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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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हे! गौमाता हमें तुम कभी क्षमा! न करना

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कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटल

प्रायः गोधूलि बेला के बारे में हम सब सुनते हैं किन्तु क्या कभी हमने गहराई से इसके सम्बंध में विचार किया है। यह बात ज्यादा पुरानी नहीं है। अब भी छुटपुट पहाड़ी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। किन्तु इसे समझने के लिए हम लगभग अपनी पूर्व की दो पीढ़ियों के कालखंड में लौटते हैं।

गोधूलि बेला का अभिप्राय उस समय से लगाया जाता है, जब गोवंश गोचर से सायं काल में लौट रहा होता है, उस समय सूर्य अस्त होने वाला होता है तथा गोवंश जब समूह में अपने निवास की ओर लौट रहा होता है, उस समय गोवंश के खुरों से धरती खुरचती है जिससे धूलि वातावरण में उड़ती है और सूर्य की लालिमा के साथ मनोहारी दृश्य को निर्मित करती है।

हमारे पूर्वजों के कालखंड में अधिकतर शुभकार्य गोधूलि बेला में सम्पन्न कराए जाते रहे हैं। गोधूलि बेला का समय मनोहारी और अन्तर्मन को प्रसन्नता की सीमा में भर देने वाला होता है। किन्तु जब वर्तमान समय में हम इसे देखते हैं तो गोधूलि बेला अब नाम बस की रह गई है?

गायें अब गोचर नहीं जातीं और न ही कोई चरवाहा दिखता है, परिवेश कितना बदल गया है न? शायद हम इक्कीसवीं सदी में आ गए हैं, जब गायों का उसके वंश समेत निष्कासन हो चुका है। अब हम कहीं भी देखें तो गौशाला की बजाय सड़कों पर गोवंश समूह में बैठे और टहलते हुए मिल जाएंगे। भारतवर्ष की समृध्दि का प्रतीक माने जाने वाले गौशालाओं के खूंटे शून्य और खालीपन से भर गए हैं।

अब तो ट्रकों में निर्जीव वस्तु की तरह गोवंश को लादकर कसाई खाने ले जाया जाता है, शायद सांस लेने की भी जगह नहीं रहती। गौमाता और उनकी संतानें भूखी हैं या प्यासी अब इसकी किसी को भी परवाह नहीं है।

हां, अब वो इन मनुष्यों की यानि मनष्य के वेश में इन दानवों की शायद इन्हें दानव की संज्ञा देना भी कम होगा न? उनके लिए गोवंश का मांस जिसे बीफ कहते हैं, उसे भोज्य हेतु थालियों में परोसने के लिए ले जाया जाता है।
सरकार ने बकायदे कसाईखानों को कानूनी लायसेंस दे दिया है  इसलिए अब बीफ-पार्टी की जा रही। इसमें राजनैतिक दलों से लेकर सनातन हिन्दू धर्मद्रोही सब अव्वल हैं। जिस राष्ट्र के वीरों ने गौवंश की रक्षा के लिए अपने प्राणोत्सर्ग कर दिए, आज उसी देश में संविधान की आड़, राजनैतिक निकृष्टता के सहारे गौवंश की हत्या के लिए कत्लखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं।

अब शायद गौ माता की हत्या पर हमारी अन्तरात्मा नहीं कापती है, सरकारें, प्रशासन, राजनेता, व्यापारी सभी गोहत्यारों के साथ किसी न किसी प्रकार से सांठगांठ करके गौमाता को कत्लगाहों में भिजवा रहे हैं। जिन राज्यों में प्रतिबंध है, उन राज्यों में प्रशासनिक एवं राजनैतिक संरक्षण में गौतश्करी की जा रही है। गाय की रक्षा करने वाले अगर इसका विरोध करते हैं तो उन्हें हत्यारा साबित करने का खेल चलने लगता है। हां अगर इन राजनैतिक हुक्मरानों को इतनी ही परवाह होती तो ‘गाय को राष्ट्रीय धरोहर’ न घोषित कर देते।

किस-किस पर दोष मढ़ें? किससे अपनी अन्तरात्मा की चि‍त्कार को बतलाएं, हम सब दोषी हैं। आखिर! राजनीति, प्रशासन में बैठने वाले लोग इसी देश के हैं न? शायद गौमाता के प्रति प्रेम अब किसी में नहीं बचा है, अन्यथा ऐसी स्थिति कभी भी न होती।

शायद यह वही भारतवर्ष है? और यही विकास है न!

अब तो गौमाता को पालने वाले भी पल्ला झाड़ चुके हैं, क्योंकि इस आधुनिक परिवेश के अनुसार गौमाता और उनके वंशजों जिसकी हम विविध स्वरुपों यथा-नंदी भगवान के रूप में पूजा करते है। उसका इस भारत भूमि में कोई ठिकाना नहीं रह गया?

गौमाता का आर्त! और गहरी पीड़ा का स्वर उसके नेत्रों से बहते वेदनासिक्त अश्रु इस पर अट्टहास करते समस्त जन? हां यही मेरा ‘भारत’ देश है?

गौमाता को ग्रास देने की प्रथा बंद हो रही है या लगभग खत्म सी हो चुकी है। हमारी सनातन समाज-संस्कृति के सुख-दु:ख दोनों में मुक्ति प्रदाता मां गौमाता जो जीवन के विभिन्न चरणों में संजीवनी का कार्य करती है, उसका इतना बड़ा तिरस्कार और बहिस्कार?

पूजन पध्दति में गोदान की जगह दस रुपये चल जाएंगे किन्तु प्रत्यक्ष तौर पर गाय नहीं? पुरोहित भी अब मना कर देते हैं कि गाय की बला से भगवान बचाए।

वैतरणी पार लगाने वाली गौमाता को अब रातों-रात घर से निष्कासित किया जा रहा है, भूखी मरेगी या प्यासी इसकी किसी को भी चिन्ता नहीं रह गई? आखिर! यह कैसा समाज बन चुका है?

गोरस जिसे अमृत कहा गया है, अब उसकी जगह कृत्रिम निर्मित सामानों ने ले लिया है, क्या यही प्रगति है? धार्मिक अनुष्ठानों में गाय का गोबर जिससे भगवान गणेश का स्वरूप मान अर्चना करते हैं तथा चौक की लिपाई-पुताई कर उस स्थान को शुध्द करते हैं।

गोमूत्र जो सर्वरोगनाशी है और अमृततुल्य दुग्ध जिसकी पौष्टिकता से जीवन सुडौल बन जाता है तथा जिसकी स्वीकारोक्ति वर्तमान के वैज्ञानिक अनुसंधानों के माध्यम से सिध्द कर की जा चुकी है।

वर्तमान में ऐसी पावन और पूज्य गौमाता हमारे आंगन को छोड़कर चली जा रहीं हैं? सबको पता है न कहां?
किन्तु आप प्रत्यक्ष तौर नहीं देख पा रहे हैं इसलिए इसका भी कोई ज्ञान नहीं है न?

हमारी गौमाता कसाईखानों से होते हुए हमें अलविदा कह कर जा रही हैं। इसका दोषी किसे ठहराएं? हां हम आधुनिक होते जा रहे हैं, सम्भवतः हमारे पूर्वज निकृष्ट रहे होंगें जिन्होंने गौपालन-गौरक्षा में अपने प्राणोत्सर्ग तक कर दिए।

हम आज उन्हीं की पीढ़ीं है जो गौमाता को सहज ही अपने घर से निष्कासित कर गोवध के लिए भेज रहे। कितना बड़ा दुर्भाग्य है न?

आह! वेदना और निरीह-निरपराध गौमाता और उनकी संताने तथा हमारा निष्ठुर समाज। यह घोर पतन हैं तथा भारतीयों के विनाश की सूचना है जिसे हम समझ नहीं पा रहे या कि ऐसा कहना अनुचित नहीं है कि हम सचमुच पतनोन्मुख हो चुके हैं। हमारी शान और शौक गोवंश के चमड़ों से बने जूते-बेल्ट-पर्स इत्यादि का बन जाना अधोपतन है-अधोपतन। वर्ष -प्रतिवर्ष बीफ निर्यात के आंकड़ों में वृध्दि के साथ हम शिखर छू रहे हैं।

वाह रे उन्नति कितना आगे हम बढ़ चुके हैं न? हे गौमाता जब तुम्हारा और तुम्हारी संतानों को कत्लखानों में वध किया जाता है, तब तुम जिस असीम पीड़ा से कराहती हुई पापियों के हाथों प्राणोत्सर्ग कर देती हो। किन्तु फिर भी हम भारतवंशी उस लोमहर्षक चि‍त्कार और पीड़ा को नहीं सुन पा रहे। हे, मां हम बहरे और सभी तरह से पतित हो चुके हैं।

इतिहास साक्षी है कि बर्बर-क्रूर-आतंकी -लुटेरों अरबों-तुर्को मुगलों सहित अंग्रेजों (ईसाइयों) ने हमारी धर्म संस्कृति को नष्ट करने के लिए बलपूर्वक गौमांस भक्षण करवाने का यत्न किया जिसका प्रतिकार करते हुए हमारे वीर पुरखों ने अपनी मृत्यु को स्वीकार कर उनकी कुटिलता पर प्रहार किया किन्तु कभी भी गौपालन-गौरक्षण का व्रत नहीं तोड़ा।

वहीं एक हम हैं जिनके लिए गाय माता नहीं बल्कि पशु की तुलना में आने लगी है, अन्यथा हमारी इस पुण्य भूमि में गौवंश कसाई खानों में न पहुचता।

भगवान श्रीकृष्ण जिनका नाम ही गोपाला है तथा उन्होंने बाल्यकाल से गायों की सेवा की ऐसे उपदेशक हमारे भगवान जिन्होंने गौसेवा की थाती हमें सौंपी।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में प्रभु श्री राम का अवतार ही–
‘विप्र धेनु सुर सन्त हित लीन्ह मनुज अवतार’ के लिए हुआ हो उनको पूजने वाली संततियों ने उस गौमाता को दयनीय- मृत्युमय स्थिति में छोड़ दिया है।

हमारे वेदों में जिस गौ माता का पूजन करते हुए उसकी महत्ता बतलाई गई है, वह गौ और गौवंश तथा मानवीय साहचर्य की महानतम् व्याख्या है जिसे ऋग्वेद के इस श्लोक से समझें:-

माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट॥


अर्थात् गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदितिपुत्रों की भगिनी है। जिसके स्तनों में अमृत है, ऐसी महान गौ को कोई भी कष्ट न पहुंचावे किन्तु हो क्या रहा है?

वहीं स्कंद पुराण में जिस गौमाता की महत्ता बतलाते हुए कहा गया है

त्वं माता सर्व देवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्व तीर्थाणां नमस्ते स्तुसदानद्यो।


जो गाय सभी देवताओं की माता है,यज्ञ का मूल हेतु है। सभी तीर्थों की तीर्थ उस गाय को प्रणाम है।
उस गौमाता का इस भू-लोक उसमें भी इस आर्यावर्त्त की भूमि में तिरस्कार एवं मृत्युमय बहिस्कार? भारतवर्ष के अतीत के साक्षी कोई भी धर्मग्रंथ उठा लीजिए सभी में गौमाता, गौवंश की महानता का वर्णन देखने को मिल जाएगा। हमारे रक्त के कण-कण में गौवंश के प्रति श्रध्दा, स्नेह एवं आदर का भाव समाया हुआ है, किन्तु वर्तमान में लगातार हो रही गौवंश की उपेक्षा, हत्या के जघन्यतम अपराध हमारी संस्कृति, पूर्वजों की विरासत तथा सभ्यतागत पतन भारतवर्ष के ऊपर कलंक हैं।

यह मेरा वह भारत हो ही नहीं सकता, जहां वेद-उपनिषदों-धर्मग्रंथों का सृजन हुआ तथा ईश्वरीय अवतारों ने धर्म की स्थापना की वह कोई और भारत रहा होगा। हे! गौमाता हमें तुम कभी क्षमा न करना, हे माते जिस प्रकार से आज हम तुम्हें कत्लगाहों में भेज रहे हैं उससे यह स्पष्ट सा हो चुका कि हमारा संहार सुनिश्चित है।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

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