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अभय जी : एक युग का अवसान

शकील अख़्तर
इंदौर में पत्रकारिता, खेल और कला-संस्कृति में अभिरुचि का एक और स्तंभ ढह गया। इंदौर की पत्रकारिता को राष्ट्रीय स्तर पर एक नई ऊँचाई पर पहुँचाने वाले पद्मश्री और कई पुरस्कारों से सम्मानित अभय छजलानी जी नहीं रहे। उनका जाना एक युग का अवसान है। वे काफी समय से अस्वस्थ थे। 88 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। डॉ.वेद प्रताप वैदिक के निधन के बाद उनका निधन इंदौर की एक और बड़ी क्षति है। अपने इस पूर्व संपादक को, आप सभी के साथ, मेरी भी विनम्र श्रद्धाजंलि। उनके परिवार के लिये यह दोहरे आघात का समय है, ख़बर है कि विमल छजलानी की पत्नी का भी निधन हो गया है। 
 
#एक इंसान अपने जीवन में, अपनी ज़िम्मेदारियों के बीच कितना कुछ कर और रच सकता है। कितनी प्रतिभाओं, संस्थाओं और अपने शहर को अपनी सकारात्मक दृष्टि और ऊर्जा से आगे बढ़ा सकता है, अभयजी इसकी मिसाल थे और रहेंगे। एक दौर में मैंने इंदौर को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने की उनमें जितनी ललक और प्यार देखा, कम ही लोगों में यह पाया है। तमाम उत्तरदायित्वों के बीच वे हँसते, मुस्कुराते शालीनता से अपने काम करते थे। यह जानते हुए भी कि उनके प्रबल विरोधियों की आलोचनाओं से भी उन्हें मुकाबला करते रहना होगा।
 
#अभयजी अपने विविध लेखन, प्रखर दृष्टि और हर क्षेत्र से जुड़ी सैकड़ों प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के व्यक्तित्व में हमेशा याद किये जायेंगे। उनकी एक और ख़ूबी उनका सौम्य और शालीन व्यक्तित्व रहा। वे समय से बहुत आगे सोचते थे। उन्होंने अभय प्रशाल जैसे इनडोर स्टेडियम के निर्माण की शुरूआत उस समय कर दी थी जब शहर विकास की दौड़ में बहुत पीछे था। तब बिना खम्भो के आधार वाले इंडोर स्टेडियम की छत की कल्पना भी मुश्किल बात लगती थी। मैंने उनके इस अभियान को लेकर कुछ वर्ष पहले एक गीत लिखा था, इसे इंदौर के बहुत से कलाकार साथियों ने उनके लिये संगीतबद्ध कर समर्पित किया था। यह गीत सुनकर वे बेहद ख़ुश हुए थे। 
 
#वे मेरे ऐसे पूर्व संपादक रहे, जिन्होंने मुझमें लेखन और पत्रकारिता को अपनी तरह से आगे बढ़ाने का आत्म विश्वास दिया।  उन्होंने नईदुनिया में मेरी सेवाओं के दौरान, शहर की कला और संस्कृति से जुड़ी ख़बरों को एक नई दृष्टि देने के अलावा, नई दुनिया कम्युनिकेशन्स के ज़रिये मुझे दूरदर्शन के लिये टीवी कार्यक्रमों को बनाने का अवसर दिया। इसमें मेरे बहुत से वरिष्ठ और समकालीन साथी शामिल रहे। इन कार्यक्रमों के माध्यम से मुझे शहर के करीब डेढ़ सौ कलाकारों के साथ जुड़ने का मौका मिला। दूरदर्शन के कार्यक्रमों के लिये हमने इंदौर गाँधी हाल से लेकर डेली कॉलेज कैम्पस तक शूटिंग की,भोपाल से लेकर मुंबई तक एडिटिंग के काम में शामिल रहे। ऐसे हर काम में मुझे उनका वरद हस्त प्राप्त हुआ। उन्होंने हमेशा कहा, ‘डोन्ट बोदर शकील। तुम करो,चिंता मत करो। सब हो जायेगा’। 
 
#मेरी युवा ऊर्जा को उन्होंने पहचाना, उसे खिलने का पूरा अवसर दिया। नई दुनिया के संपादकीय अनुशासनों के साथ ही मेरी अभिरुचियों के अनुसार कलम चलाने का उन्होंने भरपूर अवसर दिया। मैंने बहुत से लेख,समीक्षाएं,रिपोर्ट लिखीं। मेरी कॉपी को उनका अधिकतम समर्थन और सहयोग मिला। उदार और गहर अभय जी ने, बहुत बार मुझे अपना लिखा, छपने से पहले पढ़ने को दिया। इस बात की आज़ादी दी कि इसमें कहीं कुछ त्रुटि पूर्ण, ग़लती या भूल हो गई हो तो देख लो। मैं इस योग्य नहीं था। फिर भी उन्होंने अपने छोटो पर जिस तरह से यह विश्वास दिया, उससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। महसूस हुआ कि आप कैसे किसी को अपनी टीम का हिस्सा या संस्थान का ऐसेट बनाते हैं। 
 
#अभयजी लेखन और विविध अभिरूचियों क साथ ही प्रिटिंग तकनीक और लेआउट के भी मास्टर थे। वे दूर से डमी देखकर बता सकते थे कि फ्रंट पेज पर पहला चित्र कितने कॉलम का जायेगा या उसकी जगह क्या हो। वे नये प्रयोगों के प्रति बेहद सजग थे। देश-विदेश की यात्राएं कर चुके थे। देश भर में पत्रकारिता में जो कुछ हो रहा है, उससे प्रतिक्षण परिचित थे। इससे भी बढ़कर वे शहर के चप्पे-चप्पे की ख़बर रखते थे। प्रशासन और शासन को शहर के विकास के लिये हमेशा सजग रखने की कोशिश करते थे। वे जानते थे कि पाटनी पुरा से लेकर मालवा मिल तक जाने वाले मार्ग पर गटर कहाँ-कहाँ बने हैं? या विकास के लिये इंदौर को किन स्तरों पर काम करने की ज़रूरत हो। इंदौर में पानी का प्रबंधन हो या निकास का, निर्माण का हो या शहर की बौद्धिक सजगता का, उन्होंने कमाल का काम किया। अभय जी ने ही कई सेमिनार,संगोष्ठियां की। कवि सम्मेलन के आयोजन किये।
 
#एक समय ऐसा भी आया जब अभयजी इंदौर में नईदुनिया अख़बार के पर्याय बन चुके थे। यद्धपि नईदुनिया ने देश की हिन्दी पत्रकारिता को कई बड़े नाम दिये, स्व. अभय छजलानी उन नामों से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कड़ी थी। एक दौर ऐसा भी था जब हर ख़बर को लेकर उनकी बात ज़रूर होती थी। शहर में प्रशासन के स्तर पर या शासन के स्तर पर जो कोई भी अपना उत्तरदायित्व संभालता था, अभय जी से मुलाकात कर उनके अनुभव का लाभ लेता था। उनकी टीम में ऐसे प्रखर और प्रतिभाशाली पत्रकार रहे, जो उन्होंने चौबीसों घंटे अपने-अपने क्षेत्रों की सूचनाओं से लैस रखते थे। वे जानते थे, किसे कौन सा काम देना बेहतर रहेगा जिसमें वे अपना सर्वक्षेष्ठ दे सकेगा। 
 
#एक बार उन्होंने मुझे कहा, शकील, बाबूजी (स्व. बाबू लाभचंदजी छजलानी) कहते थे, तुम कर्मचारियों को निकालो मत, उनका उपयोग देखो। हरेक को उसके हिसाब का उपयुक्त काम दो। वह बेहतर कर दिखायेगा। बाबूजी की इस सीख की वजह से मैंने पूरी कोशिश की मैं अपने साथियों को उनका सही उत्तरदायित्व सौंप सकूँ। 
 
#अभयजी का जन्म 4 अगस्त 1934 को इंदौर में हुआ था। 1965 में उन्होंने पत्रकारिता के विश्व प्रमुख संस्थान थॉम्सन फाउंडेशन, कार्डिफ (यूके) से स्नातक की उपाधि ली थी। को पत्रकारिता के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वे  मध्य प्रदेश टेबल टेनिस संगठन के अध्यक्ष रहे और फिर आजीवन अध्यक्ष पद पर बने रहे। अभय जी भारतीय भाषाई समाचार पत्रों के शीर्ष संगठन इलना के 3 बार अध्यक्ष रहे।  वे इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी (आईएनएस) के 2000 में उपाध्यक्ष और 2002 में अध्यक्ष रहे। 2004 में भारतीय प्रेस परिषद के लिए मनोनीत हुए। 
 
#उन्हें 1986 का पहला श्रीकांत वर्मा राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होने दुनिया के कई देशों की यात्राएं कीं। इनमें सोवियत संघ, जर्मनी, फ्रांस, जॉर्डन, यूगोस्लाविया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, थाईलैंड, इंडोनेशिया, तुर्की, स्पेन, चीन आदि शामिल हैं। 1995 में मप्र क्रीड़ा परिषद के अध्यक्ष बने। ऑर्गनाइजेशन ऑफ अंडरस्टैंडिंग एंड फ्रेटरनिटी द्वारा वर्ष 1984 का गणेश शंकर विद्यार्थी सद्भावना अवॉर्ड वर्ष 1986 में राजीव गाँधी ने प्रदान किया। पत्रकारिता में विशेष योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1997 में जायन्ट्स इंटरनेशनल पुरस्कार तथा इंदिरा गाँधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार मिला था। 
 
#अभयजी को इंदौर में इंडोर स्टेडियम अभय प्रशाल स्थापित करने के लिए भोपाल के माधवराव सप्रे समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान ने सम्मानित किया था। उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय योगदान के लिए ऑल इंडिया एचीवर्स कॉन्फ्रेंस ने दिल्ली में 1998 में राष्ट्रीय गौरव पुरस्कार प्रदान किया। 1998 में ही उन्हें लालबाग ट्रस्ट इंदौर का अध्यक्ष बनाया गया।

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