Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

भयावह स्थिति में लॉकडाउन के अलावा चारा क्या है?

भयावह स्थिति में लॉकडाउन के अलावा चारा क्या है?
webdunia

अवधेश कुमार

दुनिया की स्थिति निस्संदेह भयावह है। 190 देश कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तथा संक्रमित लोगों की संख्या पांच लाख को पार चुकी है।

इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 21 दिनों को लॉकडाउन की घोषणा देश को इस महामारी से बचाने एवं सुरक्षित रखने का एकमात्र श्रेष्ठ विकल्प है। स्थिति ज्यादा डरावना इसलिए है क्योंकि संक्रमितों और मृतकों की संख्या उन देशों में ज्यादा है जो विकसित व शक्तिसंपन्न हैं और जिनकी स्वास्थ्य सेवाएं सर्वोत्तम मानी जाती हैं।

अमेरिका जैसी विश्व की महाशक्ति के यहां मरने वालों का आंकड़ा 1200 को पार कर चुका है। वहां इस समय 85 हजार से ज्यादा लोग कोरोना संक्रमित हैं। इटली के लिए यह सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी साबित हो रही हैं। वहां आठ हजार के आसपास लोग मारे जा चुके हैं और 80 हजार के आसपास संक्रमित हैं। पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। अस्पतालों में जगह नहीं है और मैदानों में कैम्प लगाए गए हैं। डॉक्टर बीमारों में जवानों का इलाज कर रहे हैं तो बुजूर्ग अपने हाल पर छोड़े जा रहे हैं।

इटली के प्रधानमंत्री ने पूरी तरह हथियार डाल दिया है। उन्होंने कहा है कि स्थिति पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। हमारी सारी शक्ति खर्च हो चुकी है। स्पेन में कोरोना ने करीब 4000 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। ब्रिटेन में 400 तो फ्रांस में 1200 से ज्यादा लोग संक्रमण के बाद जान गंवा चुके हैं। स्पेन में स्वास्थ्यकर्मी ही संक्रमित हो रहे हैं और उनको आइसोलेशन में रखने के कारण समस्याएं आ रहीं हैं। मैड्रिड के कई अस्पतालों में संक्रमण फैल चुका है। इन्हें हर घंटे सैनिटाइज किया जा रहा है।

वस्तुतः चीन के बाद यूरोप और अमेरिका इसका सबसे बड़ा शिकार हो चुका है। इसके बावजूद कि इन देशों ने अपने सारे संसाधन बचाव व चिकित्सा में झोंक दिए हैं। अमेरिका में स्वास्थ्य आपातकाल लागू है। अमेरिका के कम से कम 16 राज्यों ने अपने नागरिकों को घर में रहने का आदेश जारी किया है। फ्रांस सहित अनेक देशों में सेना उतारनी पड़ी है। सच कहा जाए दुनिया के सभी प्रमुख देशों में लॉकडाउन की स्थिति है।

यह स्वयं सोचने की बात है कि जब इन साधनसंपन्न देशों की ऐसी दशा है तो अगर यह महामारी विकासशील और गरीब देशों को अपनी चपेट में ले लिया तो फिर क्या होगा? यही प्रश्न हमें अपने आपसे पूछना है। सच यह है कि कोरोना की चपेट से अब कम ही देश बचे हैं। पहले अफ्रीका से खबर नहीं आ रही थी लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब वहां से कोरोना संक्रमण की पुष्टि शुरु कर दी है। भारत में 11 मार्च तक केवल 71 मामले थे।

अब वह 700 को पार गया है। इसका अर्थ हुआ कि संख्या तेजी से बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस गेब्रियिसोस ने 23 मार्च को कहा कि कोरोनावायरस महामारी तेजी से बढ़ रही है। पहले मामले से एक लाख तक पहुंचने में 67 दिन का समय लगा लेकिन दो लाख पहुंचने में 11 दिन और दो से तीन लाख पहुंचने में चार दिन का समय लगा। केवल दो दिनों में चार लाख और एक दिन में पांच लाख। तो यह है स्थिति।


तो इसे यहीं रोकना जरुरी है। जैसा हम जानते हैं कोई दवा इसे नहीं रोक सकती। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल का यह वक्तव्य वायरल हो रहा है कि हमारा अपना व्यवहार संक्रमण को फैलने से रोकने व धीमा करने का सबसे प्रभावी तरीका है। चांसलर मर्केल खुद ही आइसोलेशन में हैं। इसका एकमात्र रास्ता है अपने को बिल्कुल कैद कर देना। कोरोना महामारी को उस हमले की तरह देखना होगा जहां चारों ओर से बमबारी हो रही है, गोलियां बरस रहीं हैं और नीचे बारुदी सुरंग बिछा है। जैसे ही आप निकले कि आप उसकी जद में आ गए।

सामान्य युद्ध में तो आप अकेले मरते हैं। कोरोना महामारी के युद्ध में यदि आपको वारयस का बम लगा, गोली लगी तो आपको तत्काल पता भी नहीं चलेगा और आप घर लौटकर अपने परिवार, मित्र, रिश्तेदार और न जाने कितनों की जिन्दगी ले लेंगे। यूरोप के बारे में जितनी जानकारी आई है उसका निष्कर्ष यही है कि समय पर कदम न उठाने यानी लोगों की आवाजही पर रोक न लगाने, एक साथ इकट्ठा होने पर बंदिश न लगाने आदि के कारण ही कोरोना महामारी ने इतना भयावह रुप लिया है।

अमेरिका की सर्जन जर्नल डॉक्टर जेरोम एडम्स ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनके यहां मरने वालों में से 53 प्रतिशत की उम्र 18 से 49 साल के बीच थी। यह उस धारणा से अलग है कि ज्यादातर बुजूर्ग ही इस महामारी से अपनी जान गंवा रहे हैं। तो यह सोचना ठीक नहीं कि हम अगर जवान हैं तो हमारी मौत इससे नहीं हो सकती। पटना में कतर से आए एक 38 वर्षीय युवक की मौत हो गई।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया है कि देश में 8 हजार से ज्यादा लोगों को सरकार के क्वारैंटाइन सेंटर में रखा गया है और 2 लाख के आसपास लोग कॉम्युनिटी सर्विलांस पर हैं। यह समय ऐसा है कि क्वारैंटाइन में रह रहे सभी लोगों की मदद की जाए। ये सारे लोग कोरोना संक्रमित नहीं हैं, लेकिन संदिग्ध तो हैं। यह संख्या सामान्य नहीं है। विदेश से आए भारी संख्या में लोगों ने वायदे के अनुसार अपने को आइसोलेशन में नहीं रखा। तो उनकी पहचान कर जबरन आइसोलेशन में रखने के कदम उठाए जा रहे हैं। दिल्ली में 1 मार्च से विदेश से आने वाले 35 हजार लोगों की पहचान हुई है और सारे जिला मजिस्ट्रेट को उन्हें आइसोलेशन में रखने का आदेश दिया गया है। यह कितना कठिन है इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं।

इसमें लॉकडाउन या कर्फ्यू को जनता और देश के हित में ही कहा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले संबोधन में लोगों से घरों में रहने की अपील की थी और उसका असर भी हुआ। बहुमत घरों में या जहां हैं वहीं अपने को कैद रखे हुए था। किंतु एक बड़ी संख्या बाहर निकल रही थी। वे समझ नही रहे थे कि वायरस के चेन को तोड़ना है तो सड़कों, बाजारों सबको कुछ दिनों तक के लिए खाली रखना पड़ेगा। भारत में अभी तक वही लोग संक्रमित हुए हैं जो या तो विदेशों से आए या विदेशों से आए लोगों के संपर्क में थे। चेन को तोड़ने के लिए ही पहले सारे अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को प्रतिबंधित किया गया, फिर घरेलू उड़ानें को, यात्री रेलें बंद की गईं तो ज्यादातर राज्यों ने पहले अंतरराज्यीय बसों को और फिर राज्यों के अंदर सामन्य बस संचालन को रोक दिया है। मेट्रों बंद की गई। और अब पूर्ण बंदी।

यह संक्रमण पैदा होने और उसके विस्तार को रोकने के लिए अपरिहार्य हैं। इसके बाद बारी लोगों की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने लोगों को समझाते हुए कहा कि मान लो हमारे यहां 25-30 हजार कोरोना संक्रमित हो गए तो हम कुछ नहीं कर सकते। तब लॉकडाउन करने का कोई फायदा भी नहीं होगा। सारे अस्पताल मिलकर भी इलाज नहीं कर सकते।

यह पूरे भारत वर्ष पर लागू होता है। अगर राजधानी दिल्ली इसे संभालने की स्थिति में नहीं होगी तो कौन शहर और राज्य इसमें सक्षम हो सकेगा? कोई नहीं। यूरोप में इतनी बुरी इसीलिए हुई, क्योंकि जनवरी में मामला सामने आने के बावजूद वहां लोगों की आवाजाही को प्रतिबंधित करने से लेकर बचाव के अन्य कदम नहीं उठाए गए। वहां तो हवाई अड्डों पर अनिवार्य स्क्रीनिंग तक की व्यवस्था नहीं हुई। भारत ने जनवरी से ही स्क्रीनिंग शुरु की और जांच भी। वास्तव में ऐसे पूर्वोपाय के कारण ही हमारे देश में स्थिति नियंत्रण में है। जिस चीन की बात हो रही है वहां हुबेई प्रांत के साथ 20 राज्यों में ऐसा लॉकडाउन किया गया जो हमारे यहां के कर्फ्यू से ज्यादा सख्त था। वायरस के केन्द्र वुहान शहर और उसके आसपास के इलाकों में आवश्यक सेवा ही नहीं, मेडिकल स्टोर तक बंद कर दिए गए।

जिसे लेकर आशंका हुई उसे सेना जबरदस्ती उठा लेती। इसमें अनेक त्रासदियां हुंईं। अनेक होटल और घर ध्वस्त कर दिए गए। वहां कोई धरना-प्रदर्शन हो नही सकता। हमारे यहां स्थिति जितनी बिगड़ जाए तो वैसा कर ही नहीं सकते। निस्संदेह, लोगों को परेशानियां हो रहीं हैं, लेकिन अगर स्वयं को, परिवार को, देश को बचाना है तो फिर इसे सहन करने का ही विकल्प है।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

कोरोना वायरस के बारे में कितना जानते हैं आप और क्या जानना है जरूरी!