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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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और समृद्ध होगा फलों के राजा आम का कुनबा

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गिरीश पांडेय

  • शीघ्र रिलीज होगी आम की नई प्रजाति अवध समृद्धि
  • 'अवध मधुरिमा' भी पाइप लाइन में
  • केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने किया है दोनों प्रजातियों का विकास
New variety of mango: फलों के राजा आम का कुनबा और समृद्ध होगा। आम की एक नई प्रजाति अवध समृद्धि शीघ्र रिलीज होगी। एक अन्य प्रजाति 'अवध मधुरिमा' भी रिलीज होने की पाइप लाइन में है। इन दोनों प्रजातियों का विकास केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) रहमानखेडा, लखनऊ ने किया है। 
 
अवध समृद्धि की खूबियां : केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन के अनुसार अवध समृद्धि नियमित फलत देने वाली एवं जलवायु लचीली संकर प्रजाति है। रंगीन होना इसके आकर्षण को और बढ़ा देता है। एक फल का वजन करीब 300 ग्राम का होता है। पेड़ की साइज मीडियम होती है।

यह प्रजाति सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है। 15 साल के पेड़ की ऊंचाई करीब 15 से 20 फीट होती है। इसलिए इसका प्रबंधन भी आसान होता है। इसके पकने का सीजन जुलाई-अगस्त होता है। अवध समृद्धि का फील्ड ट्रायल चल रहा है। उम्मीद है कि यह शीघ्र ही रिलीज हो जाएगी। अवध मधुरिमा का फील्ड में ट्रायल चल रहा है। इसको प्रदेश में रिलीज होने में थोड़ा समय लग सकता है।
 
सर्वाधिक उत्पादक राज्य होने नाते यूपी को होगा सबसे अधिक लाभ : स्वाभाविक है कि इन दोनों प्रजातियों का सर्वाधिक लाभ भी उत्तर प्रदेश को मिलेगा। क्योंकि आम का सर्वाधिक उत्पादन भी उत्तर प्रदेश में ही होता है। आकर्षक रंग, एवरेज साइज और अधिक दिनों तक भंडारण योग्य होने के नाते इनके निर्यात की संभावना भी अधिक है। अमेरिका सहित यूरोपियन बाजार में आम की रंगीन किस्में अधिक पसंद की जाती हैं। स्थानीय बाजारों में भी तुलनात्मक रूप से इनके दाम बेहतर मिलते हैं। संयोग से हाल के कुछ वर्षों में सीआईएसएच ने जिन प्रजातियों का विकास किया है, वे सभी रंगीन हैं। हाल के कुछ वर्षों के दौरान सीआईएसएच-अंबिका और सीआईएसएच-अरुणिका प्रजातियां विकसित कर चुका है। इनकी खूबियां हैं।
 
अंबिका : नियमित फलत वाली, अधिक उपज और देर से पकने वाली किस्म है। पीले रंग के फल के छिलके पर आकर्षक गहरा लाल ब्लश होता है। गूदा गहरा पीला, ठोस, कम रेशे वाला एवं अच्छी गुणवत्ता वाला होता है। फल की भंडारण क्षमता अच्छी है। फलों का वजन लगभग 350-400 ग्राम होता है। रोपण के 10 साल बाद प्रति पौध उपज करीब 80 किलोग्राम मिलती है। आकर्षक रंग, एवरेज साइज के कारण इसे स्थानीय बाजार में तो पसंद किया ही जाता। इसके निर्यात की भी अच्छी संभावनाएं हैं।
इसकी व्यापक स्वीकार्यता है और यह देश के उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय दोनों कृषि जलवायु क्षेत्र में उगाई जा सकती है। इसकी फसल उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में ली जा सकती है।
 
अरुनिका : यह नियमित फलत और देर से पकने वाली किस्म है। फल आकर्षक लाल ब्लश के साथ चिकने, नारंगी पीले रंग के होते हैं, जो उत्तम स्वाद के साथ उत्कृष्ट गुणवत्ता रखते हैं। फल की भंडारण क्षमता अच्छी है। वजन लगभग 190-210 ग्राम, गूदा नारंगी पीला, ठोस एवं कम रेशे वाला होता है। इसका पेड़ बौना और सघन छत्रप वाला होता है। रोपण के बाद 10 वर्षों में लगभग 70 किलोग्राम प्रति पौधा उपज मिलती है। यह प्रजाति सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है। ये किस्म भी उपोष्ण कटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय दोनों स्थितियों में सभी आम उत्पादक क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
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करीब दो दशक लगते हैं एक नई प्रजाति के विकास में : आशीष
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आशीष यादव के मुताबिक आम की किसी प्रजाति के विकास में करीब दो दशक लग जाते हैं। पहले चरण में विकसित करने वाले संस्थान में ही ट्रायल चलता है। यहां से संतुष्ट होने के बाद इसे देश/प्रदेशों के अन्य संस्थाओं में ट्रायल के लिए भेजा जाता है। हर जगह से पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद संबंधित प्रजाति को रिलीज किया जाता है। 
 
परंपरागत प्रजातियों के अलावा शोध संस्थाओं में विकसित कुछ प्रमुख किस्में 
परंपरागत प्रजातियों के अलावा शोध संस्थाओं में भी व्यापक स्वीकार्यता और व्यावसायिक दृष्टि से उपयोगी  कुछ अन्य प्रजातियों को भी देश की शीर्ष शोध संस्थाओं के वैज्ञानिकों ने विकसित किया हैं। इनमें से प्रमुख किस्में हैं: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा (नई दिल्ली) ने पूसा अरुणिमा, पूसा सूर्या, पूसा प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ, पूसा पीताम्बर, पूसा लालिमा, पूसा दीपशिखा, पूसा मनोहारी इत्यादी प्रजातियों का विकास किया है। इसी क्रम में आईसीएआर-भारतीय बागवानी शोध संस्थान, बेंगलुरु ने अर्का सुप्रभात, अर्का अनमोल, अर्का उदय, अर्का पुनीत, अर्का अरुणा, अर्का नीलाचल केसरी प्रजातियां विकसित की हैं। 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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