दीपक को विभिन्न तिथि और योग और अलग-अलग तेल और घी से प्रज्वलित करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
धर्मशास्त्रों में दान, पुण्य, तपस्या और कर्म का बड़ा महत्व बताया गया है। विभिन्न पर्वों और व्रत त्यौहारों के अवसर पर किए गए दान का अक्षय फल मानव को प्राप्त होता है। इन्ही मनोकामना को लेकर विशेष तिथियों में पौराणिक धर्मस्थलों और पवित्र सरोवरों, नदियों और जलाशयों पर पूजा-अर्चना के उपादानों में ऐसा ही एक कर्म दीपदान बताया गया है।
दीपदान के माध्यम से लोग अपनी मनोकामनाओं को ईश्वर तक पहुंचाते हैं और अपनी जिंदगी को रोशन करते हैं। दीपदान किसी भी विपत्ति के निवारणार्थ श्रेष्ठ उपाय है।
वैसे तो साल में कभी भी दीपदान किया जा सकता है लेकिन विशेष तिथि, दिवस, मास और नक्षत्र पर किया गया दीपदान विशेष फलदायी होता है।
दीपदान के लिए धर्मशास्त्रों के अनुसार वसंत, हेमंत, शिशिर, वर्षा और शरद ऋतु उत्तम मानी गई है। वैशाख, श्रावण, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन मास श्रेष्ठ है। पक्षों में शुक्ल पक्ष दीपदान के लिए अधिक उत्तम होता है।
तिथियों में प्रथमा, द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, द्वादशी, त्रयोदशी व पूर्णिमा तिथि दीपदान के लिए उत्तम मानी गई है। रोहिणी, आर्दा, पुष्य, तीनों उत्तरा, हस्त, स्वाती, विशाखा, ज्येष्ठा और श्रवण सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं। योग में सौभाग्य, शोभन, प्रीति, सुकर्म, वृद्धि, हर्षण, व्यतिपात और वैधृत योगों में दीपदान करना शुभ रहता है। सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, संक्रान्ति, कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवरात्र एवं महापर्वो पर दीपदान करना विशेष फलदायक रहता है।
शास्त्रों के अनुसार संक्रंति के दूसरे दिन एक पाव तेल का दीपक 21 दिन तक निरन्तर जलाने से हर तरह की बाधा का नाश हो जाता है।
-75 बत्ती वाली दीपक जलाने से शत्रु का नाश हो जाता है।
यदि किसी को राजभय है तो संक्रंति की शाम से सवा पाव तेल का दीपक 40 दिन तक जलाने से राज भय का नाश हो जाता है।
पुत्र प्राप्ति के लिए संक्रंति से 19 दिन सवा पाव तेल का दीपक जलाने से संतान की प्राप्ति होती है।
ग्रह पीड़ा निवारण करने हेतु चौसठ तोला तेल से दीपदान करने से किसी भी प्रकार की ग्रह पीड़ा समाप्त हो जाती है।
असाध्य रोग से छुटकारा पाने के लिए अस्सी तोला तेल का दीपक संक्रांति के दिन से लगातार 20 दिन जलाने से आरोग्य की प्राप्ति होती है।