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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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फेसबुक टैगिंग या फिर डिजिटल रैगिंग

फेसबुक टैगिंग या फिर डिजिटल रैगिंग
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अमित शर्मा

सभी राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय समस्याओं के बीच फेसबुक पर टैगिंग की समस्या भी बिना किसी मीडिया कवरेज के विकराल रूप धारण करती जा रही है। ना तो फेसबुक और ना ही भारत सरकार इस गंभीर समस्या की रोकथाम के लिए गंभीर दिखने का अभिनय करती नजर आ रही है। रैगिंग को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए गए है लेकिन टैगिंग की प्रताड़ना रोकने के लिए मजाक भी ठीक से नहीं बन पा रहे हैं।
 
पिछले साल जब प्रधानमंत्री मोदी ने फेसबुक के संस्थापक जुकरबर्ग से मुलाकात की थी तो आशा की जा रही थी इस समस्या को वो अपने कद की तरह जोर-शोर से उठाएंगे, लेकिन उनके एजेंडे में टैगिंग की समस्या राम-मंदिर मुद्दे की तरह ही नदारद मिली, जो भारत सरकार की विदेश नीति और कूटनीति दोनों पर चार-चांद लगाने के बजाए प्रश्नचिन्ह लगाती है। 
 
फेसबुक को अगर आभासी दुनिया माना जाता है, तो फेसबुक पर टैग करने वाले गिरोह को इस दुनिया की शांति भंग करने वाले असामाजिक तत्व मान लेने में कोई मानहानि नहीं है। दरअसल फेसबुक पर टैग करने वाले "एकला चालो रे" की विचारधारा के घोर विरोधी है। वे हर कार्य को समूह में करके सामूहिकता का नेतृत्व कर इस आभासी दुनिया में असामाजिकता को वायरल करना चाहते हैं। फेसबुक ने लोगों को इतना एकाकी बना दिया है कि वे अपने आसपास की दुनिया से बेखबर रह कर केवल अपने न्यूजफीड से खबरें लेते हैं। इसी एकाकीपन को टैग गिरोह अपनी "टैगान्धता" से भंग करता है।
 
मौसी की ननद के साले की शादी हो या बुआ की चाची के भतीजे का मुंडन या फिर और कोई लाइक/कमेंट टपकातुर प्रयोजन, टैग गिरोह हर मौके पर तब तक हैप्पी और प्राउड नहीं "फील" पाता है जब तक अपनी टाइमलाइन पर 15-20 फोटो पोस्ट कर थोक के भाव में लोगो को टांग ना दे, मतलब टैग ना कर दे। किसी पोस्ट में टैगीत व्यक्ति ठीक उसी तरह से महसूस करता है जैसे किसी हेंगर में टंगा हुआ शर्ट। टैग की हुई पोस्ट पर आने वाला हर लाइक और कमेंट आपको ऐसे चिढ़ाते हैं मानो आपके जख्मों पर आयोडीन युक्त नमक छिड़क रहे हो। टैग कर करके टैग माफिया आपकी वाल की हालत गुप्तरोग के निवारण के विज्ञापनों से सजी सार्वजनिक दीवार की तरह कर देते हैं।
 
उस समय स्थिति दयनीय रूप से हास्यास्पद हो जाती है जब आप अपनी 507 वी बार फि‍ल्टर की गई प्रोफाइल पिक अपलोड करके पथरीली आंखों से लाइक के इंतजार में बैठे हों और नोटिफिकेशन आते ही नंगे पैर दौड़कर जाने पर आपको पता चले कि वो तो आपको टैग किए गए फोटो पर कमेंट की नोटिफिकेशन थी। टैग रिमूव करने पर आप उसी तरह से राहत महसूस करते है जैसा तीव्र लघुशंका के निवारण पर करते है।
 
डिजिटल आपाधापी के इस घोर कलयुग में भी इंसानियत समाप्त नहीं हुई है, अभी भी कई लोग टैग की गई सभी पोस्ट अपनी वाल पर दिखने के लिए अनुमति दे देते हैं। दया और करुणा का एक्स्ट्रा रिचार्ज करवा कर धरती पर डिलीवर किए गए लोग तो टैग किए जाने पर इतने भावविभोर हो जाते हैं कि टैग किए जाने को ही अपना सम्मान समारोह समझ लेते हैं और कमेंट बॉक्स में  "थैंक्स फॉर द टैग"  लिखकर टैगीत होने के ऋण से उऋण होते है।
 
पहले के जमाने में रिश्ते प्रेम के कच्चे धागे से बंधे होते थे लेकिन समय ने करवट के साथ जब जम्हाई भी ली, तो रिश्ते धागों की गांठे खोलकर डिजिटल होकर फेसबुक की वाल्स पर टांग दिए गए।
 
टैग गिरोह उस  किराएदार की तरह है जो आपकी वाल पर अनाधिकृत रूप से कब्जा कर लेते हैं लेकिन कभी आपकी पोस्ट्स पर लाइक-कमेंट्स रूपी किराया नहीं देते। चाहे कितना भी मना कर दो कुछ लोग पैग लगाकर फिर टैग करना शुरू कर देते है। परिवार और करीबी मित्रों द्वारा दिए गए टैग, ना तो उगलते बनता है और ना ही निगलते। उसे केवल दिखावे के लिए अपनी वाल पर दिखाकर नोटिफिकेशन शांत कर रिश्ते निभाए जा सकते हैं।
 
ईसा मसीह को जब सूली पर लटकाया गया था तब उनके मुंह से निकला था, हे प्रभु, "इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।" लेकिन जब किसी टैगान्ध व्यक्ति द्वारा मुझे उसकी पोस्ट में लटकाया जाता है मतलब टैग किया जाता है तो मेरे मुंह के साथ साथ हर रोम कूप से यही निकलता है, "हे प्रभु इन्हें कभी माफ मत करना, ये जानते है कि ये क्या कर रहे है।"

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