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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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हल्के लॉ एंड ऑर्डर पर भारी भीड़तंत्र

हल्के लॉ एंड ऑर्डर पर भारी भीड़तंत्र
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अमित शर्मा

लॉ एंड आर्डर (कानून व्यवस्था) एक बेहद अनुशासित शब्द है, इसको सुनते ही मैं जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से अक्सर सावधान की मुद्रा में आ जाता हूं। अगर एक से दूसरी बार सुन लूं तो मेरे चरण, आराम की शरण छोड़कर परेड की मुद्रा में आ जाते हैं। लॉ-ऑर्डर सुनने में बहुत स्वादिष्ट लगता है, इसलिए आए दिन इसे हमारे कानों की खुराक बनाकर खबरों में परोसा जाता है। लॉ एंड आर्डर के बारे में सबसे खूबसूरत बात यह है कि ये सरकारों की तरह बेवफा नहीं होता है, चाहे सरकारें बदलती रहे लेकिन इसकी स्थिति कभी नहीं बदलती है। 
 
देश का लॉ एंड ऑर्डर हमेशा एक जैसा रहकर आमजन में अपना विश्वास बनाए रखता है क्योंकि यह किसी को भी अपने भरोसे नहीं रहने देता है और सबको स्व-सुरक्षा के लिए प्रेरित कर आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है। हमारा लॉ एंड आर्डर काफी मिलनसार स्वभाव का है, कभी भी किसी से हाथ मिला लेता है मतलब जब चाहे तब इसे कोई भी अपने हाथ में ले सकता है और इसके लिए कभी "हैंडल विद केयर" की शर्त भी नहीं रखी जाती है। 
 
हमारी सरकारों ने लॉ-ऑर्डर को हमेशा फिट रखा है कभी भी इस पर चर्बी जमा नहीं होने दी, आए दिन सड़कों पर इसकी परेड निकालकर इसे इतना हल्का बना दिया है कि देश का आम आदमी भी इसे आसानी से अपने हाथों में ले सकता है। हल्के लॉ एंड आर्डर को सरकार, भारी भीड़तंत्र से बैलेंस कर लेती है। अब स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि सारी मोबाइल कंपनियों के सामने चैलेंज आ खड़ा हुआ है कि अब इतना हल्का मोबाइल बनाए की उसे देश के लॉ एंड आर्डर की तरह आसानी से हाथ में लिया जा सके। 
 
धरना प्रदर्शन हो, आंदोलन हो, किसी नेता/अभिनेता/बाबा की गिरफ्तारी हो या फिर "कानून तोड़ातुर" और कोई प्रयोजन, हमारा गांधीवादी लॉ-आर्डर एक गाल पर तमाचा पड़ने पर दूसरा गाल खुद ब खुद ही आगे कर देता है। मुझे बहुत बुरा लगता है जब देश की जनसेवी सरकारो पर आरोप लगता है कि ये खेलों को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं करती है जबकि कानून के साथ बड़े ही कुशल तरीके से खिलवाड़ करने वाली असंख्य प्रतिभाए तो हमारी सरकारो की दूरदर्शी सोच के गर्भ से ही उपजी है। 
 
भले ही सरकारें हर हाथ में काम और रोटी नहीं दे पाई हो लेकिन उसने कानून व्यवस्था को हर हाथ तक आसानी से पहुंचा ही दिया है और यही सही मायनों में जनता का सशक्तिकरण है। कानून से खिलवाड़ करने के साथ-साथ अगर आपको विक्टिम कार्ड भी खेलना आ जाए तो आपको सहानुभूति के साथ-साथ और भी कई जीवनोपयोगी वस्तुए फ्री में मिल जाती हैं। कुछ लोगों की विक्टिम कार्ड खेलने में रूचि देखकर लगता है वो अपने पैन कार्ड से पहले अपने विक्टिम कार्ड को आधार से लिंक कर लेंगे।
 
कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी सविंधान ने चुनी हुई सरकारों को दी है और सरकारों ने अभी तक दृढ़तापूर्वक अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए इसे लचीले शेप में बनाए रखा है। नरम और लचीली कानून व्यवस्था होने से आवश्यकता और औकतानुसार कभी भी इसे सरकार से जनता और जनता से सरकार के हाथ में शिफ्ट किया जा सकता है और इसी तरह से आमजन की लोकतंत्र में भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।

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