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अच्युतानंद मिश्र : एक असली आदमी

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सोमवार, 29 सितम्बर 2014 (17:01 IST)
हमारे समय के बेहद महत्वपूर्ण संपादक, पत्रकार, लेखक, पत्रकार संगठनों के अगुआ, शिक्षाविद, आयोजनकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता जैसी अच्युतानंद मिश्र की अनेक छवियां हैं। उनकी हर छवि न सिर्फ पूर्णता लिए हुए है वरन लोगों को जोड़ने वाली साबित हुई है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानव की सहज कमजोरियां भी उनके आसपास से होकर नहीं गुजरी हैं। राग-द्वेष और अपने-पराए के भेद से परे जैसी दुनिया उन्होंने रची है उसमें सबके लिए आदर है, प्यार है, सम्मान है और कुछ देने का भाव है। देश के आला अखबारों जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, अमर उजाला, लोकमत समाचार के संपादक के नाते उन्हें हिन्दी की दुनिया ने देखा और पढ़ा है।

6 मार्च 1937 को गाजीपुर के एक गांव में जन्मे श्री मिश्र पत्रकारों के संघर्षों की अगुवाई करते हुए संगठन को शक्ति देते रहे हैं और एक शिक्षाविद के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति के नाते उन्होंने पत्रकारिता शिक्षा और शोध के क्षेत्र में नए आयाम गढ़े। स्वतंत्र भारत की पत्रकारिता पर शोध परियोजना के माध्यम से उन्होंने जो काम किया है वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मानक काम है जिसके आगे चलकर और भी नए रास्ते निकलेंगे। लोगों को जोड़ना और उन्हें अपने प्रेम से सींचना, उनसे सीखने की चीज है। उनके जानने वाले लोगों से आप मिलें तो पता चलेगा कि आखिर अच्युतानंद मिश्र क्या हैं। वे कितनी धाराओं, कितने विचारों, कितने वादों और कितनी प्रतिबद्धताओं के बीच सम्मान पाते हैं कि व्यक्ति आश्चर्य से भर उठता है। उनका कवरेज एरिया बहुत व्यापक है, उनकी मित्रता में देश की राजनीति, मीडिया और साहित्य के शिखर पुरुष भी‍ हैं तो बेहद सामान्य लोग और साधारण परिवेश से आए पत्रकार और छात्र भी। वे हर आयु के लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। उनके परिधानों की तरह उनका मन, जीवन और परिवेश भी बहुत स्वच्छ है। यह व्यापक रेंज उन्होंने सिर्फ अपने खरेपन से बनाई है, ईमानदारी भरे रिश्तों से बनाई है। लोगों की सीमा से बाहर जाकर मदद करने का स्वभाव जहां उनकी संवेदनशीलता का परिचायक है, वहीं रिश्तों में ईमानदारी उनके खांटी मनुष्य होने की गवाही देती है। वे जैसे हैं, वैसे ही प्रस्तुत हुए हैं। इस बेहद चालाक और बनावटी समय में से एक असली आदमी हैं। अपनी भद्रता से वे लोगों के मन, जीवन और परिवारों में जगह बनाते गए। खाने-खिलाने, पहनने-पहनाने के शौक ऐसे कि उनसे हमेशा रश्क हो जाए। जिंदगी कैसे जीनी चाहिए उनको देखकर सीखा जा सकता है। डायबिटीज है, पर वे ही ऐसे, जो खुद न खाने के बावजूद आपके लिए एक-एक से मिठाइयां पेश कर सकते हैं। उनका आतिथ्यभाव, स्वागतभाव, प्रेमभाव मिलकर एक अहोभाव रचते हैं।

(मीडिया विमर्श में संजय द्विवेदी)
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