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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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डेंगू की जांच में कंफ्यूजन...

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मनोज लिमये

शहर की फिजा एकदम बदली-बदली सी है। लोगों  की  शक्लें  देखकर  बीहड़-सा एहसास  हो  रहा  है। जिसे  देखो वो तुच्छ से मच्छर से भयभीत नजर आ रहा है। जब सदा की तरह प्रश्नों के भंवर में स्वयं को अर्जुन की तरह असहाय पाया, तो मालवी जी का कृष्ण बन प्रगट होना स्वाभाविक सी क्रिया थी।
 
 
मैंने कहा  'मुझे दो शब्द परेशान कर रहे हैं, ये मेडिकल की चेकअप रिपोर्ट में पॉजीटिव तथा नेगेटिव'। वे बोले "क्यों अंग्रेजी में आपका हाथ तंग है क्या, सीधे सादे से शब्द तो हैं ये।"  मैंने कहा "साहित्य की भाषा में तो हम इसका सीधा सा अर्थ ही समझते रहे हैं कि पॉजीटिव यानी सकारात्मक और शुभ...इसी तरह, नेगेटिव यानी नकारात्मक, गलत, या अशुभ...। 
 
लेकिन मेडिकल की परिभाषा तो सिर के उपर से निकलती है। मसलन, डेंगू की जांच हो, एड्स की या स्वाइन फ्लू की...जब रिपोर्ट आती है, तो कहा जाता है पॉजीटिव या नेगेटिव आई है। वे बोले - आप कहना क्या चाहते हो, सदियों से ऐसा ही तो रहा है 'मैंने कहा "यदि वह बीमारी है जिसका डर था, तो रिपोर्ट को पॉजीटिव कहा जाता है और यदि मर्ज नहीं है तो निगेटिव कहा जाता है। इसमें यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि पॉजीटिव किसके नजरिए से है ?' 
 
वे बोले 'भैया पॉजीटिव का मतलब बीमारी है और निगेटिव का मतलब नहीं है, इतना कंफ्यूज क्यों कर रहे हैं आप?' मैंने कहा 'क्योंकि यदि मैं डेंगू की जांच कराने जाउंगा और मुझमें वायरस पाया जाता है, तो यह किसके नजरिए से पॉजीटिव है! मेरे नजरिए से पॉजीटिव है या बीमारी के किटाणुओं के नजरिए से? मेरे नजरिए से तो पॉजीटिव हो ही नहीं सकती, क्योंकि मैं तो अब परेशानी में पड़ने वाला हूं। इसलिए मेरे लिए तो निगेटिव ही हुई ना।" वे प्रथम दफा थोड़े विचलित हुए, लेकिन द्रविड़ की भांति सुरक्षात्मक होते हुए बोले 'आप चिकित्सीय भाषा को आम देवनागरी में घुसा कर जबरन दिमाग का भूसा कर रहे हैं जनाब।' मैंने कहा "आप साथ दें तो लंबी बहस की गुंजाइश है श्रीमान! देखिए रिपोर्ट को यदि पॉजीटिव कहते हैं, तो वो विषाणुओं के लिए पॉजीटिव होना चाहिए,  क्योंकि उन्हें एक शरीर और मिल रहा है मिटाने के लिए और चिकित्सकों के लिए पॉजीटिव है क्योंकि उन्हें एक केस और मिल रहा है, सुलझाने के लिए...कमाने के लिए, सो पॉजीटिव किस नजरिए से है, यह तय नहीं हो रहा है?' 
 
मुझे ऐसा लगा कि बहस की जंग में जीत नजदीक है। योद्धा कभी मैदान नहीं छोड़ता वाली कहावत पर यकीन कर वे पुनः बोले 'शायद ये नजरिए का प्रश्न हो, मुझे इसमें बहस की कोई आवश्यकता नहीं दिखती साब।" मैंने ताबूत पर अंतिम कील ठोंकने वाले अंदाज में कहा " पहले जब बहुधा निगेटिव प्रिंटों से तस्वीरें बनाई जाती थीं डार्क रूम में, तब वे जब पॉजीटिव हो जाती तो निखरकर आ जाती थीं और स्पष्ट तस्वीर हमारी नजरों के सामने आ जाती थी। निगेटिव यानी धुंधला और पॉजीटिव यानी उजला। एक लाइन की परिभाषा थी लेकिन मेडिकल में तो पॉजीटिव यानी धुंधला और निगेटिव यानी उजला कर दिया गया है। 
 
वे निरुत्तर थे। मैं सोच रहा था कि व्यक्ति को खुश होने के लिए निगेटिव शब्द की बैसाखी की दरकार क्यों है! मेडिकल में किस उल्टी खोपड़ी के आदमी ने ये शब्द चलाए होंगे, जो अब चलन में इस कदर आ गए हैं कि सुख याने दुख तथा दुख मतलब सुख की खिचड़ी बन गई कमबख्त! खैर, उम्मीद है आपको मेरी ये जिज्ञासा समझ में आई होगी! लेकिन इसका पता कैसे लगाया जाए कि पॉजीटिव लगी या निगेटिव!                                                    
 

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