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अख़बार या बाहुबली

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गुरुवार, 25 सितम्बर 2014 (19:38 IST)
-भरत तिवारी
 
बाहुबली! जो अपनी शक्ति के नशे में इतना चूर हो कि दूसरों पर हमला करना वह अपना अधिकार समझने लगे। कुछ क्षेत्रीय स्तर के अख़बारों और उनके मालिकों/ मातहतों में यह प्रवृत्ति दिखती रही है मगर राष्ट्रीय अख़बारों, जिन्हें उनका पाठक अपना दोस्त मानता है, उसके साथ सुबह की चाय पीता है। इन अख़बारों के साथ न सिर्फ हम बचपन से जुड़े हैं बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी रोज़-ब-रोज़ इनके साथ ही बड़ी हो रही है– क्या ऐसे अख़बार अब हमसे अपने बाहुबल का प्रदर्शन करेंगे? क्या वो हमारी महिलाओं का चीर-हरण करेंगे, किसी स्त्री पर हुए हमले को सिर्फ इसलिए तवज़्ज़ो न देना क्योंकि वह एक फ़िल्म अभिनेत्री है, ये कौनसा पैमाना है और किसने बनाया। दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हम ऐसे हमलों को मजाक-भर मान लेते हैं। 
प्रीति ज़िंटा के साथ क्या हुआ था? अरे! आप तो भूल चुके होंगे। या बाहुबलियों ने मीडिया पर अपनी शक्ति दिखाई होगी और प्रीति के साथ ‘कुछ हुआ’ है को सरकारी फाइलों की तरह कहीं दबवा दिया। और हम तो भूलने में माहिर हैं ही!
 
बहरहाल आज जब टाइम्स ऑफ़ इंडिया (भारत का समय?) ने दीपिका पादुकोण की वक्ष-रेखा पर की गई अपनी अभद्र ट्विट पर दीपिका की नाराज़गी का जिस तरह से जवाब दिया है, उसे पढ़कर यही लगा कि कोई बाहुबली अपनी बात ‘कह’ रहा है कि हमसे टक्कर ना लीजिए। ताज्जुब की बात ये है कि अख़बार की तरफ़ से ये जवाब एक महिला संपादक ने दिया है– और जिस भाषा का प्रयोग किया है वो अश्लीलता के चरम को छूती हुई है– कुछ पंक्तियों का अनुवाद यहाँ लिख रहा हूँ...
 
दीपिका की इस बात पर कि हमें अच्छा लगता है जब हम किसी कलाकार के पेट पर उभरी आठ पिंडलियों को देखते है परन्तु क्या हम उस कलाकार को सामने पाते हैं तो हम अपनी नज़रें उसके क्रोच (पुरुष जननांग) पर जमा देते हैं? और सस्ती-सुर्ख़ियों भरी खबर बनाते हैं?
 
Deepika, who began her career as a 'calendar girl' for a liquor brand, has written, ''Yes we marvel, envy and drool over a male actors 8pack abs in a film, but do we zoom in on the mans 'crotch' when he makes a public appearance and make that 'cheap headlines'??!!''
 
दीपिका के इस सवाल के जवाब में अख़बार की प्रिया गुप्ता उनसे कहती हैं – दीपिका, सिर्फ आपकी जानकारी के लिए (बता रहे हैं) किसी हम किसी औरत की वेजाइना या निप्पल में ज़ूम नहीं करते बल्कि यदि किसी तस्वीर में ऐसा दिख रहा हो तब हम उनका पिक्सेलीकरण कर देते हैं।
 
Deepika, just for the record, we do not zoom into a woman's vagina or show her nipples. As a newspaper, we take every care to ensure that we pixelate them if they show up in a picture, but your cleavage is as sexy as Shah Rukh Khan's '8-pack' abs.
 
जननागों को लिखने/कहने की एक भद्र भाषा होती है और दूसरी ... क्या दीपिका के ‘क्रोच’ शब्द के जवाब में ‘वेजाइना और निप्पल’ शब्द भद्र हैं? आप खुद तय करें !!!
 
अख़बार ने जिस तरह से दीपिका के विरोध को महज इसलिए क्योंकि उनकी एक नई फ़िल्म आने वाली है, सिर्फ एक पब्लिसिटी-स्टंट करार किया है– यह बाहुबली प्रदर्शन नहीं तो और क्या है? प्रिया गुप्ता, टाइम्स ऑफ़ इंडिया सिर्फ यही नहीं करता पूरा का पूरा वेब-पन्ना दीपिका की वक्ष-रेखा पर केन्द्रित है एक-दो नहीं बल्कि आठ तस्वीरें भी लगाई हुई हैं जिनमे से वह तस्वीर जिस पर दीपिका ने अपना विरोध दर्ज़ किया है उसे न सिर्फ बड़ा किया है बल्कि वक्ष-रेखा को लाल रंग से घेर कर लिखा है “यही है वह मशहूर वक्ष-रेखा”।
 
कोई अखबार नैतिकता से यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता कि ऑनलाइन-संस्करण नैतिकता से ऊपर हैं। क्या अख़बारों के ऑनलाइन-संस्करण सिर्फ उत्तेजित बातों के चलते देखे जाते हैं? इस पर अलग से बहस होनी चाहिए, लेकिन यदि ऐसा है तो आख़िर ये अभद्र भाषा किसे परोसी जा रही है? और क्यों? कहीं ये स्त्रियों के साथ हो रही अश्लील हरकतों को बढ़ावा देने में इनका भी हाथ तो नहीं है?
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