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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मन के चाचर चौक में : गुजरात में बगैर गरबे की नवरात्रि

मन के चाचर चौक में : गुजरात में बगैर गरबे की नवरात्रि
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निधि सक्सेना

गुजरात में बगैर गरबे की नवरात्रि न कभी देखी न सुनी..इस वर्ष मां चाचर चौक में नहीं पधारीं..शहर सूना.. गरबा ग्राउंड सूने..रातें सूनी..
 
वरना यहां तो नवरात्र के चार महीने पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है.. कि कोई गुज्जू जब चाचर चौक पर कदम रखता है तो हर उदासीनता तिरोहित कर देता है..जब मां के इर्दगिर्द घूमता है तो हर मनोमालिन्य उनके चरणों में अर्पित कर देता है.. 
 
कि उसकी उमंग का खुमार है गरबा ..उसकी  आस्था का परिचय है गरबा..वर्ष भर इस महायज्ञ के आयोजन का इंतजार है गरबा..
 
नौ दिन मन के हर रंग की अभिव्यक्ति का नाम है गरबा..
 
परन्तु इस साल सब सूना..
 
न चाचर चौक में मां का आगमन है
न गरबे की रमझम
न रात बारह बजे आरती के मधुर स्वर हैं
न रास न राग न उल्लास..
पर रुकिए
इस बार थोड़े अलग ढंग से नवरात्रि मनाते हैं न
मां को मन के चाचर चौक में उतारते हैं
मन से मन का रास खेलते हैं
भीतर गरबा घूमते हैं
भीतर आरती गाते हैं..
कि इस बार उत्सव का रंग भीतर चढ़ने देते हैं..
मां भी तो उतनी ही शिद्दत से याद कर रही होगी हमें
कहीं उदास न लौट जाए...
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