नई दिल्ली। समाचार चैनलों द्वारा समाचारों को लेकर जनता की रायशुमारी करना एक फैशन सा हो गया है। क्योंकि आम तौर पर यही माना जाता है कि जनमत संग्रह में जो परिणाम हासिल होगा, वह जनता की असली राय होगी। लेकिन चैनलों को उस समय बगलें झांकने के लिए वाध्य होना पड़ता है जब इस कवायद का नतीजा उलटा निकल आता है। ...और फिर घूंघट को अपनी शान समझने वाले हरियाणा की बात हो तो कहने ही क्या।
पिछले दो दिनों से हरियाणा के वर्णिका कुंडू की कहानी पर लगे रहे अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी ने एक हैशटैग #आईस्टेंडविदवर्णिका से लोगों की राय जाननी चाही। इस के लिए दो विकल्प 'हां' और 'नहीं' थे।
टीवी चैनल के दर्शकों में 1583 लोगों ने कहा नहीं अर्थात ये लोग भाजपा अध्यक्ष सुभाष बरारा के बेटे विकास के साथ खड़े थे, जबकि उसका समर्थन करने वालों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम 1442 ही थी। यह देखकर और शर्मिंदगी का सामना करने की बजाय चैनल से उनकी रायशुमारी ही हटाना बेहतर समझा। गौरतलब है कि वर्णिका विकास बराला पर आरोप लगाया था कि उसने उसकी (वर्णिका) की कार का पीछा कर किया था। साथ ही वर्णिका का कहना था कि उसका अपहरण भी हो सकता था।
खास बात यह है कि इस जनमत संग्रह के दौरान ही अर्णब वर्णिका कुंडू का इंटरव्यू भी ले रहे थे। शायद टीवी चैनल और उसके प्रमुख गोस्वामी को इस बात का अहसास नहीं था कि वे हरियाणा से जुड़े मुद्दे पर जनता की राय जान रहे हैं, जहां लोकतंत्र के नाम पर जात, खाप और ताऊ ही निर्णायक होते हैं और यहा लोकतंत्र का मतलब सिर्फ जाटलैंड होता है। हालांकि लोगों का यह भी मानना है कि चैनल को सर्वेक्षण हटाना नहीं चाहिए था क्योंकि कुछ लोगों की राय पूरे देश की राय नहीं हो सकती।