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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Ground Report : त्रासदी के 36 साल, भोपाल गैस पीड़ितों पर ज्यादा असर डाल रहा है Corona

Ground Report : त्रासदी के 36 साल, भोपाल गैस पीड़ितों पर ज्यादा असर डाल रहा है Corona

नेहा रेड्डी

भोपाल की गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है। 3 दिसंबर, 1984 को आधी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली जहरीली गैस (मिक या मिथाइल आइसो साइनाइट) ने हजारों लोगों की जान ले ली थी। या कहें कि वे फिर नींद से जागे ही नहीं। उस भयावह रात को भुलाया नहीं जा सकता।
 
जहरीली गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी को कई शारीरिक विसंगतियों का सामना करना पड़ रहा है जिसमें बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम पैदा हो रहे हैं। इस त्रासदी से मिले जख्म पीड़ितों के जेहन और जिस्म में आज भी ताजा हैं...
 
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क्या अब भी असर बचा है जहरीली गैस का?
 
संभावना ट्रस्ट क्लिनिक में कम्युनिटी हेल्थ वर्कर (Health Worker) राजेश गौर बताते हैं कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद अभी भी लोगों को हेल्थ की परेशानियां देखी गई हैं। अगर हम बात करें कोविड-19 के दौरान मृत्यु दर की तो इसमें सबसे ज्यादा जान गंवाने वाले लोगों का प्रतिशत भोपाल गैस त्रासदी की सेकंड जनरेशन में देखा गया है। जहरीली गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी में असर देखा गया है और इनकी मृत्यु दर आम लोगों की तुलना में सर्वाधिक पाई गई है। WHO के अनुसार क्रॉनिक बीमारियां जैसे डायबिटीज, हाईपरटेंशन व अस्थमा से ग्रसित लोगों को कोविड-19 से ज्यादा खतरा है।
 
यूनियन कार्बाइड कारखाने से आधा किलोमीटर दूर कृष्णा नगर निवासी शैलेन्द्र रघुवंशी बताते हैं कि गैस रिसाव से उनका परिवार भी ग्रसित हुआ। गैस त्रासदी के कारण उनका पूरा परिवार ही इसकी चपेट में आया था। वे बताते हैं कि उनकी माताजी और वे स्वयं कई बीमारियों से जूझ रहे हैं, वहीं पिताजी की किडनी फेल्योर के कारण मृत्यु हो गई। जहरीली गैस के कारण आज भी लोग इससे उत्पन्न हुई परेशानियों को झेल रहे हैं।
 
गैस त्रासदी से मिला दर्द आज भी पीड़ितों के जेहन ताजा है। ननको बाई (56 वर्षीय पीड़ित) निवासी चांदबाड़ी अपना दर्द बयां करते हुए बताती हैं कि वो खौफनाक मंजर कभी भुलाया नहीं जा सकता। उस रात को याद कर आज भी सिहर जाते हैं हम, मानो अभी भी हवा में जहर घुला हो। जहरीली गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी पर भी इसका असर साफ देखा गया है।
 
ननको बाई बताती हैं कि इस जहरीली गैस की चपेट में आने के बाद मेरे पति की मृत्यु हो गई, वहीं मेरी बेटी आज भी इस जहरीली गैस की वजह से कई शारीरिक समस्याओं का सामना कर रही है। ननको बाई उस भयावह वक्त को याद करते हुए बताती हैं कि उस वक्त जहरीली गैस की चपेट से बचने के लिए लोगों ने अपने मुंह जमीन में बिल के अंदर तक छुपाए थे ताकि अपनी जान बचा सकें।
 
त्रासदी के पीड़ित रफूक मियां कहते हैं कि मैं उस वक्त को कैसे भूल सकता हूं। मंजर बहुत खौफनाक था। लोग अपनी जिंदगी बचाने के लिए भागे जा रहे थे। जहां देखो वहां सिर्फ लोग भागते और चीखते हुए नजर आ रहे थे। हवा के साथ यह जहरीली गैस पूरे इलाके में फैल गई और अपनी चपेट में लोगों को ले लिया। अपना दर्द बयां करते हुए रफूक मियां कहते है कि शारीरिक समस्या बनी हुई है और मेरा एक पैर सुन्न पड़ा रहता है। उस काली रात ने लोगों की जिंदगी को उजाड़कर रख दिया। आज तक लोग इस त्रासदी के असर से जूझ रहे हैं।
 
 
37 वर्षीय अन्थोनी डिसूजा (शंकर नगर छोला) अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं कि उस खौफनाक हादसे के बाद से हमारा परिवार उस पीड़ा से आज भी गुजर रहा है। उस जहरीली गैस के कारण कई अलग-अलग तरह की शारीरिक विसंगतियों का शिकार हो गए। अन्थोनी कहते हैं कि मेरी मां कैंसर से जूझ रही हैं। मैं खुद शारीरिक समस्या का सामना कर रहा हूं।

अन्थोनी के पिता बताते हैं कि जहरीली गैस 'मिथाइल आइसो साइनाइड' (मिक) ने हजारों लोगों को एक ही रात में मौत की नींद सुला दिया था। जहां तक नजर जा रही थी, वहां तक सिर्फ लोगों की लाशें बिछी हुई थीं। वे बताते हैं कि उस रात चारों तरफ चीख-पुकार और बदहवासी थी और लोग सड़कों पर अपनी जान बचाने के लिए दौड़ते दिखाई दे रहे थे।
 

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