Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

गुप्त नवरात्रि का अंतिम दिन आज : पढ़ें मां दुर्गा को एक भावुक पत्र

गुप्त नवरात्रि का अंतिम दिन आज : पढ़ें मां दुर्गा को एक भावुक पत्र
webdunia

स्मृति आदित्य

मां दुर्गा को पत्र    
      
परम पूजनीय मां,
 
आपको मेरा प्रणाम पहुंचे। हर साल आप 4 बार पृथ्वी पर आती हैं। दो बार धूमधाम से और दो बार गुप्त रूप से। इन दिनों भी आप गुप्त रूप से पृथ्वी पर रहीं और आज चली भी जाएंगी। लेकिन मां, जाने से पहले मेरी कुछ प्रार्थना सुनती जाओ। 
 
बहुत व्यथित है मेरा मन उन नन्ही नन्ही नाजुक मासूम कन्याओं के लिए जो पिछले दिनों बेदर्दी से कुचली,मसली और नोची गई। हे शुंभ निशुंभ का नाश करने वाली देवी आपको ये धरती पर विचरते नर पिशाच क्यों नहीं दिखते? हे चंड मुंड का संहार करने वाली जगदंबे आपको ये विभत्स मानसिकता वाले दैत्य क्यों नहीं नज़र आते? 
 
कब, आखिर कब इन्हें इनके दुष्कृत्य की सजा आपके हाथों मिलेगी। मैं जानना चाहती हूं कि जब भी आप धरा पर आती हैं तो क्या सोचती हैं इन  दानवों के लिए? मां,आप आज चली जाएंगी फिर शरद ऋतु में पधारेंगी। क्या इस बीच आप अपने पूरे अस्तित्व के साथ अपनी उपस्थिति का अनुभव करवा सकेंगी की ये दुष्ट फिर किसी भी उम्र, वर्ग या तबके की नारी को यूं गंदी निगाहों से न देख सके।
 
क्या आप मेरे साथ साथ पूरे देश की यह पुकार सुनेंगी की कोई दरिंदा फिर किसी सुकोमल तितली के पंख न नोंच सके।
 
फिर कोई गुलाबी कली खिलने से पहले न मसली जाए।
 
फिर कोई लाड़ली अपनी मां के ही आंचल से खींच कर लहूलुहान और मृत न मिले। आप तो दयालु हैं न मां, थोड़ी सी, बहुत थोड़ी सी दया उन पर करो न,  जो आपका ही स्वरूप मानी जाती है। 9 दिन पूजी जाती हैं। जिन्हें देवी बना कर घर घर खीर खिलाई जाती है। 
 
मां, मुझे आपकी क्षमता पर तो कोई सवाल है ही नहीं, पर आप क्यों मौन हैं मैं आपकी हुंकार सुनना चाहती हूं, धनुष की टंकार सुनना चाहती हूं। इस देश में कोई ऐसा नहीं है जो अपने बाग की कलियों को बचा सके क्योंकि माली खुद अपने ईमान पर कायम नहीं है। पिता लूट रहे हैं अस्मत और भाई हो रहे हैं विकृत। 
 
आप जा रही हैं और मैं आपके जाने के लिए नहीं अपने देश की बच्चियों के लिए रो रही हूं। मां मेरे एक-एक आंसू में उस मां का दर्द देखना जिसकी कच्ची कोमल बेटी को कुचला गया है।  मन भारी हो रहा है, बस अब कुछ न कह पाऊंगी.. हो सके तो शारदीय नवरात्रि तक कोई समाधान लेकर आना और मेरे देशवासियों के मानस में संस्कारों के बीज रोप कर जाना। थोड़ा लिखा है बहुत समझना।
 
 आपकी ही स्मृति

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

गर्म पानी के साथ इलायची खाने के ये फायदे आपको खुश कर देंगे