अनुपमा गुप्ता
तब मां तुम बहुत याद आती हो
जब दिल में दर्द उठता है
ख्वाबों का महल टूटता है
जब आस कहीं छूटती है
और चोट कहीं लगती है
सच, मां तुम बहुत याद आती हो
सपनों को सहलाती तुम
आशा को बंधाती तुम
प्यार से पुचकारती तुम
सुकून की हवा दे जाती हो
सच, मां तुम बहुत याद आती हो
जब दूर कहीं शहनाई बजती
दुल्हन की डोली सजती
होती जब उसकी विदाई
नयन नीर की गंगा बह आई
सच, मां तुम बहुत याद आती हो
जब कदम कहीं रुकते हैं
व्यथित मन से टूटते हैं
जीवन परीक्षा के विचलित क्षणों में
मन के धीरज छूटते हैं
सच, मां तुम बहुत याद आती हो
राह हमेशा सुझाती हो
ढांढस तुम बंधाती हो
बीच भंवर में फंसे कहीं
निकाल तुम लाती हो
सच, मां तुम बहुत याद आती हो....