Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

Swami Mukundananda Interview in Hindi : स्वामी मुकुंदानंद ने बताई नेगेटिव विचार को दूर करने की ट्रिक

Webdunia
सोमवार, 20 फ़रवरी 2023 (17:45 IST)
भले ही आप इनसे बचना चाहें, लेकिन नकारात्मक विचार स्वत: ही दिमाग में आ जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? हम नहीं चाहते हैं कि हमारे दिमाग में निगेटिव थॉट्स आएं लेकिन बार-बार ये आ जाते हैं। आखिर ये बार-बार क्यों आते हैं? इनके आने से क्या होगा? इस पर हमने आध्यात्मिक शिक्षक स्वामी मुकुंदानंद जी से पूछा एक सवाल।
 
वेबदुनिया : कई बार न चाहते हुए भी दिमाग में निगेटिव विचार आ जाते हैं, द्वंद्व बना रहता है कि मैं ये करूं या वो करूं? मैं खुद को किसी एक काम पर फोकस नहीं कर पाता हूं। आप क्या सलाह देंगे?
 
स्वामी मुकुंदानंद : ये निगेटिव विचार जो हैं, ये मन का एक स्वभाव है। जैसे मान लो आपके दांतों में आम का रेशा कहीं अटक जाता है तो जिव्हा बार-बार वहीं जाती है चेक करने के लिए कि क्या लगा हुआ है। 32 दांत के बीच में 28 गैप हैं, लेकिन जिव्हा और कहीं नहीं जाएगी। उसी को बार-बार चेक करेगी कि ये समस्या क्या है। तो इसी प्रकार से हमारे जीवन के 25 क्षेत्र सब ठीक-ठीक कर रहे हैं, लेकिन एक क्षेत्र में गड़बड़ हो गई।
 
मान लो कि बेटे का व्यवहार बाहर थोड़ा-सा डायवर्ट हो गया। अब वो मन जो ठीक एरियाज हैं उस पर ध्यान नहीं देता लेकिन जो गड़बड़ एरिया है उस पर बार-बार रिविजिट करता है। और, ये समस्या कंपाउंड इसलिए हो जाती है कि हमारा मस्तिष्क गीली मिट्टी के समान है। कोई भी विचार हम रखते हैं तो मस्तिष्क के न्यूरॉन्स फायर होते हैं और अगर हम एक विचार को बार-बार लाएं तो वहीं न्यूरॉन्स बार-बार फायर होने लगते हैं। 
 
इससे समझो की मस्तिष्क में एक न्यूरल पॉथवे बन जाता है जिससे वो विचार और आसानी से आने लग जाते हैं। तो परिणाम स्वरूप अगर हम 100 बार निगेटिव विचार लाएं हैं तो समझो कि कोई भी परिस्थिति हो उसमें फिर निगेटिव विचार हमारा और आसानी से आ जाता है। तो एक मनुष्य का स्वभाव हो जाता है।
लेकिन घबराने की बात नहीं है। किसी भी परिस्थिति को हम दो प्रकार से देख सकते हैं। जैसे यह उदाहरण तो आपने सुना ही है कि ग्लास जो है वह आधे पानी से भरा है। अब आप सोचे कि आधा भरा है या सोचे कि आधा खाली है। तो इसी प्रकार से हमारे जीवन में कुछ हमको नहीं मिला, कुछ कठिनाइयां हैं लेकिन साथ ही साथ कृपाएं भी तो इतनी सारी होती हैं। अब वो कृपाओं की ओर हम अपने ध्यान को रखें तो हम कहेंगे कि भगवान ने कितने अनुग्रह किए हैं हमारे ऊपर।
 
जैसे आपको एक उदाहरण दूं। एक व्यक्ति हर समय भगवान को मन ही मन कोसता था कि आपने दूसरों पर तो इतने अनुग्रह किए और आपने मेरे ऊपर तो कोई कृपा ही नहीं की। तो उसके आंख में एक दिन खुरक शुरू हो गई। अब जब बढ़ गई तो डॉक्टर को दिखाने गया। डॉक्टर ने चेक किया और कहा कि भैया ये तो तुम्हारे कैंसर हो रहा है आंख में। इसको तो आंख को निकालना पड़ेगा। वर्ना वो शरीर में फैल जाएगा। अब उसके सामने ये समस्या आ गई कि या तो मैं आंख निकालकर अंधा जीवन जीऊं अथवा इसको न निकालूं तो जीवन ही खत्म हो जाएगा। जीवेषणा बलवान थी।
 
उसने स्वीकार किया और कहा ठीक है ऑपरेशन करो। तो हॉस्पिटल में वो एडमिट हुआ। ये निश्चय करके कि जब मैं यहां से डिस्चार्ज होऊंगा तो मेरी आंखें नहीं रहेगी। उसको एनेस्थेसिया दिया गया। डॉक्टर ने जब आंख काटी तो पाया कि वहां तो पाया वहां कैंसर था ही नहीं। वहां पर एक दुर्लभ प्रकार का फंगस उग रहा था।
 
डॉक्टर ने उसको साफ कर दिया और उसकी सिलाई कर दी। कुछ दिन के बाद जब पट्टी खुली तो उसने जब देखा तो उसने कहा हे भगवान तू कितना दयालु है। तूने मुझे दो आंखें दी है जिनसे मैं देख पाता हूं। वो आंखें उसके पास पहले भी थी। लेकिन उसमें वह कृपा नहीं मान रहा था। तो बात इतनी है कि हम सब पर अनेक कृपाएं हुई हैं, किंतु हम उनको फॉर ग्रांटेड नहीं लेते। और वो जो एक कृपा नहीं हुई उसी को हम सोचते रहते हैं तो फिर मन निगेटिव बन जाता है।
 
इसके बजाय हम आभार हृदय में रखने का अभ्यास करें। एक ग्रेटिट्यूट जनरल। भगवान ने ये कृपा की, वो कृपा की, तो प्रतिदिन हम नोट करें कि कितनी कितनी कृपाएं हुई हैं मेरे उपर। ये जो आंखें हैं हमारी, प्रत्येक आंख में साढ़े 12 करोड़ सेंसर लगे हुए हैं जिसके द्वारा हम देखते हैं।
 
वो इंद्रधनुष के 7 रंगों को, सूर्योदय की महिमा को, सूर्यास्त की सुंदरता को, मयूर की पूछ को.. तो ये सब हम जो अनुभव कर पाते हैं इसमें हम कृपा मानें। इसी प्रकार से भगवान ने ये जो दो कान दिए हैं तो अगर हम बहरे नहीं हैं तो इसका मतलब प्रत्येक काम में 24 हजार फाइबर फिट हैं जिसके द्वारा हम सुन सकते हैं। बच्चों की तोतली भाषा, इत्यादि इत्यादि। इसको भी हम कृपा मानें। अब को कृपाओं को सोचेंगे वे विभोर रहेंगे। 
 
लोग मुझे कहते हैं स्वामीजी मैं कैसे खुश रहूं? भगवान में मुझे कुछ दिया ही नहीं। मैं कहता हूं मैं अगर तुमको 100 कारण बता दूं खुश रहने के तो? कहते हैं कौनसे 100 कारण? अरे भाई ये जो तुम वायु भक्षण कर रहे हो ये भी तो कृपा है। अभी कोविड काल में जो समस्याएं उत्पन्न हुई और जो व्यक्ति वेंटिलेटर पर चला गया।
 
उसका SPo2 काउंट 80 तक पहुंच गया तो एक एक श्वास के लिए वो जो युद्ध कर रहा था तो उसको पता चला कि एक श्वास लेना भी बिना भगवान की कृपा से नहीं हो सकता। अतः: चारों तरफ भगवान का अनुग्रह हमारे ऊपर हो रहा है। सुनता हूं कृपा तेरी दिन रात बरसती है। हम बस केवल उसको अपने स्मरण में लाएं तो यही निगेटिव थिंकिंग धीरे धीरे पॉजिटिव थिंकिंग में परिवर्तित हो जाएगी।
सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा का मंच

महंगे क्रीम नहीं, इस DIY हैंड मास्क से चमकाएं हाथों की नकल्स और कोहनियां

घर में बेटी का हुआ है जन्म? दीजिए उसे संस्कारी और अर्थपूर्ण नाम

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

आज का लाजवाब चटपटा जोक : अर्थ स्पष्ट करो

આગળનો લેખ
Show comments