Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

बुकर सम्‍मान आखिर किसे मिला... हिंदी को, स्‍त्री को या अनुवादक को?

ret samadhi
webdunia

नवीन रांगियाल

हम हिंदी वाले खुद को इतने दबे और कुचले हुए महसूस क्‍यों करते हैं। या हमें हर बार दीवाना होने का रोग है, अपनी दीवानगी जाहिर करने की जल्‍दबाजी और उसकी अतिरेकता।

अब्‍दुलरजाक गुरनाह को जब साहित्‍य का नोबल मिला तो हम यहां भारत में दीवाने हो गए। जबकि गुरनाह ने कभी भारत की तरफ रुख ही नहीं किया। गीतांजलि श्री को बुकर मिला तो हम हिंदी- हिंदी और भारतीय- भारतीय करने लगे। किसलिए, इसलिए कि ये बुकर प्राइज हिंदी के अंग्रेजी अनुवाद ‘टूम ऑफ सेंड’ को मिला? इसकी मूल प्रति ‘रेत- समाधि’ को नहीं। इसीलिए बुकर प्राइज की राशि 50 हजार पाउंड लेखक और अनुवादक के बीच आधी- आधी बांटी जाएगी।

अगर ये पुरस्‍कार पूरी तरह से लेखक का होता तो पूरी राशि और सम्‍मान लेखक को मिलता, लेकिन लेखक और अनुवादक के लिए 50-50 प्रतिशत की हिस्‍सेदारी रखी गई है। मतलब, जड़ और पात में कोई अंतर ही नहीं रहा। हिंदी और अंग्रेजी के बीच का भेद साफ नजर आता है, बावजूद हम ऐसे सम्‍मानों और पुरस्‍कारों पर लहालोट होते जाते हैं।

निसंदेह यह खुशी कि बात है कि एक भारतीय लेखक की इस बड़े सम्‍मान में हिस्‍सेदारी है, उनकी लिखी किताब के अनुवाद को ये सम्‍मान दिया गया है। लेकिन इसमें इतना दीवानापन भी ठीक नहीं, इस सम्‍मान को हिंदी कृति के अंग्रेजी अनुवाद को मिले सम्‍मान की तरह ही देखना चाहिए। न इससे ज्‍यादा और न इससे कम।

गीतांजलि श्री का उपन्‍यास ‘रेत समाधि’ एक उत्‍कृष्‍ट कृति है। साहित्‍य जगत में यह रचना एक मील के पत्‍थर की तरह है, जो आने वाले लेखक- साहित्‍यकारों को राह दिखाएगी। इसे न सिर्फ भारत में बल्‍कि दूसरे देशों में भी पढ़ा जाना चाहिए, ज्‍यादा से ज्‍यादा पढ़ा जाना चाहिए और कई भाषाओं के इसके अनुवाद होने चाहिए ताकि यह हिंदी की सीमाओं से बाहर जाकर दूसरी भारतीय भाषाओं में लेखन कला का आस्‍वाद छोड़ सके। अंतरार्ष्‍टीय स्‍तर पर मिलने वाले सम्‍मान में हिंदी और भारतीय लेखक की भागीदारी बेहद खुशी का क्षण है। लेकिन सवाल तो यह भी है कि भारत आते- आते यह सम्‍मान कई धड़ों में बंट गया है।

सम्‍मान मिला अंग्रेजी अनुवाद को, लेकिन यहां ये हिंदी को दिया जाना समझा जा रहा है। इससे भी आगे आते- आते ये सम्‍मान स्‍त्री की झोली में डाल दिया गया है। नारीवादी इसे स्‍त्री की कामयाबी मान रहे हैं। यानी लेखक स्‍त्री और पुरुष में भी बंट गया। पुरूष लेखक अलग है, स्‍त्री लेखक अलग? हिंदी के पैरोकार इसे हिंदी के लिए गौरव बता रहे हैं।

सवाल यही है, बुकर सम्‍मान आखिर किसे मिला, हिंदी को, स्‍त्री को, स्‍त्री लेखक को, लेखक को या अनुवादक को?

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

क्या है महाकाव्य शिलप्पदिकारम, जो स्टालिन ने भेंट किया पीएम मोदी को