta
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

सम्बंधित जानकारी

सभी देखें

जरुर पढ़ें

धनतेरस सजावट : ऐसे करें घर को इन खूबसूरत चीजों से डेकोरेट, आयेगी फेस्टिवल वाली फीलिंग

Diwali 2024 : कम समय में खूबसूरत और क्रिएटिव रंगोली बनाने के लिए फॉलो करें ये शानदार हैक्स

फ्यूजन फैशन : इस दिवाली साड़ी से बने लहंगे के साथ करें अपने आउटफिट की खास तैयारियां

अपने बेटे को दीजिए ऐसे समृद्धशाली नाम जिनमें समाई है लक्ष्मी जी की कृपा

दिवाली पर कम मेहनत में चमकाएं काले पड़ चुके तांबे के बर्तन, आजमाएं ये 5 आसान ट्रिक्स

सभी देखें

नवीनतम

बहराइच हिंसा का सच स्वीकारें

इस दीपावली अपने आउटफिट को इन Bangles Set से बनाएं खास, देखें बेस्ट स्टाइलिंग आइडियाज

गणेश शंकर विद्यार्थी : कलम से क्रांति लाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती पर विशेष श्रद्धांजलि

मां लक्ष्मी के ये नाम बेटी के लिए हैं बहुत कल्याणकारी, सदा रहेगी मां की कृपा

दिवाली के शुभ अवसर पर कैसे बनाएं नमकीन हेल्दी पोहा चिवड़ा, नोट करें रेसिपी

આગળનો લેખ
Show comments