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कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए राष्ट्रपति पद तक पहुंचीं द्रौपदी मुर्मू

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कृष्णमोहन झा

, सोमवार, 25 जुलाई 2022 (17:01 IST)
1997 में उडीसा की रायरंगपुर ज़िले में नगर पालिका के पार्षद का चुनाव जीत कर अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने आज भारत की 15वीं राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। स्वतंत्र भारत के इतिहास में उनके पूर्व अब तक जो 14 राष्ट्रपति हुए हैं उन सभी से वे आयु में छोटी हैं। वे देश की ऐसी पहली राष्ट्रपति हैं जिनका जन्म देश के अत्यंत पिछड़े राज्य उड़ीसा में हुआ था। उन्होंने श्रीमती प्रतिभा पाटिल के बाद  देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने और  आदिवासी समुदाय से चुनी जाने वाली प्रथम महिला राष्ट्रपति होने का गौरव भी हासिल किया है। 20 जून 1958 को उडीसा के एक किसान परिवार में जब उनका जन्म हुआ तब कौन जानता था कि साधारण किसान परिवार की यह बेटी एक दिन देश की प्रथम नागरिक बनने का गौरव अर्जित कर इतिहास रच देगी लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर उन्होंने अपने मार्ग की  सारी बाधाओं को पराजित करते हुए विषम परिस्थितियों में भी एक के बाद एक सफलता के अनेक महत्वपूर्ण सोपान तय किए।

स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पहले राज्य सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट और कुछ वर्षों तक मानसेवी शिक्षक के पद पर भी कार्य किया जहां उन्होंने संपूर्ण निष्ठा के साथ अपने कार्यपालन किया। 1997 में उन्होंने रायरंगपुर ज़िले में पार्षद का चुनाव जीत कर राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। बाद में वे जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी बनीं। 1997 में राजनीति में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्द ही उनकी गणना राज्य के निष्ठा वान् और सिद्धांतवादी राजनेताओं में प्रमुखता से होने लगी। उड़ीसा में भाजपा और बीजद की संयुक्त सरकार में उन्होंने दो बार महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री पद के दायित्व का भी निर्वहन किया। श्रीमती मुर्मू ने महिलाओं और बालिकाओं की भलाई के लिए अनेक उल्लेखनीय कदम उठाए। उन्हें उड़ीसा विधानसभा के सदस्य के रूप में सदन के अंदर अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ विधायक को दिए जाने वाले नीलकंठ अवार्ड  से भी नवाजा गया। 

श्रीमती मुर्मू को केंद्र में  सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन उन्हें शिवसेना,बीजू जनता दल और वाई एस आर कांग्रेस,बसपा, अकाली दल ने भी अपना समर्थन प्रदान किया‌  जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा को सपा,तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिला हुआ था। राष्ट्र पति चुनाव के लिए मतदान की तारीख निकट आते आते यह सुनिश्चित हो चुका था कि वे बहुत बड़े अंतर से  जीत हासिल करेंगी। 21जुलाई की शाम को मतगणना के परिणामों में श्रीमती मुर्मू की प्रचंड विजय  ने विपक्षी दलों के मतभेदों को एक बार फिर उजागर कर दिया । श्रीमती मुर्मू को 64 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी यशवंत सिन्हा  विपक्ष के ही  पूरे मत हासिल करने में असफल रहे जो  इस बात का परिचायक है कि कि राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की रणनीति  पूरी तरह सफल रही। आगामी 25 जुलाई को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने जा रही श्रीमती मुर्मू पूर्व में झारखंड की राज्यपाल रह चुकी हैं ।इस पद पर उन्होंने 6 साल एक माह के अपने कार्य काल में  यद्यपि खुद को विवादों से दूर रखा परंतु  राज्यपाल के रूप में उनके  साहसिक फैसले उस समय चर्चा का विषय बन गए जब उन्होंने विधानसभा में पारित दो विवादास्पद विधेयक लौटा लिए जिनका झारखंड में व्यापक विरोध हो रहा था।

राज्यपाल पद पर कार्य करते हुए पदेन कुलाधिपति के रूप में उन्होंने कालेजों में छात्रों के आनलाइन नामांकन के लिए चांसलर पोर्टल शुरू करवाया जिससे कालेजों में प्रवेश के इच्छुक छात्रों को प्रवेश संबंधी दिक्कतों से छुटकारा मिला। आदिवासी समुदाय के हित सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने राज्य पाल की हैसियत से राज्य सरकार को एकाधिक बार सीधे तौर पर निर्देशित करने में कोई संकोच नहीं किया।

उनके अंदर मौजूद संगठन क्षमता और नेतृत्व कौशल ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी में आदिवासी मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद तक पहुंचाया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने आदिवासी समुदाय की लोकप्रिय नेता की छवि बनाने में सफलता अर्जित की। 2009 से 2014 की अवधि में श्रीमती मुर्मू को अपने व्यक्तिगत जीवन‌ में तीन त्रासदियों का सामना करना पड़ा जब पहले उनके दो जवान बेटों और फिर उनके पति ,भाई और मां को क्रूर काल ने उनसे छीन लिया परंतु इस जीवट महिला ने अपना धैर्य और साहस नहीं खोया और असीम दुख की इस घड़ी में वे अपनी इकलौती बेटी इतिश्री का एक मात्र सहारा बन गई। उन पांच वर्षों के दौरान घटी  त्रासदियों के कारण वे डिप्रेशन में चली गईं तब उन्होंने खुद को संभालने के लिए आध्यात्मिक संस्थान ब्रह्म कुमारी आश्रम से जुड़ने का विकल्प चुना और अध्यात्म और योग की सहायता से डिप्रेशन पर विजय हासिल की। इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वे अपना शेष जीवन गरीब, सर्वहारा,दीन दुखी और कमजोर लोगों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए समर्पित कर देंगी। उनका कहना है कि इंसान को विषम परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारना चाहिए । श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने ऐसी विषम परिस्थितियों में भी अपना हौसला बनाए रखा उससे यह भली भांति प्रमाणित हो जाता है कि वे मजबूत इरादों वाली जीवट महिला हैं इसलिए चुनाव के दौरान  उनकी यह आलोचना कतई उचित नहीं थी कि वे कमजोर राष्ट्र पति साबित होंगी। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में वे सर्वोच्च संवैधानिक पद पद की गरिमा को कायम रखने में सर्वथा सफल सिद्ध होंगी।      

श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को जब भाजपा नीत राजग का सर्वसम्मत उम्मीदवार घोषित किया गया था तभी विपक्ष को यह अहसास हो गया था कि राष्ट्रपति पद के लिए श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी का विरोध करने के लिए उसके पास कोई नैतिक आधार नहीं बचा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का निर्णय दरअसल राजग के सबसे बड़े घटक भारतीय जनता पार्टी ने लिया था जिस पर राजग के बाकी घटक दलों  निसंकोच सहमत होना स्वाभाविक था उधर विपक्ष को राष्ट्रपति पद के लिए अपने संयुक्त उम्मीदवार का नाम तय करने में काफी मशक्कत का सामना करना पड़ा। पहले राकांपा प्रमुख शरद पवार के नाम पर विचार किया गया परंतु उन्होंने प्रत्याशी बनने से इंकार कर दिया, इसके बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री , पूर्व केंद्रीय मंत्री व नेशनल कांफ्रेंस के नेता डा फारुख अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी से अनुरोध किया गया परंतु उन दोनों नेताओं ने भी राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार बनने के लिए सहमति प्रदान नहीं की।

अंततः पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी बनने पर राजी हो गए। गौरतलब है कि 2018 में भाजपा से रिश्ता तोड़ने के बाद यशवंत सिन्हा ने कुछ माह पूर्व तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष  पद की जिम्मेदारी संभाली थी । तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो एवं ‌ममता बैनर्जी की इच्छा का सम्मान करते हुए वे राष्ट्रपति पद का विपक्षी उम्मीदवार बनने के लिए राजी तो हो गए परंतु वे इस हकीकत से भलीभांति परिचित थे कि मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए वे राजग उम्मीदवार श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के समक्ष कड़ी चुनौती पेश करने में असमर्थ रहेंगे। ज्यों ज्यों राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़ती गई , त्यों त्यों कई गैर राजग  विपक्षी दलों का समर्थन भी राजग उम्मीदवार श्रीमती मुर्मू को मिलता गया और एक स्थिति ऐसी भी आई कि राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व ही श्रीमती मुर्मू के राष्ट्रपति निर्वाचित होना सुनिश्चित माना जाने लगा।        

भाजपा नीत राजग उम्मीदवार के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की जीत ने भविष्य की राजनीति के लिए  भाजपा की  संभावनाएं और बलवती बना दी हैं। इस जीत ने आदिवासी जनजातीय मतदाताओं के मन में इस विश्वास को जन्म दिया है कि भाजपा के पास सत्ता की बागडोर रहने पर ही गरीब आदिवासी तबके को सामाजिक उपेक्षा के दंश से मुक्ति मिल सकती है और उनके जीवन में विकास का नया युग शुरू हो सकता है।  श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बना कर भाजपा ने यह संदेश केवल आदिवासी समुदाय में ही नहीं बल्कि समाज के उन सभी कमजोर और गरीब तबकों तक पहुंचाने में सफलता हासिल की है जो अपने सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन को अपनी प्रगति में बाधा मानते रहे हैं। उनके मन में भाजपा ने यह इस जगा दी है कि समाज की मुख्य धारा में उनके शामिल होने का समय आ चुका है।

गौरतलब है कि देश के 104जिलों और लगभग सवा लाख गांवों में आदिवासी आबादी की बहुलता है। विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में 495 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। भाजपा ने गत लोकसभा चुनावों में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 31 सीटों पर जीत हासिल की थी। गुजरात, राजस्थान छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में गत विधानसभा चुनावों में भाजपा को काफी हद निराशा का सामना करना पड़ा था। गुजरात की 27 में से 9, राजस्थान की 25 में से 8, छत्तीसगढ़ की 29 में से 2 और मध्यप्रदेश की 47 में से केवल 16 सीटों पर ही वह विजय हासिल कर सकी । भाजपा की  अब यह उम्मीद स्वाभाविक है कि श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बनाए जाने से उक्त राज्पों के आगामी‌ विधान सभा चुनावों में वह आदिवासी बहुल सीटों के मतदाताओं के दिल जीतने में कामयाब हो सकेगी।  श्रीमती मुर्मू को देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनाकर  भाजपा ने महिलाओं को भी सकारात्मक संदेश दिया है।  केंद्र में संप्रग के शासनकाल में  राष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष पद पर महिलाएं आसीन हुईं थीं । भाजपा ने भी पहले लोकसभा अध्यक्ष पद  और अब राष्ट्रपति पद से महिलाओं को नवाज़ कर यह संदेश दिया है कि वह किसी भी मामले में कांग्रेस से पीछे नहीं है। भाजपा के धुर विरोधी राजनीतिक दलों के सामने अब यह दुविधा स्वाभाविक है कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को चुनौती देने के लिए आखिर कौन सी रणनीति कारगर साबित होगी। राष्ट्रपति चुनाव में पराजित विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा राजग उम्मीदवार श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति चुने पर बधाई देते हुए जब यह कहते हैं कि इस चुनाव ने विपक्षी दलों को एक साझा मंच पर ला दिया तो उनकी इस टिप्पणी पर आश्चर्य ही व्यक्त किया जा सकता है । हकीकत तो यह है कि इस चुनाव में विपक्षी दलों के मतभेद उभरकर सामने आ गए । राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे बताते हैं कि विभिन्न राज्यों में विपक्षी दलों के करीब 125   विधायकों सहित 17 विपक्षी सांसदों ने क्रास वोटिंग करके राजग उम्मीदवार श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की जीत के अंतर को बढ़ाने में परोक्ष मदद की । राष्ट्रपति चुनाव के बदले समीकरणों ने न केवल भाजपा की ताकत में इजाफा कर दिया बल्कि  2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी दलों को अभी से चिंता में डाल दिया है।

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