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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Bollywood : आमची मुंबई आक्खी मुंबई है सिर्फ बॉलीवुड नहीं...

Bollywood : आमची मुंबई आक्खी मुंबई है सिर्फ बॉलीवुड नहीं...
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स्मृति आदित्य

हर शहर की एक खुशबू होती है, एक तासीर, एक ढब, एक ठसक होती है.. अपनी ही सजधज और रौनक होती है... हर शहर अपने आप में एक व्यवहार, आचार, संस्कार और विचार लिए होता है.... शहर में प्रवेश के साथ ही आपको यह सब महसूस होता है...कई बार जब तक उस शहर में गए नहीं तब तक वो आपको बुलाता है लेकिन जब आप वहां होकर आते हैं तब उतना लगाव नहीं रहता ... 
 
लेकिन मुंबई ऐसा नहीं है... यह शहर अपने हर तरह के अनूठेपन के साथ आपको बांध लेता है, मुग्ध, मोहित-सम्मोहित कर देता है। कई-कई बार जाकर भी आप इसे हर बार नया सा पाते हैं...अगर आप वहां बस गए हैं तो इसका नशा हर वक्त आप पर तारी रहता है.. 
 
नशे से फिर वही बात कि इन दिनों मुंबई में रचा-बसा बॉलीवुड नशे के इल्जाम को धो डालने में व्यस्त है लेकिन वहां के अथाह समंदर की ठाटे मारती उछलती-मचलती लहरें भी अभी यह काम कर नहीं पा रही है...। 
 
मुंबईवासियों से ज्यादा मुंबई के बाहर रहने वालों को नशे की खबर लुभा रही है। 
 
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एक आम मुंबईकर के लिए यह शहर इस तरह के मामलों को लेकर कभी कौतुक का विषय नहीं रहा। यहां सबकी अपनी छोटी-बड़ी लेकिन अलग सी दुनिया है। एक अजीब तरह की भागमभाग है...अपने विचित्र से संघर्ष हैं दूसरे शहरों से अलग.... आधी जिंदगी जहां 'लोकल' में आने-जाने में कटती है और आधी रोजी-रोटी के जुगाड़ में... एक आम मुंबईकर को नहीं फुरसत है यहां कि खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों को निहारने की, नहीं वक्त निकाल पाता है वह यहां की चकित कर देने वाली बसाहट को सराहने की.... उसे नहीं है समय मुंबई के बड़े पॉश इलाकों में जाकर हर समय अभिनेता-अभिनेत्रियों की झलक के लिए घंटों खड़े रहने की....हां, अगर कोई नजर आ ही जाए तो वह दो पल निकाल लेगा लेकिन जिस तरह की दीवानगी हम मुंबई से बाहर के लोगों में उनके प्रति होती है वैसी वह चाहकर भी नहीं रख सकता क्योंकि उसी शहर में उसे अपना पेट भी पालना है...एक बहुत बड़े शहर में अपनी छोटी, बहुत छोटी पहचान को बनाए रखने का संघर्ष भी करना है...
 
वह देखता है अपने आसपास अपराध भी, अनैतिकता भी और अत्याचार का अतिरेक भी लेकिन जब तक ये सब उसे छू कर न जाए वह दुनिया को बदलने और समाज को सुधारने का ऐसा कोई जतन नहीं करता, कर भी नहीं सकता, उसे अपनी ही दुनिया को समझने और उससे सुलझने का समय कम है... बहुत ज्यादा हुआ तो समंदर के किनारे अपनी प्रेयसी को ले जाकर वह भविष्य के सपने बुन लेगा और वड़ा पाव खाकर खुद ही उसे बड़े मजे से उधेड़ भी लेगा...
वह जानता है कि यहां अंडरवर्ल्ड का सिक्का चलता है, वह जानता है कि किसी राजनीतिक परिवार की यहां एक साख है, वह जानता है कि बॉलीवुड में क्या-क्या गोरखधंधे होते हैं, वह जानता है कि जिस्म की नुमाइश, जिस्म की खरीद फरोख्त और जिस्म को तबाह कर देने से लेकर आत्मा को बेचने तक के यहां काले धंधे होते हैं पर वह इन सबसे अपने जीवन को प्रभावित नहीं होने देता है। क्योंकि यही शहर उसे दो वक्त की रोटी दे रहा है, इसी शहर में उसे गणपति की धूमधाम दिखाई देती है, इसी शहर में महालक्ष्मी, सिद्धि विनायक, हाजी अली, मुंबा देवी जैसी शरणस्थली है उसके लिए...
 
अपराध और अनाचार के लिए पूरा शहर बदनाम किए जाने से वह खिन्न है, एक आम मुंबईकर अपनी मुंबई से प्यार करता है। बॉलीवुड उसके शहर का एक छोटा सा हिस्सा है पूरे शहर की अपनी पहचान सिर्फ इस उद्योग से नहीं है, यहां और भी कई छोटे-बड़े उद्योग हैं, रोजगार हैं जो फैल रहे हैं, पनप रहे हैं... बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री के कारण शहर को जाना भले ही जाए पर वह शहर की समूची पहचान कतई नहीं है... 
 
वह बहुत खरी सोच का व्यावसायिक बंदा है, वह मानता है कि जो गलत है उसे सजा दी जाए। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर आप किसी भी बड़े नाम को जेल जाने की कवायद करते हैं... वह खुद ईमानदार है, बेइमानों के प्रति उसकी भी नफरत उबलती है लेकिन इससे वह अपने जीवन की शांति भंग नहीं होने देता जैसा कि पूरे देश में हो जाता है। 
उसकी बराबर दिलचस्पी है कि सुशांत का क्या हुआ, दिशा का मामला कैसे दबाया गया, सूचना, समाचार और संचार के साधन वह भी इस्तेमाल करता है पर उसकी अपनी वरीयताएं हैं, प्राथमिकताएं हैं जिन्हें वह नहीं भूलता... अपने आसपास के समाज के प्रति उसकी अपनी सोच है, अपनी स्वीकृति है और अपनी ही अभिव्यक्ति है... 
 
पर बड़ी बात यह है कि पहली बार वह सचेत हुआ है, सजग भी और सतर्क भी... अब वह चाहता है कि उसके घर का 'सुशांत' न मारा जाए, उसके घर की 'दिशा' न फेंकी जाए...उसके घर से धुंए के छल्ले ना निकले... इसलिए इस बार वह अपनी सोच को विस्तार देने के लिए तैयार है लेकिन साथ में उसका यह भी मानना है कि आमची-आखी मुंबई को इन बॉलीवुड वालों की वजह से बदनाम न किया जाए.. 

 
हर शहर के 'सुशांत' और 'दिशा' को बचाया जाए... हर जगह के माफियाओं का खात्मा किया जाए...एक आम मुंबईकर मानता है कि ऐसा वह पहली बार सोच रहा है तो मानना होगा कि शहर की हर स्तर पर सफाई का अभियान इस बार सफल होकर रहेगा... 


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