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एक थी शहजादी...

एक थी शहजादी...
, शनिवार, 27 दिसंबर 2014 (17:14 IST)
-वर्तिका नंदा
वो एक डॉक्टर थी जो उस दिन अपने दफ्तर से घर आ रही थी। अचानक कुछ ऐसा हुआ कि आस-पास की जमीन तक थरथरा गई। उस पर एसिड से हमला किया गया था।
 
वो लड़की बुरी तरह से घायल हो गई। दिल्ली वालों ने अगले कई मिनट उसकी कोई मदद नहीं की। आखिर में किसी का दिल पसीजा और पुलिस का भी। बाद में पता लगा कि यह हमला उसी के साथी एक डॉक्टर ने करवाया था जो उससे शादी करना चाहता था। हमले के लिए दो नाबालिग लड़कों की भी मदद ली गई थी।
मीडिया की खबर का बड़ा हिस्सा इसी खबर पर बना रहा कि मामला एकतरफा इश्क का था। यह सवाल बमुश्किल ही उठा कि क्या लड़की इस बात के लिए मजबूर होती है कि वह हर किसी से शादी के लिए हामी भर दे और क्या यह देश इस कदर लचर हो चला है कि आज भी देश की सड़कों पर एसिड की बोतल महज 10 रुपए में हासिल हो जाती है। क्या कथित तौर पर मासूम नाबालिगों को लेकर बने कानून में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है। क्या कानून ऐसे हमले करने वालों को पीड़ितों के इलाज का पूरा खर्च उठाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। क्या कानून अपराधियों पर सख्ती नहीं बना सकता।
 
देश में हर साल कम से कम 1000 महिलाओं पर एसिड के हमले होते हैं। हमले करने वाले यह भूल जाते हैं कि यह लड़कियां अपने परिवारों के लिए शहजादियां हैं, ये वे परियां हैं जिन्हें दुलारने का मन होता है। इन लड़कियों के पास भी एक दिल है और उन्हें भी है - जीने का हक।
 
ढीली, बेदिल और बदहाल व्यवस्था को हमें बदलना होगा- पर कैसे? अपने सुझाव हमें भेजिए। जल्द से जल्द क्योंकि अगर हम अब भी नहीं बोलेंगे तो फिर कब बोलेंगे? बताइए।

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