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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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relationship : उपहार का ऐसा लेनदेन ना ही करो तो बेहतर

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डॉ. छाया मंगल मिश्र

बेबी की दोस्त अलका ने कान में जो टॉप्स पहने थे उसमें एक सफेद मोती चिपका था। वो बड़े जतन से उसे संभाल कर पहने थी। कहीं गिर न जाएं। बेबी ने पूछा ऐसे क्यों कर रही ? अलका ने बड़े प्यार और गर्व से बताया कि मेरी भाभी नेपाल से ये टॉप्स सच्चे मोती के लाई है। बहुत महंगे हैं। सुन कर बेबी जोर-जोर से हंसने लगी। बोली ये टॉप्स आड़ाबाजार के हैं। ठेलों में दस-दस रूपये में मिल रहे हैं। तेरी भाभी जब खरीद रही थी तब मैं भी वहीं खड़ी थी। ये देख मैंने भी लिये।अलका का मुंह उतर गया। शर्मिंदगी होने लगी खुद पर। सोचने लगी उसकी भाभी ने ऐसा उसके साथ क्यों किया? पर कोई कारण उसे समझ ही नहीं आया।
 
एक बार लक्ष्मी को डॉक्टर ने हवा पानी बदलने की सलाह दी। ज्यादा दूर जाने की बजाय उसके घर के लोगों ने उन्हें पचमढ़ी जाने की सलाह दी। उस की बड़ी बहन भी भोपाल ही रहती थी तो उसे भी ठीक लगा। वहां एक रात रुकने का इरादा किया। अगली सुबह पचमढ़ी, फिर वापिस इंदौर लौट आने का कार्यक्रम तय हो गया। अपनी नन्ही सी बेटी के साथ निजी वाहन में चल पड़े। शादी के बाद पहली बार बहन के घर जा रहे थे। बड़े खुश थे। 
 
रात को पहुंच कर खाना खाया और सुबह निकलने की तैयारी की। बहन हाथ में कुछ पैकेट लिए आई। कंकू लगाया और पैकेट थमा दिए। लक्ष्मी ने ऐसे के ऐसे ही बेग में रख लिए। तय कार्यक्रम से पचमढ़ी टूर पूरा किया, घर लौट आये। सभी के सामने बड़ी बहन के दिए गिफ्ट खोले। उसमें लक्ष्मी की सालभर की गुडिया का छोटा सा गर्मियों में पहनने सा दो बद्दी वाला लेडिस रुमाल के जितने कपड़े वाला फ्राक/झबला, पति के लिए खादी का कुरता, लक्ष्मी के लिए सलवार कुर्ता था। 
 
यहां तक तो ठीक है पर जब देखा तो उसमें प्राइज टेग लगे थे। उनमें सभी की कीमत लिखीं थी। जानते हैं उनमें क्या कलाकारी थी? उसने उन सभी में अंक बढा दिए थे। किसी में आगे जीरो किसी में पीछे संख्या। साथ ही जिस पेन से किये उनकी स्याही का रंग व लिखावट में भारी अंतर था। वो भूल गई की सभी अन्न खाते हैं। 

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लक्ष्मी के ससुर उसी वक्त घर के सामने ही खादी ग्रामोद्योग की दुकान गए और वहां से उनकी असल कीमत जानी। कितनी हद है यह तो। आपने अपनी मर्जी से दिए थे न, तो फिर ऐसी नालायकी करने की क्या जरुरत आ पड़ी। उसकी बहन का पति बैंक मनेजर, वो खुद सेंट्रल गवरमेंट की अच्छी खासी नौकरी में थी। शायद लक्ष्मी व उसके पति को उसने अपनी झूठी शान की छाप छोड़ने के लिए ऐसी बेवकूफाना हरकत की हो। पर ये निरी परम मूर्खता ही थी। जिससे लक्ष्मी को तो लज्जित होना ही पड़ा, संबंधों में भी आजन्म खटास पैदा हो गई। 
 
लक्ष्मी ने तुरंत यह कह कर सब वापिस भेज दिए कि हम इतने महंगे कपड़े नहीं पहनते। उसकी बहन को समझ तो सब आ गया था पर जिसकी आंखों और अक्ल में बेशर्मी की पट्टी चढ़ी होती है उसे कुछ भी दिखाई जो नहीं देता। और ऐसे लोग ऐसी हरकतों से बाज भी नहीं आते।
 
कभी ‘म्यांमार’ की साड़ी पहनी है आपने? साडियां पहनने वाला भारत देश अब म्यांमार से साड़ी बुलवाएगा। सोच कर ही तरस आता है ऐसे लोगों पर। निधि के मकान का वास्तु हुआ था। उसकी मामी ने एक साड़ी उसे यह कहकर ओढाई की तेरे मामा इसे म्यांमार से तेरे लिए लाये हैं। हरे रंग की मोटे रेग्जिन से कपड़े वाली साड़ी का वे जोर जोर से सबके बीच ‘इम्पोर्टेड है’ कह कर बखान रहे थे। निधि पढी-लिखी डॉक्टरेट थी। पर चुप थी। 
 
उसकी भाभी ने बताया की यह साड़ी मामी को उनके पीहर से उनकी भाभी ने दी थी जो इन्हें पसंद नहीं आई। आनी भी नहीं थी। हम भारतवासीयों को ‘म्यांमार' की साड़ी कैसे पसंद ? बस उन्होंने ‘टिका’ दी निधि को। अकेले में निधि ने मामी से पूछ ही लिया कि ‘मामी विदेशों में वो भी म्यांमार जैसी जगह साडियां कैसे? मैंने तो कहीं पढ़ा-सुना नहीं। यदि हैं तो गईं भारत से ही होंगी न? वैसे ऐसी साड़ी मैंने आपके पीहर में किसी के पास देखी है।’
 
 बस मामी को काटो तो खून नहीं। उनका दांव फेल जो हो गया था। आज की भाषा में ‘एक्सपोज' होना कहते हैं इसे। क्यों करते हैं लोग ऐसा समझ से ही परे है।
 
इन सभी परिस्थितियों को आपको खुद ही अपनी बुद्धि व विवेक से परिस्थितियों के मद्देनजर निपटना व सुलझाना होता है। इस बीमारी का कोई परमानेंट ईलाज आज तक नहीं मिल पाया है। ‘जैसे को तैसा’ वाला फार्मूला चला सकें तो लगाइए। वरना भुगतें । सहन करें। या ‘मुंह फट’ हो जाइए। क्योंकि ऐसा ही कुछ आपके, हमारे, हम सभी के साथ कभी न कभी घटता है। यदि नहीं तो आप बहुत भाग्यशाली हैं। 
 
ये सारे लोग किसी दूसरे ग्रह से नहीं आते। यहीं होते हैं हमारे साथ, हमारे आस-पास। कुछ अपने कुछ पराये जिन्हें दूसरों के साथ ऐसा करने की गन्दी लत पड़ी होती है। यह तो कुछ छोटे से, जरा से ही उदाहरण मैंने पेश किए हैं। इनके आलावा भी कई और कई प्रकार के , कई मौकों पर गिफ्ट-गेम इज्जत का फलूदा करते-कराते खेले जाते हैं और खेले जाते रहेंगे। कारण कई हो सकते है क्योंकि ये जीवन है, इस जीवन का यही है...यही है...रंग रूप, थोड़े गम हैं थोड़ी खुशियां यही हैं....यही है...यही है छांव धूप...

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