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corona in India : यह मेरी तुम्हारी नहीं हम सबकी जंग है...

स्मृति आदित्य
कोरोना की लड़ाई के बीच एक हरकत फिर की जा रही है वह है दो संप्रदायों के बीच वैमनस्य की खाई को चौड़ा करने की...सोशल मीडिया पर किसी हीबा बेग़ के लेख का हुसैन हैदरी द्वारा किया अनुवाद चल रहा है जिसका शीर्षक है '  भारत में मुसलमान होने का मतलब'...इस लेख में कई अनर्गल बातें कही गई हैं,जैसे भारत में मुसलमान होने का मतलब है डर कर जीना, हिन्दू न होने के पश्चाताप के साथ जीना आदि....

चुंकि वह लेख अब सोशल मीडिया से हटा लिया गया है इसलिए उसके जवाब में कुछ लिखना बेमानी है लेकिन शीर्षक कहीं जहन में अटक गया कि आखिर क्या है भारत में मुसलमान होने का अर्थ...कितना जानते हैं आप मेरे हिन्दुस्तान को,मेरे भारत को...हम एक साथ जीने-मरने की कसम खाने वाले करोड़ों भारतीयों को...

मैं अपने बचपन से बात को आरंभ करती हूं। हमारा मोहल्ला मुस्लिम बहुल इलाकों के पास ही था।  भैंसका दूध वहीं से आया हमेशा,फिर अगर घर की गाय बीमार हो गई तो वही चाचा आते थे गाय को दवाई पिलाने और कुछ देर बतिया कर चाय पीकर जाते थे ...

हमारे लिए वह जगह कभी अछूती नहीं रही और वहां की जेबा,फहमीदा,रेशमा,मोइद्दीन और आफताब के लिए हमारा घर कभी बेगाना नहीं रहा। आप वंदेमातरम की बात करते हो हमारे बचपन के साथियों ने हमारे साथ मातारानी के जयकारे लगाए हैं और किसी को चोट लगी है तो यह भी कहा है कि बाबा महाकाल सब ठीक कर देंगे...

संजा का गोबर,संजा के फूल और संजा के गीत हम सबकी स्मृतियों में आज भी उतने ही ताजे हैं जितनी ताजी हमारी दोस्ती की बुनियाद है।

ईद पर ईदी हमेशा सहबा से ज्यादा मुझे मिली है। मुझे अवॉर्ड मिला तो  शिर्डी घूमने गए जाफरी अंकल का फोन पिताश्री से पहले आया कि बेटा यहां अखबार में तुम्हारा फ़ोटो देखा, एक सूट ले रहा हूं तुम्हारे लिए और सच में वह सूट मैंने जाने कितने दिनों तक चाव से पहना।

मेरे भारत में मुसलमान होने का मतलब तुम अपने हिसाब से न निकालो हमें पता है कि हमारे सुख दुख साझा है, हमारी परवरिश साझा है, हमारा बचपन साझा है उसमें मतलब का जहर स्प्रे कर नई परिभाषा मत गढो।

यहां मुसलमान होने का मतलब है सच्चे पड़ोसी, अच्छी दोस्ती, हर बात पर सही को सही कहने की हिम्मत और गलत को गलत कहने की कुव्वत। यहां मुसलमान होने का मतलब है नन्ही जैनब और एनम का दिन दिन भर हिमांशु मामाजी के घर में रहना और नवरात्रि में अपने पसंदीदा गिफ्ट्स की लिस्ट थमा देना।

यहां मुसलमान होने का अर्थ है जैनब की दादी के इंतेक़ाल पर नीरू भाभी का कंबल बांटना, फातेहा सीख कर पढ़ना...चंद शैतानो के खातिर अगर कौम को बदनाम करना बुरा है तो उससे भी अधिक बुरा है छुटपुट घटनाओं को आधार बना कर मेरे हिंदुस्तान को बदनाम करना।

आप कहते हैं कि हमें कलाम से कमतर मुसलमान नहीं चाहिए हम कहते हैं कि कलाम तो हमारे दिल में रहते हैं, सम्मान करते हैं उनका, हमने कभी नहीं सोचा कि वे तुम्हारे या हमारे हैं, खुद कलाम साब ने नहीं सोचा फिर ये विभाजित करने वाली सोच के बीज कौन बोता है तुम्हारे दिमाग में, हम सलमान, अमीर, शाहरुख को भी तो स्नेह करते हैं... धर्म जाति या सम्प्रदाय देखकर नहीं उनके अभिनय के कायल होकर।

ये कहां से लाते हो विकृत सोच कि भारत में मुसलमान होने का मतलब है हर बात पर दोयम दर्जे का माना जाना।

मेरे लिए मेरी मित्रता, पड़ोसी धर्म, साथ की अनुभूति कहीं अधिक मायने रखती है मुसलमान और हिन्दू होने से कहीं ज्यादा... मेरे असगर चाचा जी को उनके धर्म के लोग मज़ाक में वर्मा जी बोलने लगे हैं क्योंकि वे जय नरसिंह का जयकारा लगाते हैं नरसिंह घाट पर चंदन घिसते हुए।

अकबर चाचा जी बरसों से कान्हा जी के परिधान भेजते हैं और उतने ही प्रेम से पंजीरी मांग कर लेते हैं। हज से पूरे घर के लिए तोहफे आते हैं और दिवाली पर 5 दिवसीय बिना कहे का न्योता होता है।

करवा चौथ पर मुस्तफा की दुल्हन मेरे घर आकर पैर छू जाती है और साड़ी बिछिया  का आशीष सम्मान से साथ ले जाती है। सहबा बिंदी लगा कर मंगलनाथ हो आती है क्योंकि उसे सपने में रोज मंगलनाथ के दर्शन हो रहे थे।

आधी रात को फहमीदा आंटी को उठाकर इन्ना रब्बी रहमू वदूद आयत का अर्थ पूछने के लिए मैं उन्हें जगा देती हूं और ऐसी ही किसी आधी रात को रमज़ान के दिनों में उन्हें आयत का अर्थ मिलता है और वे चहक कर मुझे बता देती है।

यह है मेरे देश में मुसलमान होने का मतलब... बरसों से महाकाल की सवारी पर चौराहे पर स्वागत देखा है मैंने, पर अब ये कौन फ़िज़ा में कड़वाहट घोल रहा है कि महाकाल के आगे तक जाएंगे और मांसाहार भी बेचेंगे। ये हीबा और हैदरी जैसे लोग हैं जो अपने बंद कमरों से बाहर नफरत बहाते हैं।

उन्हें क्या पता कि किसी मिश्रा जी के खेत में कोई सुलेमान फसल का हिसाब कर गया है क्योंकि लॉक डाउन में मिश्रा जी खेत तक नहीं आ सकते। सब विश्वास और भरोसे पर चल रहा है। रुबीना के घर पानी की व्यवस्था अंजू और उसके भाई ने की है जबकि फिरदौस की फीस रोहन के पापा ने भर दी है।

कितने किस्से, कितनी बातें,  कितने फसाने हैं। अंगुलियां दुखने लगेंगी तुम थक जाओगे नफरत की विषबेल रोपने वालों... इस देश में मुसलमान होने का मतलब खोजने से पहले इस देश की मिट्टी को समझो,सूँघो, आत्मसात करो। यहां कोई किसी का विरोधी नहीं है कोई किसी का  दुश्मन नहीं।

डॉक्टरों की टीम पर थूकने वालों को बचाने की ये कैसी होड़ है कि भारत में मुसलमान होने के अर्थ को तलाशने लगे वह भी इतने विकृत ढंग से... खोजना ही है तो मेरे मुल्क में इंसान होने का मतलब खोजों तो मिलेंगे तुम्हें कोरोना योद्धा, कोरोना सेनानी और कोरोना से निपटने के लिए दिन रात लगे हर वर्ग के भाई बहन... न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान सब एक साथ, एक समान...

मेरे देश में धर्म के आधार पर 'होने' के मतलब नहीं निकाले जाते मेरे देश में भूख, प्यास, जरूरत और साथ के लिए हाथ बढ़ाए जाते हैं। यहां हर मज़हब का महत्व है मतलब कहां से ले आए यारों...

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