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Diwali : स्वच्छता व प्रकाश की प्रतीक दीपावली

ब्रह्मानंद राजपूत
दिवाली या दीपावली हिन्दुस्तान में मनाया जाने वाला एक प्राचीन पर्व है, जो कि हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इसके पीछे पौराणिक मान्यता यह है कि दीपावली के दिन हिन्दुओं के आराध्य अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचन्द्रजी अपने 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे। इससे पूरा अयोध्या अपने राजा के आगमन से हर्षित और उल्लसित था। अयोध्या के लोगों ने इसी खुशी में श्रीराम के स्वागत में घी के दीप जलाए। कार्तिक मास की काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों के उजाले से जगमगा उठी। 
 
मान्यता है कि तब से आज तक भारतीय प्रतिवर्ष यह प्रकाश-पर्व दिवाली के रूप में हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। दीपावली का प्रकाश बुराई पर अच्छाई की जीत और भगवान राम के जीवन में मौजूद महान आदर्शों और नैतिकता में हमारे विश्वास का प्रतीक है। 
 
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। लोग कई दिनों पहले से ही दीपावली की तैयारियां आरंभ कर देते हैं और सब अपने घरों, प्रतिष्ठानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। दिवाली के आते ही घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है।
 
 
लोग अपने घरों और दुकानों को साफ-सुथरा कर सजाते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि लक्ष्मीजी उसी घर में आती है, जहां साफ-सफाई और स्वच्छता होती है। पुराणों में बताया गया है कि दीपावली के दिन ही लक्ष्मीजी ने अपने पति के रूप में भगवान विष्णु को चुना और फिर उन्हीं से विवाह किया, इसलिए घर-घर में दीपावली की रात को लक्ष्मीजी का पूजन होता है। दिवाली के दिन लक्ष्मीजी के साथ-साथ भक्त की हर बाधा को हरने वाले गणेशजी, ज्ञान की देवी सरस्वती मां और धन के प्रबंधक कुबेरजी की भी पूजा होती है।
 
 
बेशक देश में स्वच्छता, साफ-सफाई का प्रतीक दिवाली पर्व मनाया जाता हो लेकिन आज भी स्वच्छता देश की सबसे बड़ी जरूरत है। हमारी सरकार की पुरजोर कोशिशों के बाद भी भारत में स्वच्छता अभियान सिर्फ सरकारी कार्यक्रम बनकर रह गए हैं। हजारों संस्थाएं सिर्फ फोटोग्राफ्स के लिए अभियान चलाती हैं और वाहवाही लूटती हैं लेकिन स्वच्छता के प्रति उनका योगदान फोटो कराने के अलावा तनिकभर भी नहीं है।
 
 
मगर भारत में सरकार के साथ-साथ कई ऐसी संस्थाएं भी हैं, जो वास्तविक स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं और देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जो स्वच्छता के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। फिर भी लोग उनकी बातों को नजरअंदाज कर उनकी हंसी उड़ाते हैं और जगह-जगह देश को गंदा करते रहते हैं और प्रदूषण फैलाते रहते हैं। अगर ऐसे लोगों को जागरूक करना है, जो कि स्वच्छता के प्रति बिलकुल भी सजग नहीं हैं, तो इसके लिए हमें छोटे-छोटे बच्चों को बड़ों के नेतृत्व में आगे लाना होगा। अगर कोई गंदगी फैलाएगा तो बच्चे उसे टोकेंगे तो वे बच्चों की बात को हंसी में नहीं उड़ा पाएंगे और न ही उनकी बात को टाल पाएंगे बल्कि अपने किए पर शर्मिंदा भी होंगे। 
 
ऐसे ही देश में अनेक प्रमुख नदियां हैं। उनमें गंगा, यमुना तथा और भी अन्य नदियां हैं जिनमें लोग बहुत प्रदूषण करते हैं। उन जगहों, खासकर नदियों के किनारे वाली जगह पर जितने भी स्कूल हैं उन बच्चों को स्कूल प्रशासन के नेतृत्व में आगे किया जाकर नदियों में प्रदूषण न करने के लिए लोगों को जागरूक किया जा सकता है, क्योंकि बच्चों की बात को कोई टाल नहीं सकता और बच्चा जो कहेगा, उस पर वह हजार बार सोचेगा। 
 
27 अक्टूबर को दिवाली के दिन देश में पटाखों के जरिए बहुत वायु प्रदूषण होगा। तो क्यों न इस दिशा में सरकार द्वारा लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए और वायु प्रदूषण द्वारा होने वाले खतरों से भी लोगों को आगाह किया जाना चाहिए। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए आज ग्राम पंचायत से लेकर नगर पालिकाओं तक अभियान चलाने की जरूरत है। ऐसे अभियान की बागडोर भी बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को दी जानी चाहिए। साथ ही साथ पटाखों द्वारा वायु प्रदूषण रोकने के लिए सरकार को एक ईकोफ्रेंडली पटाखों की दिशा में काम करना चाहिए जिससे कि लोग पटाखे चलाने का भी मजा ले सकें और अपने वातावरण में भी प्रदूषण न हो। अगर हो भी तो न के बराबर हो। 
 
जिस जगह स्वच्छता, साफ-सफाई होगी और प्रदूषण कम होगा वहीं लक्ष्मीजी का वास होगा। अगर लक्ष्मीजी का वास होगा तो सबके जीवन में वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, आदर्श, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि और समृद्धि आएगी।

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